आदिवासियों की संस्कृति प्रकृति की गोद से उपजी : सुनिता उरांव

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लोहरदगा: मंगलवार को आदिवासी समाज की महिला कार्यकर्ता और झारखंड पीपुल्स पार्टी की लोहरदगा जिला महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष सुनीता उरांव ने सभी लोहरदगावासियों को कर्मा पर्व पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ देते हुए कहा है कि आदिवासियों की संस्कृति प्रकृति की गोद से उपजी है। इसलिए हमारा जन-जीवन, कर्मा, सरहुल जैसे पर्व-त्योहार सभी धार्मिक अनुष्ठान जल, जंगल, नदी, पहाड़, पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों के जीवन से जुड़ा हुआ है। सुनीता उरांव ने कहा कि हम उरांव जनजाति के लोग प्रोटो ऑस्ट्रिया प्रजाति के माने जाते हैं और द्रविड़ समुदाय से आते हैं। हमारे पूर्वज सबसे पहले दक्षिण भारत में निवास करते थे परंतु कालांतर में सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल के बाद वे सिंधु घाटी की ओर चले गए इसलिए सिंधु घाटी सभ्यता से भी हमारा जुड़ाव माना जाता है । हमारे प्रमुख देवता महादेव (शिव) हैं, जिन्हें हम धर्मेश के नाम से पूजते हैं। इनके अलावा हम अन्य देवी-देवता ,पूर्वजों और आत्माओं की भी पूजा करते हैं। कर्मा पर्व के अवसर पर करम पेड़ की डाली और सरहुल पर्व के अवसर पर साल (सखुवा) के फूल की पूजा करना हमारी परंपरा एवं पूजा पद्धति में शामिल है। उन्होंने कहा कि उरांव जनजाति के लोगों की सामाजिक शासन व्यवस्था के प्रमुख महतो और पहान- पूजार होते हैं। रोहतासगढ़ से हमारी शासन व्यवस्था कायम होती रही है। धूम कुड़िया का हमारी संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। सुनिता उरांव ने बताया कि उरांव जनजाति में कुल 14 गोत्र जिसमें– लकड़ा, रफंडा, गारी, बांडी, किस्पोट्टा, तिर्की, टोप्पो, एक्का, खलखो , लिंडा, मिंज, कुजूर, बेक, और किस्पोट्टा है। ये सभी गोत्र किसी न किसी पशु-पक्षियों के नाम से जुड़े हैं। हम अपने गोत्र में कभी भी शादी- विवाह नहीं करते। मां के गोत्र में भी तीन पीढ़ी शादी विवाह वर्जित है।उन्होंने कहा कि उरांव शब्द का अर्थ होता है घूमना। हमारा यह जनजाति अपना जीवन एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते हुए बिताया करता था। शिकार करना हमारे समुदाय का पेशा था जो बाद में चलकर कृषि में परिवर्तित हो गया और आज हमारा जीवन का मूल आधार कृषि ही है। वर्तमान समय में उरांव जनजाति के लोग झारखंड बिहार असम बंगाल छत्तीसगढ़ उड़ीसा मध्य प्रदेश आदि स्थानों में बड़ी संख्या में निवास करते हैं तथा नदी, पहाड़, जल, जंगल, पेड़- पौधे और पशु- पक्षी से अटूट संबंध रखते हुए अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए सदैव समर्पित रहते हैं।