विधायकों की अनुसंशा से बनेंगे सरना स्थल की चहार‍दिवारी और धुमकुडि़या भवन : मंत्री

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Eksandeshlive Desk

रांची : अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री चमरा लिंडा ने विभाग के अनुदान मांग पर चर्चा पर जवाब देते हुए मंगलवार को कहा कि अब राज्यों में आदिवासियों के विकास कार्यों में दलालों की नहीं चलेगी। उन्होंने कहा कि सरना स्थल की चहार‍दिवारी और धुमकुडि़या भवन के निर्माण कार्य की अनुसंशा अब विधायक करेंगे ताकि इस कार्य में बिचौलिया संस्कृति खत्म हो। उन्होंने सदन को बताया कि सरकार ने सरना स्थलों की चहारदिवारी के लिए 200 करोड़ और धुमकुडि़या भवन के निर्माण के लिए 100 करोड़ रुपये देगी। मंत्री ने कहा कि सरकार का जोर अगले पांच वर्षों तक राज्य की अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और ओबीसी समाज की शिक्षा पर रहेगा।

आदिवासी छात्रावासों में सुधरेगी व्यावस्था : मंत्री ने कहा कि ह‍मारी सरकार राज्य के आदिवासी छात्रावासों की व्यवस्था में सुधार लाएगी। उन्होंने कहा कि अब आदिवासी छात्रों को घर से अनाज नहीं लानी पड़ेगी। उन्हें छात्रावासों में खाना फ्री में मिलेगी। खाना बनाने के लिए सरकार छात्रावासों में कुक की नियुक्ति की जाएगी। मंत्री ने कहा कि यूपीएससी की तैयारी के लिए सरकार 100 छात्र और 100 छात्राओं का चयन कर उन्हें फ्री में कोचिंग दिलाएगी। बेहतर कोचिंग के लिए जरूरत पड़ने पर छात्र-छात्राओं को दिल्ली भी भेजा जाएगा। मंत्री ने कहा कि अब हमारी सरकार आदिवासी छात्रावासों के लिए सात मंजिला भवन बनाएगी। सरकार 60 एकलव्य विद्यालय भी चलाएगी।

आदिवासियों के मौलिक अधिकारों का हो रहा हनन : चमरा लिंडा ने कहा कि केंद्र सरकार आदिवासियों के लिए अलग सरना कोड न देकर उनके मौलिक अधिकारों का हनन कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने चुनावी दौरे में एक बार भी सरना कोड का जिक्र नहीं किया, बल्कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरना कोड दिलाने का आश्वासन दिया था। उन्होंंने कहा कि केंद्र सरकार कमेटी बनाकर सरना कोड की मान्यता दिलाने में आ रही रूकावटों की जांच कराए। उन्होंने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जनजातीय योजना के पैसे को हाथी उड़ाने पर खर्च किया गया। ऐसे में आदिवासी बच्चे और महिलाओं का विकास कैसे संभव है।

अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा आदिवासी : चमरा लिंडा ने कहा कि राज्य का आदिवासी अपना अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। उन्होंने कहा कि हम विधायकों में आदिवासी संस्कृति को जीवित रखने के लिए मांदर और नगाड़ा बांटेंगे। हमलोग पुन: होनेवाले परिसीमन को लेकर डरे हुए हैं। उन्होंने कहा कि 2002 के परिसीमन के बाद छह आदिवासी सीटों को घटा दी गईं, लेकिन विरोध के बाद इसे रोका गया। इस बार विपक्ष परिसीमन को लेकर सरकार को सहयोग करे और झारखंड में पुन: इसे लागू कराने की मांग केंद्र सरकार से हो। ताकि आदिवासियों के साथ न्यााय हो सके।