Eksandeshlive desk
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पारंपरिक चिकित्सा को उसके हक की मान्यता दिलाने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें विज्ञान के माध्यम से विश्वास जीतना होगा और इसकी पहुंच का विस्तार करना होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को यहां के भारत मंडपम में आयोजित द्वितीय विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के पारंपरिक चिकित्सा पर वैश्विक शिखर सम्मेलन के समापन समारोह में भाग लिया। इस दौरान उन्होंने अश्वगंधा पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। यह भारत की पारंपरिक औषधीय विरासत की वैश्विक महत्ता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि पारंपरिक चिकित्सा को लम्बे समय तक केवल स्वास्थ्य और जीवनशैली संबंधी देखभाल तक ही सीमित रखा गया। अब यह धारणा तेजी से बदल रही है। भारत इस सोच से आगे बढ़ रहा है कि पारंपरिक चिकित्सा गंभीर परिस्थितियों में भी प्रभावी भूमिका निभा सकती है। प्रधानमंत्री ने पारंपरिक चिकित्सा पर विश्वास से जुड़ी कमी को दूर करने के लिए भारत के निरंतर प्रयासों का उल्लेख करते हुए अश्वगंधा का उदाहरण सामने रखा। उन्होंने कहा कि सदियों से उपयोग में रही अश्वगंधा की कोविड-19 के दौरान वैश्विक मांग बढ़ी। भारत शोध और साक्ष्य-आधारित प्रमाणीकरण के जरिए इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रामाणिक रूप से स्थापित कर रहा है।
हमारी साझा जिम्मेदारी आने वाले भविष्य को लेकर भी है : प्रधानमंत्री ने पारंपरिक चिकित्सा को मजबूत करने के उपाय बताये और कहा कि इसमें पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान को सुदृढ़ करना, डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग को विस्तार देना और विश्वसनीय नियामक ढांचा तैयार करना शामिल है। प्रधानमंत्री ने आने वाले समय को मानव शरीर के लिए अप्रत्याशित चुनौतियां पैदा करने वाले बताया और कहा कि परंपरागत स्वास्थ्य देखभाल में हमें वर्तमान ही नहीं बल्कि भविष्य की जरूरतों पर भी फोकस करना है। उन्होंने कहा कि शारीरिक श्रम के बिना संसाधनों और सुविधाओं की सहूलियत से अप्रत्याशित चुनौतियां पैदा होने जा रही हैं। हमारी साझा जिम्मेदारी आने वाले भविष्य को लेकर भी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद में संतुलन को स्वास्थ्य का मूल आधार माना गया है और जिसके शरीर में यह संतुलन बना रहता है, वही स्वस्थ होता है। बदलती जीवनशैली, बढ़ते तनाव और पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण संतुलन की यह अवधारणा वैश्विक महत्व की बन गई है। ‘रिस्टोरिंग बेलेंस’ अब एक गंभीर वैश्विक आवश्यकता है, जिसे संबोधित करने के लिए तेज़ और ठोस कदम जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि भारत के प्रयासों और 175 से ज्यादा देशों के सहयोग से संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को योग दिवस घोषित किया गया था। बीते वर्षों में हमने योग को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचते देखा है। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री दिल्ली में नए डब्ल्यूएचओ-दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय परिसर का भी उद्घाटन किया। उन्होंने इसे भारत की ओर से एक विनम्र उपहार बताया। इसमें डब्ल्यूएचओ भारत का कंट्री ऑफिस भी होगा। प्रधानमंत्री ने आयुष क्षेत्र के लिए एक मास्टर डिजिटल पोर्टल, माई आयुष इंटीग्रेटेड सर्विसेज पोर्टल (एमएआईएसपी) सहित कई महत्वपूर्ण आयुष पहलों का शुभारंभ किया। उन्होंने आयुष मार्क का भी अनावरण किया। प्रधानमंत्री ने योग प्रशिक्षण पर डब्ल्यूएचओ की तकनीकी रिपोर्ट और ‘फ्रॉम रूट्स टू ग्लोबल रीच: 11 इयर्स ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन इन आयुष’ नामक पुस्तक का विमोचन किया। उन्होंने वर्ष 2021-2025 के लिए योग के संवर्धन एवं विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को सम्मानित किया। प्रधानमंत्री ने पारंपरिक चिकित्सा खोज अंतरिक्ष का भी दौरा किया। यह प्रदर्शनी भारत और विश्व भर की पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान प्रणालियों की विविधता, गहराई और समकालीन प्रासंगिकता को प्रदर्शित करती है। डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार के आयुष मंत्रालय की ओर से संयुक्त रूप से 17 से 19 दिसंबर तक भारत मंडपम में आयोजित शिखर सम्मेलन का विषय ‘संतुलन की बहाली: स्वास्थ्य और कल्याण का विज्ञान और व्यवहार’ रहा। सम्मेलन में वैश्विक नेताओं, नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, स्वदेशी ज्ञान धारकों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों के बीच न्यायसंगत, टिकाऊ और साक्ष्य-आधारित स्वास्थ्य प्रणालियों को बढ़ावा देने पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
शिखर सम्मेलन के घोषणा पत्र में शोध पर दिया गया जोर : पारंपरिक चिकित्सा पर पिछले तीन दिनों से भारत मंडपम में विश्व स्वास्थ्य संगठन और आयुष मंत्रालय द्वारा आयोजित दूसरे वैश्विक शिखर सम्मेलन के समापन समारोह में घोषणा पत्र जारी किया गया। इसके तहत पारंपरिक चिकित्सा में शोध कार्यों पर जोर दिया गया। घोषणापत्र के अनुसार पारंपरिक चिकित्सा पर रिसर्च को बढ़ावा दिया जाएगा, क्योंकि अभी इस पर बहुत कम पैसा खर्च होता है। इसके साथ इलाज सुरक्षित और असरदार हो, इसके लिए नियम और निगरानी व्यवस्था मजबूत की जाएगी। पारंपरिक चिकित्सा को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ा जाएगा, ताकि आम लोगों को इसका फायदा मिल सके। इलाज से जुड़े डेटा, रिकॉर्ड और जानकारी को बेहतर तरीके से इकट्ठा किया जाएगा। स्वदेशी और स्थानीय समुदायों की भूमिका को अहम माना जाएगा और उनके ज्ञान का सम्मान किया जाएगा। समिट में यह भी कहा गया कि पारंपरिक चिकित्सा केवल इलाज का तरीका नहीं, बल्कि एक साझा सांस्कृतिक विरासत है, जो लोगों और पर्यावरण–दोनों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। इस घोषणा के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन और सदस्य देशों ने मिलकर पारंपरिक चिकित्सा को वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था का मजबूत हिस्सा बनाने का संकल्प लिया।उल्लेखनीय है कि 17 से 19 दिसंबर 2025 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार ने मिलकर पारंपरिक चिकित्सा पर दूसरा ग्लोबल समिट आयोजित किया। इसमें 100 से ज्यादा देशों के मंत्री, अधिकारी, वैज्ञानिक, डॉक्टर, शोधकर्ता और पारंपरिक चिकित्सा से जुड़े लोग शामिल हुए। समिट का मुख्य उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा को वैज्ञानिक आधार पर मजबूत बनाना और इसे लोगों तक सुरक्षित तरीके से पहुंचाना था। इसमें आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी और अन्य पारंपरिक उपचार पद्धतियों पर चर्चा हुई।
