माटी चित्रकार महावीर शामी : रोजी-रोटी और घर-परिवार छोड़ झारखंड की भाषा-संस्कृति को बचाने का जुनून

CULTURE

Neeraj Bhattacharya

बोकारो : रोजी-रोटी के लिए चित्रकारी करने वालों की तो इस दुनिया में भरमार है, लेकिन चित्रकारी के लिए रोजी-रोटी अर्थात नौकरी को त्यागने वाले शायद ही कोई मिले। झारखंड के मशहूर माटी चित्रकार महावीर शामी अपनी अच्छी-खासी नौकरी और घर-परिवार छोड़कर करीब तीन साल से झारखंड के लगभग सभी 32640 गांवों में झारखंडी संस्कृति को अपने चित्रकारी के माध्यम से दर्शाने और स्थापित करने की मुहिम में जुटे हुए हैं। वह पिछले लगभग 45 दिनों से बोकारो के कसमार प्रखंड के खैराचातर में चित्रों के माध्यम से राज्य और देश की संस्कृति को स्थापित करने में जुटे हुए हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि महावीर शामी यह काम निशुल्क कर रहे हैं। वह अब तक राज्य के 9 जिलों (धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग, रांची, खूंटी, रामगढ़ व सरायकेला-खरसावां) के लगभग 120 गांवों में लगभग 35000 वर्ग फीट दीवार को झारखंडी संस्कृति से जुड़े चित्रों के माध्यम से रंग चुके हैं। उन्होंने बताया कि चश्मा प्रखंड के खैर चटर पिटबुल और माजरा गांव में लगभग 2000 वर्ग फीट दीवाल को झारखंड की संस्कृति से रंग चुके हैं। अब तक 3000 गांवों से लोग चित्रकारी के लिए आमंत्रित कर चुके हैं।

नौकरी छोड़ गांवों को झारखंडी संस्कृति में रंग रहे महावीर

ऐसा नहीं है कि झारखंडी संस्कृति के दीवाने महावीर महतो बानुआर उर्फ महावीर शामी को अथवा उनके परिवार को इनकी नौकरी की जरूरत नहीं थी, बल्कि यूं कहें, घर-परिवार में अभावों की स्थिति में महावीर के लिए नौकरी की आवश्यकता किसी दीये को जलाए रखने के लिए घी की तरह है। बावजूद इन्होंने यह कड़ा फैसला लिया है और झारखंड की संस्कृति और यहां की खूबियों को उकेरने के लिए खुद को पूर्णतः समर्पित कर दिया है। इसके लिए इन्हें कई बार तीन-तीन, चार-चार सप्ताह तक अपने घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है। इस दौरान जहां जगह मिली सो गए। खाने को जो मिला, उसी में गुजारा कर लिया, पर ये छोटी-मोटी परेशानियां इनके जोश और जुनून के आगे दम तोड़ देती है। झारखंड को झारखंडी संस्कृति में रंगने का जुनून ऐसा है कि कड़ाके की ठंड में भी रात के दस-दस बजे तक खुले आसमान में बैठकर दीवारों में चित्रकारी करते नजर आते हैं।

नौ दिन के थे जब शामी के सिर से उठ गया पिता का साया

धनबाद जिले के बाघमारा प्रखंड स्थित कपूरिया गांव के निवासी महावीर शामी तीन भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे हैं। इनके पिता बाबूलाल महतो बीसीसीएल में कार्यरत थे, लेकिन, महावीर जब महज नौ दिनों के थे, उसी समय इनके सिर से पिता का साया उठ गया। उनके असामयिक निधन से पूरा परिवार बेसहारा हो गया था। कुछ दिनों बाद ऐसी भी स्थिति उत्पन्न हो गई कि मां रुदनी महताइन को अपने बच्चों की परवरिश के लिए बस्ती में भीख मांगनी पड़ी। सभी बच्चे छोटे-छोटे थे। रुदनी ने किसी के घर से माड़ तो किसी के घर से नून-भात मांग कर बच्चों का भरणपोषण किया। करीब तीन साल के बाद उन्हें अनुकंपा पर जॉब मिली, तब जाकर घर की स्थिति में कुछ सुधार हुआ। उन्हें अनुकंपा पर बीसीसीएल की आकाश किनारी कोलियरी, कतरास में ऑफिस में साफ-सफाई का काम मिला था।

