झारखंड में समुदायों को उनकी हकदारी के साथ ‘सरकार’ के करीब ला रही है जीपीएचडी

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Eksandeshlive Desk

रांची : झारखंड के दूरस्थ गांवों में स्थानीय समुदायों को उनके अधिकारों और हकदारी के साथ ‘सरकार’ के नजदीक लाने की एक अभिनव पहल की जा रही है। यह पहल हो रही है ‘ग्राम पंचायत हेल्प डेस्क’ (जीपीएचडी) के रूप में। राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले के ग्रामीण इलाकों में अब तक ऐसी 35 जीपीएचडी सक्रिय हो चुकी हैं। ये जनजातीय कार्य मंत्रालय की राष्ट्रव्यापी पहल ‘आदि कर्मयोगी अभियान’ के लक्ष्य पूरा करने में भी मददगार साबित हो रही हैं। जीपीएचडी पूर्वी सिंहभूम जिले के तीन ब्लॉकों (पटमदा, बोराम और गुरबंधा) में संचालित हो रही हैं। इनका संचालन ‘टैगोर सोसाइटी फॉर रूरल डेवलपमेंट’ (टीएसआरडी) द्वारा किया जा रहा है। यह ‘कॉमन ग्राउंड इनीशिएटिव’ का एक सहयोगी संगठन है।

भर्ती प्रक्रिया में महिलाओं (सहायिकाओं) को प्राथमिकता दी जाएगी : टीएसआरडी द्वारा इन हेल्प डेस्क का संचालन ‘मनरेगा’(महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के माध्यम से ‘महिला सशक्तिकरण’ कार्यक्रम के तहत किया जा रहा है, जबकि कॉमन ग्राउंड पार्टनर ‘प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन’ (प्रदान) ने व्यापक सामाजिक कल्याण पर केंद्रित एक मॉडल के तहत फील्ड-बिल्डिंग विशेषज्ञता के साथ इस पहल का समर्थन किया है। इस कार्यक्रम के तहत, प्रत्येक ग्राम पंचायत उस क्षेत्र में पहले से कार्यरत स्वयं सेवकों के समूह में से चार ‘पंचायत सहायकों’ की भर्ती करेगी। अगर किसी क्षेत्र विशेष में इस तरह के स्वयं सेवक सक्रिय न हों, तो पंचायत ग्राम सभा के साथ मिलकर ऐसे सहायकों की अन्यत्र से भर्ती करेगी। भर्ती प्रक्रिया में महिलाओं (सहायिकाओं) को प्राथमिकता दी जाएगी। इस बारे में टीएसआरडी के संयुक्त सचिवनंद लाल बख्शी बताते हैं, “हमारे जीपीएचडी में प्रत्येक डेस्क पर एक स्थानीय सहायक तैनात होता है।वह सहायक स्थानीय समुदाय के सदस्यों को जॉब कार्ड, मजदूरी भुगतान, पेंशन, आवास आदिमें सहायता प्रदान करता है।ऐसे सहायकों का स्थानीय समुदाय और बोली से अच्छा परिचय होता है। यही उन्हें नागरिकों और राज्य के शासन-तंत्र के बीच प्रभावी सेतु के रूप में स्थापित करता है।”

दिखने लगा है असर, समय और पैसा भी बच रहा : जीपीएचडी मॉडलने असर दिखाना शुरू कर दिया है। जैसा कि बख्शी बताते हैं, “समुदाय के सदस्यों का कहना है कि अब उन्हें आधार विवरण में सुधार या मनरेगा मज़दूरी का हिसाब-किताब रखने जैसी बुनियादी सेवाओं के लिए किसी को भुगतान नहीं करना पड़ता। इससे पैसे और समय दोनों की बचत हो रही है।” जीपीएचडी विशेष रूप से स्थानीय स्वयंसहायता समूहों (एसएचजी) की सदस्य एवं प्रशिक्षित महिला सहायकों द्वारा संचालित हैं। ये ‘हेल्पडेस्क’ मनरेगा, पेंशन, आवास और अन्य कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित जानकारी और सहायता तक ग्रामीण नागरिकों, खासकर महिलाओं की पहुंच को सुनिश्चित करने का प्रभावी माध्यम बन रही हैं। इन सुविधा केंद्रों में महिलाओं का स्थान अग्रणी है। यह पहल न केवल सरकारी सेवाओं के वितरण को बेहतर बना रही है, बल्कि स्थानीय शासन और सामुदायिक विकास में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए महिलाओं को सशक्त भी कर रही है। यही नहीं, जमीनी स्तर पर शासन को मजबूत करने, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और सामुदायिक नेतृत्व मॉडलों के महत्व को रेखांकित करने में भी यह पहल कारगर हो रही है।

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