कोई श्रोत आस- पास,एक हीं कुएं से बुझता ,सभी भक्तों का प्यास,वर्षो से समिति कर रही है प्रयास

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अशोक अनन्त,

हंटरगंज: हिन्दु, जैन एवं बौद्ध धर्म आस्था के महासंगम झारखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल जिसकी गाथा विदेशों में भी गाई जाती है अबतक विकास की बाट जोह रहा है। कौल्हुआ पहाड़ हिन्दु, जैन एवं बौद्ध धर्म का महासंगम हैं जहां माँ कौलेश्वरी मंदिर के साथ ही उंचे शिखर पर महादेव विराजमान हैं।यहाँ की ऐतिहासिकता है की यह कोल्ह राजा विराट की राजधानी रही है वहीं कुल देवी माँ कौलेश्वरी हैं। कथा किवदंती है की अज्ञातवास का समय पांडव यहाँ व्यतित किए थे तथा उतरा का विवाह अभिमन्यु के साथ यहीं हुआ था जिसे मड़वा मड़ई के नाम से जाना जाता है वहीं रामायण काल में भगवान राम का पदार्पण भी यहाँ माना जाता है। इस तीर्थ क्षेत्र का स्थान भगवान बुद्ध और महावीर से भी जोड़ा जाता है यहां जैन मंदिर भी अवस्थित हैं इसलिए निरंतर यहाँ तीनों धर्मों के अनुयायी का आवागमन लगा रहता है।
शारदीय नवरात्र के अलावा चैत्र नवरात्र में यहाँ विशेष मेला आयोजित होता है तथा पुरे श्रावण मास एवं प्रत्येक सोमवारी को शिव भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है। भक्त माता के दर्शन के साथ हीं फल्गु नदी से भी जल उठाकर भोलेनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। लेकिन व्यवस्था के नाम पर साधन का अभाव रहा है,विकास के लिए गठित कौलेश्वरी विकास प्रबंधन समिति बनाया गया जिसे निष्क्रिय करते हुए पुनः कौलेश्वरी विकास समिति के नाम से कायाकल्प किया गया लेकिन कई धर्मशालाएं अधुरे और विरान पड़े हैं,जर्जर भवन में प्रधान पुजारी रहने को विवश हैं। योजना मद से लगाए गए सोलर लाइट या तो गायब हो रहे हैं या बचे-खुचे संरक्षण के अभाव में मूकदर्शक बने हैं,मोटी रकम की लागत से शौचालय का निर्माण तो करा दिया गया लेकिन उसके रख रखाव व संचालन का अभाव रहा है जो उपयोग में नहीं है।
तालाब किनारे निर्मित पी सी सी पथ भी बरसात में धराशाई हो चुका है। पेयजल जलापूर्ति के लिए पहाड़ पर चढ़ाए जा रहे पाइप लाइन बेकार पड़े हैं।पहाड़ के बीचोंबीच स्थित मान सरोवर में भी कचरे का अंबार था जिसे प्रधान पुजारी ने सफाई अभियान चलाकर साफ तो कराया लेकिन पुनः फिर से डाले जा रहे साबुुन शैम्पू रेपर, प्लास्टिक बोतल और डिस्पोजल गंदगी के अंबार से भर गया है। लगातार हो रहे बारिश से भक्तजनों को शरण लेने भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यूं तो सनातन धर्म के कई धर्म स्थल पर आनेवाले चढ़ावा या कर शुल्क की मोटी रकम के लेखा जोखा रखने में प्रशासनिक सहीत कई अहम भागीदारी सुनिश्चित करते हैं वहीं व्यवस्था के नाम पर झींगुर साबित होते हैं।
अब देखना शेष रह गया है की पुरानी कमिटी के अपेक्षा नई कमिटी उचित और जरूरी प्रबंधन को लेकर क्या कदम उठाती है।