बेटे के शव को कंधे पर लाद कर पिता ने पैदल पार किया कई किलोमीटर जंगल झाड़

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अजय राज
प्रतापपुर(चतरा): प्रखंड के योगियारा पंचायत के कुबा गांव की घटना ने पूरे सिस्टम की निष्क्रियता को एक बार फिर उजागर कर दिया है जहां सड़क नहीं रहने की वजह से एक व्यक्ति को अपने 8 साल के बेटे के शव को पोस्टमार्टम हेतु एम्बुलेंस तक पहुंचाने के लिए कंधे पर लादकर जंगल झाड़ तथा कई मील के ऊबड़ खाबड़ पथरीले पगडंडी को पार कर आना पड़ा।यह एक विडंबना हीं है कि जहां एक ओर देश आजादी का 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है वहीं आजादी के 78 साल बाद भी प्रतापपुर प्रखंड के कई गांव सड़क व पुल पुलिया जैसी बुनियादी सुविधा से आज तक मरहूम हैं। एक ओर सरकारी तंत्र राज्य के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने का दंभ भरता नहीं थकता है। तो वहीं जमीनी हकीकत पूरी सच्चाई की पोल खोलती नजर आती है। यही नहीं विकास योजनाओं के नाम पर प्रतापपुर प्रखंड में हर साल करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं परंतु विकास कहीं नजर नहीं आता है। हर बार दावा किया जाता है कि यह प्रखंड विकास के पथ पर अग्रसर है लोगों को सभी बुनियादी सुविधाएं मिल रही है परंतु सच्चाई यह है कि प्रखंड के कई गांव को प्रखंड मुख्यालय तक जोड़ने के लिए सड़क तक नहीं बन पाई है और आज भी उन गांवों में रहने वाले लोग अपनी रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए जंगल झाड़ नदी ढोंडा तथा कई मील पथरीले रास्ते को पैदल पार कर प्रखंड मुख्यालय आते हैं और इसी को वे अपनी नियति मान चुके हैं। दरअसल ताजा मामला गुरुवार शाम की है जब प्रखंड के कुबा गांव के रहने वाले भोला गंझु का आठ वर्षीय पुत्र अजय कुमार स्कूल की छुट्टी के बाद अपने अन्य दोस्तों के साथ एक आहार के पास खेलने चला गया।खेलने के दौरान बच्चे का पैर फिसला और वह गहरे पानी में गिर गया तथा पानी में डूबने से उसकी मौत हो गई। दुर्गम क्षेत्र होने तथा देर शाम होने कि वजह से प्रशासन के द्वारा गुरुवार को शव को नहीं लाया जा सका। वहीं अगले दिन शुक्रवार को एम्बुलेंस भेजा गया परंतु सड़क नहीं होने की वजह से एम्बुलेंस को बाबा कुट्टी आश्रम के पास खड़ा कर दिया गया । उसके पश्चात् बच्चे के परिजन के द्वारा क़ुबा गांव से शव को कंधे पर लेकर कई किलोमीटर की दूरी तय कर एम्बुलेंस तक पहुंचाया गया। यह घटना पूरे सिस्टम पर तमाचा है। जब सड़क के अभाव की वजह से एक मजबूर बाप अपने माशूम बेटे की लाश को अपने हीं कंधे पर ढोकर कई किलोमीटर की दुर्गम रास्ते को पार कर प्रशासन को पोस्टमार्टम के लिए सौंप देता है।मालूम हो कि कुछ दिन पूर्व हीं बभने पंचायत के भूगड़ा गांव में लुप्तप्राय बैगा परिवार की एक गर्भवती महिला की सड़क नहीं रहने की वजह से एम्बुलेंस नहीं पहुंचने के कारण मौत हो गई थी। वहीं सिद्दकी पंचायत के हिंदीयाखुर्द गांव की एक आदिम जनजाति महिला की प्रसव पीड़ा होने पर खाट पर टांग कर लाने के दौरान रास्ते में ही प्रसव हो गया था।ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं जब सड़क अभाव के कारण लोगों को घोर तकलीफ से हर दिन जूझना पड़ता है। ये सारी घटनाएं सरकार और सिस्टम के विकास के दावे को मुंह चिढ़ा रही हैं परंतु प्रशासन कान में तेल डाल कर लोगों को उसकी नियति पर छोड़ने का मन बनाकर मौन धारण किए हुए है। सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि घटना की जानकारी होने के बाद भी न पंचायत का मुखिया और न हीं कोई सरकारी अमला गरीब का आंसु पोछने आया।।