आशुतोष झा
काठमांडू: नेपाल विद्युत प्राधिकरण (NEA) के कार्यकारी निदेशक (MD) कुलमान घिसिंग का सरकारी निर्देशों की अवहेलना करना अब सार्वजनिक रूप से उजागर हो चुका है। मंगलवार को प्रतिनिधि सभा (संसद) की बैठक में ऊर्जा, जलस्रोत एवं सिंचाई मंत्री दीपक खड़का ने कुलमान घिसिंग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने सरकार के फैसलों का पालन नहीं किया, संचालक समिति के निर्णयों को लागू नहीं किया और प्राधिकरण को अपनी निजी संपत्ति की तरह चलाया।
मंत्री खड़का ने संसद में स्पष्ट शब्दों में कहा, “संचालक समिति निर्णय लेती है, लेकिन कुलमान उसे लागू नहीं करते! 100% सरकारी स्वामित्व वाली संस्था का एक कर्मचारी सरकार के खिलाफ भाषण देता है, लेकिन सरकारी निर्देशों का पालन नहीं करता”। क्या कोई कर्मचारी सरकार की नीतियों की अवहेलना कर सकता है? मंत्री खड़का के इस बयान से यह साफ जाहिर होता है कि कुलमान घिसिंग ने जानबूझकर सरकार के आदेशों को अनदेखा किया।
लोडशेडिंग खत्म करने का सारा श्रेय कुलमान को दिया जाता है, लेकिन क्या सच में उन्होंने यह अकेले किया? मंत्री खड़का ने कटाक्ष करते हुए कहा, “लोडशेडिंग खत्म करने के लिए 450 मेगावाट बिजली भारत से आयात करनी पड़ी, ट्रांसमिशन लाइन बनानी पड़ी। यह सब किसने किया? क्या सिर्फ कुलमान ने ही यह सब किया? अगर उन्होंने कुछ अच्छा किया भी होगा, तो इसके लिए धन्यवाद, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे सरकार के निर्देशों की अवहेलना करें”। सरकारी नीतियों का पालन न करने वाला व्यक्ति ‘महानायक’ हो सकता है? या फिर वह एक अराजक कर्मचारी है, जो अपनी मर्जी से संस्था को चला रहा है? मंत्री खड़का ने संसद में यह संकेत दे दिया है कि सरकार कुलमान घिसिंग पर लगाम लगाएगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि इतने गंभीर आरोपों के बावजूद उन पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? सरकारी नीतियों की अवहेलना करने के बावजूद उन्हें लगातार संरक्षण कौन दे रहा है?
कुलमान घिसिंग की कार्यशैली को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने नेपाल विद्युत प्राधिकरण को अपनी निजी कंपनी की तरह चलाया है। उन्होंने सरकारी निर्देशों का पालन नहीं किया, संचालक समिति के निर्णयों को उलट दिया, फिर भी वे अपने पद पर बने हुए हैं। अब सरकार के सामने एक सीधा सवाल है—क्या वह कुलमान के खिलाफ कार्रवाई करेगी या उनकी अराजकता को मौन समर्थन देती रहेगी? मंत्री खड़का ने संसद में स्पष्ट कर दिया है कि अब सरकार केवल मूकदर्शक बनकर नहीं बैठ सकती। इसका अर्थ यह है कि कुलमान घिसिंग के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की संभावना बढ़ गई है। यदि कोई सरकारी कर्मचारी सरकार के फैसलों को न मानकर खुद को सरकार से ऊपर समझने लगे, तो यह लोकतांत्रिक प्रणाली पर सीधा प्रहार है। अब सरकार के पास दो ही विकल्प हैं— या तो कुलमान घिसिंग को कानूनी दायरे में लाकर उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करे, या फिर यह स्पष्ट करे कि उन्हें संरक्षण देने वाले कौन हैं। अब फैसला सरकार को करना है—नीति और कानून का सख्ती से पालन कराना है या अराजकता को मौन समर्थन देना है।
