सड़क, पानी, बिजली, रोजगार, स्वास्थ और शिक्षा का वर्षों से इंतज़ार
Eksandeslive Desk
चुरचू /हजारीबाग: प्रखंड के चनारो पंचायत के गांव बिनकरवा आजादी के इतने दशक बीतने के बावजूद आजतक विकास से कोसों दूर है। सुदूरवर्ती क्षेत्र में बसे संथाल आदिवासी का एक ऐसा गांव है जहां करीब चार सौ लोग निवास करते हैं लेकिन इस गांव में आज भी मुलभूत समस्याओं का अंबार है । बताते चले की उक्त गांव के लोग पीढ़ी दर कई पीढ़ी अपना जीवन यापन कर चुके है लेकिन अब भी यह गाँव विकास से कोसों दूर है जबकि इस गांव में शिक्षा (आंगनबाड़ी), सड़क, बिजली की अत्यधिक जरूरत है। आंगनबाड़ी नहीं होने से छोटे बच्चे घर में ही खेलते रहते हैं तथा गांव से करीब तीन किमी की दूरी पर आंगनबाड़ी केंद्र है पर आंगनबाड़ी केंद्र तक जाने वाली पूरी सड़क घने जंगलों से घिरा है जिसके कारण गांव के बच्चे आंगनबाड़ी स्कूल नहीं जा पाते हैं। गांव से लेकर सेंटर तक जाने वाले सड़क (तीन किलोमीटर) कच्चा सड़क है जो जर्जर व गड्ढों में तब्दील है तथा बारिश के मौसम में सड़क कादो – किचड़ में मानो समा जाता है। गांव में अगर किसी का तबियत खराब होने पर गांव तक एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाता है तथा लगभग ढेड़ किमी की दूरी छोटका मांझी मोड़ के पास एंबुलेंस खड़ी रहती है और बीमार व्यक्ति को ग्रामीणों द्वारा खटिया से एम्बुलेंस तक पहुंचाया जाता है।
उक्त गांव के ग्रामीण सड़क बनवाने को लेकर प्रखंड से लेकर जिला मुख्यालय एवं नेता, विधायक, सांसद का भी चक्कर लगा चुके हैं लेकिन परिणाम सिफर रहा तथा ग्रामीणों का सड़क बनवाने का उम्मीद टूट चुका है क्योंकि गाँव का सड़क भगवान भरोसे जो है। बिनकरवा गांव सुदूरवर्ती क्षेत्र के साथ साथ चारों तरफ़ घने जंगलों से घिरा है और गांव में हमेशा हाथियों के झुंड आते रहते हैं जबकि सांप,बिच्छू का मानों बसेरा घरों में बना रहता हैं। गांव में सरकार के नुमाइंदों ने बिजली का पोल तो खड़ा कर दिया लेकिन बिजली जलते देखते हुए लोगों की आंखें तरस गई और पूरा गांव अंधेरे में रहने के लिए मजबूर हैं। गांव में पानी की अधिकाधिक समास्या है तथा ग्रामीण खेती तो दूर पानी पीने के लिए भी तरस जाते हैं और गर्मी के दिनों में लोग नदी नाला का पानी पीने को विवश हो जाते हैं ।
इस गांव के लोग देहाड़ी मजदूरी पर ही निर्भर है लेकिन हर दिन काम नहीं मिलने से जैसे तैसे गुजर बसर कर रहे हैं तथा गांव के लगभग युवा रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में पलायन के लिए मजबूर है। देश आजाद होने के 78 वर्ष और झारखंड अगल होने के 24 वर्ष बाद भी यह गांव का स्थिति जस के तस बना हुआ है। देश में कई प्रधानमंत्री बदले, राज्य में भी कई मुख्यमंत्री बदले और जनता ने मांडू विधानसभा का विधायक को भी बदला, लेकिन इस गांव की तस्वीर आज तक नहीं बदल सका । ग्रामीणों के अनुसार विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान वोट लेने के समय ग्रामीणों से सड़क, पानी, बिजली और शिक्षा को दुरूस्त करने के झूठे वादे कर वोट लेते हैं पर जितने के बाद नेता तो दूर उनके कार्यकर्ता भी नजर नहीं आता। अब तो गांव वालों ने यह मान लिया है की हम आज भी उन्नीसवीं शताब्दी में जी रहे हैं और जैसे हमारे पूर्वज विकास की राह देखते देखते इस दुनिया से विदा हो गए आनेवाली पीढ़ी भी शायद विकास से अछूता ही रहेगी।