विजुअल आर्ट्स की पढ़ाई बीएचयू वाराणसी से पूरी की

महावीर शामी में कला के प्रति रुचि बचपन से रही है। इनकी मां बताती हैं कि वह जब घर में गोबर निपाई करती थी, तब सभी के सो जाने के बाद महावीर रात-रात भर जागकर पेंसिल चॉक से घर की जमीन पर चित्र बनाया करता था। जब स्कूल जाने के दिन आये, तब वहां भी तरह-तरह के चित्र बनाना शुरू कर दिया। उन दिनों बहुत अच्छा चित्र नहीं बना पाते थे, पर मन में चित्रकार बनने का सपना ही संजोये हुए था। इस सफर में सिंगडा महुदा निवासी वरिष्ठ चित्रकार व कला केंद्र के शुकर महतो इनके मार्गदर्शक बने। उन्होंने चित्रकला में इनकी दिलचस्पी को देखते हुए इन्हें बीएचयू से फाइन आर्ट्स करने की सलाह दी। 2008 में बीएचयू में रैंक आठ से दाखिला हुआ। फिर बीएफए किया और विजुअल आर्ट्स की पढ़ाई बीएचयू वाराणसी से पूरी की। 2013-2015 में मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय चित्रकार वी नागदास के सानिध्य में रहकर पूरा किया। इसके बाद इन्होंने बीएड कॉलेज, धनबाद में कला व्याख्याता के रूप में नौकरी शुरू की। करीब तीन वर्ष के बाद सीबीएसई स्कूल, गुजरात में नौकरी करने का अवसर मिला। अभी दो वर्ष ही बीते थे कि झारखंड में भोजपुरी, मगही समेत कतिपय अन्य भाषाओं को सरकारी नियुक्तियों में मान्यता देने को लेकर शुरू हुए आंदोलन ने इनका ध्यान खींचा और वापस लौटकर इसका हिस्सा बन गए। आंदोलन में जान फूंकने और आंदोलनकारियों में उत्साह भरने के लिए नौकरी छोड़ दी और गांवों में घूम-घूमकर झारखंडी संस्कृति से जुड़े विषयों पर दीवाल पेंटिंग शुरू कर दी।

मां और पत्नी के सहयोग के बिना यह सब संभव नहीं है

महावीर बताते हैं कि मां और पत्नी के सहयोग के बिना यह संभव नहीं है। पहले मां ने कला की डिग्री दिलवाई। कभी पैसों के लिए मना नहीं किया। गांठ खोल के पैसे देती थी और कहती थी कि ब्रश व रंग खरीदो और चित्रकारी सीखो। उसी तरह अब पत्नी का सहयोग मिलता है। वह बिना पैसों के भी प्यार व उत्साह बढ़ाती है। न अच्छा और महंगा पहनने की फरमाइश है न किसी और चीज की। हालांकि, मां को नहीं पता है कि पिछले एक साल से मुफ्त में चित्रकारी कर रहे हैं। इसलिए घर जाने पर कभी राशन तो कभी सब्जी लाने को कहती है। उस समय उन्हें चुप रह जाना पड़ता है। चुपके से जनवितरण दुकान जाकर सस्ता अनाज लाते हैं और घर में देकर निकल जाते हैं।

भाषा, संस्कृति व अस्मिता के लिए कुर्बानी तो देनी होगी

महावीर कहते हैं कि इस अभियान में अब वह पीछे नहीं हटेंगे। चाहे मिट जाना ही क्यों न पड़े। वह सोशल मीडिया में भी यह बात खुलकर लिखते हैं कि इस अभियान से रोकने के लिए उन्हें मिटाना पड़ेगा। वह कहते हैं कि अलग राज्य तो अवश्य बना, पर झारखंड की मूल संस्कृति छिन्न-भिन्न हो गई है। लोग भाषा-संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं और अस्मिता का संकट बढ़ता जा रहा है। इसी बात ने उन्हें विचलित किया है और झारखंड को झारखंडी संस्कृति से रंगने और माटी का कर्ज उतारने निकल पड़े हैं। वह कहते हैं कि अपने लिए तो सभी जीते हैं, पर भाषा-संस्कृति के लिए जीना भी जरूरी है। महावीर के अनुसार, वे यह कार्य निःशुल्क इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि समाज के पास इसका कोई बजट नहीं हैं। और गांवों को इसलिए लक्ष्य बनाया है, क्योंकि झारखंड की मूल संस्कृति गांवों में समाहित हैं। महावीर ने कहा कि जब-तक जिंदा हूं, झारखंड की संस्कृति के लिए निःशुल्क कार्य करूंगा: झारखंड की संस्कृति को मिटने नहीं दूंगा। परिवार का भरण-पोषण इस तरह कब-तक चलेगा और चार साल के एकलौते बेटे का भविष्य क्या होगा? यह पूछने पर महावीर भावुक होकर कहते हैं कि झारखंड की भाषा, संस्कृति और अस्मिता के लिए अगर कुछ करना है तो कुछ कुर्बानी तो देनी ही होगी। बताया कि अभी भी कई जगहों से नौकरी के लिए नियुक्ति का पत्र मिला है, पर इस अभियान में अब वह पीछे नहीं लौटेंगे.

महावीर को हेमंत सोरेन की नई सरकार से यह है अपेक्षा

राज्य में संस्कृति को लेकर सरकार के स्तर से कोई विशेष कार्य नहीं होने पर महावीर शामी नाराज हैं। झारखंड की हेमंत सोरेन की नई सरकार से उन्हें उम्मीद है कि यह सरकार अपनी दूसरी पारी में इस दिशा में ठोस पहल करेगी। उनकी मांग है कि झारखंड के समस्त सरकारी स्कूलों में सरकार कला-संस्कृत की पढ़ाई शुरू कराए। इसके अलावा राज्य में आर्ट स्कूल, आर्ट कॉलेज व आर्ट यूनिवर्सिटी बनाने, सभी 32640 गांवों में झारखंड संस्कृति केंद्र बनाने, शहीदों की स्मृति में संग्रहालय बनाने, छऊ नृत्य, झूमर, ढोल मांदर एवं नटवा नाच के कलाकारों को प्रशिक्षण एवं पेंशन उपलब्ध कराने, पाइक नाच प्रशिक्षण अकादमी सभी जिलों में बनाने, झारखंड फिल्म टेलीविजन ऑफ व झारखंड क्षेत्र भाषा और अकादमी खुलने, झारखंड किसी भी विद्या के कलाकार के निधन में मंत्रालय द्वारा सहायता कोर्स धन राशि जीविका हेतु उपलब्ध कराने, 60 से अधिक उम्र वाले कलाकारों को पेंशन देने आदि मांग की है।

पत्नी ममता कुमारी ने कहा, मुझे गर्व है अपने पति पर

महावीर शामी एक कठिन राह पर चल रहे हैं। इसमें उनकी माताजी और पत्नी बखूबी उनका सहयोग कर रही हैं। पत्नी ममता कुमारी कहत हैं कि आज के समय में जब लोग सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचते हैं, मेरे पति ने झारखंड की संस्कृति को अपने चित्रकारी के माध्यम से स्थापित करने के लिए जो कदम उठाया है, वह वाकई अद्भुत है। इस कार्य में वह कभी-कभी महीनों घर नहीं लौटते हैं। चार साल का इकलौता पुत्र अपने पिता को खोजता रहता है। कहता है पापा घर क्यों नहीं आते? इस कार्य में वे किसी से कोई शुल्क नहीं लेते। घर परिवार किसी तरह से चल रहा है। आर्थिक संकट होने के बावजूद पति में इस अभियान को लेकर एक जुनून है। आर्थिक तंगी के चलते कई तरह की दिक्कत तो होती है, लेकिन इस बात की खुशी है कि राज्य की संस्कृति को स्थापित करने के लिए मेरे पति ने इतना बड़ा कदम उठाया है। मुझे अपने पति पर गर्व है। वह इस अभियान में सफलता प्राप्त करें, यही हमारी कामना है।