by sunil
रांची: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के कुलपति डॉ एससी दुबे ने कहा कि अपने शिक्षण और प्रसार पद्धति को जनजातीय समाज के लिए अधिकाधिक उपयोगी बनाने के लिए उसमें आवश्यक संशोधन-परिवर्तन करने पर विचार करेगा, ताकि जनजाति समाज के लोग अपनी परंपरा, संस्कृति, वेशभूषा और भाषा से जुड़े रहकर भी अपना बेहतर सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक विकास कर सकें। कुलपति डॉ एससी दुबे शनिवार को रांची कृषि महाविद्यालय प्रेक्षागृह में आयोजित विश्व आदिवासी दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कृषि, पशुपालन, वानिकी, मात्स्यिकी आदि की तकनीकी पढ़ाई कर नौकरी में जाने वाले आदिवासी अपनी संस्कृति, परंपरा, गांव और कस्बे से जुड़े रहते हैं जबकि आईआईटी, आईआईएम से तकनीकी पढ़ाई करने वालों का शहरीकरण एवं आधुनिकीकरण ज्यादा हो जाता है। कुलपति ने कहा कि दुनिया में जनजातीय आबादी लगभग 50 करोड़ है, जिसका 70 प्रतिशत से अधिक भाग एशिया महाद्वीप में रहता है। वैश्विक आबादी का मात्र 6.2 प्रतिशत आदिवासी समाज है किंतु दुनिया के सर्वाधिक गरीब लोगों में 19 प्रतिशत संख्या जनजातीय समाज की है। इसलिए उनके आर्थिक उन्नयन के लिए विशेष प्रयास की जरूरत है। विश्वविद्यालय के डीन डॉ डीके शाही, डॉ सुशील प्रसाद, डॉ एमएस मलिक, कुलसचिव डॉ नरेंद्र कुदादा तथा छात्रा नेहा एक्का ने भी अपने विचार रखे। प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ जगरनाथ उरांव ने कहा कि जल, जंगल और जमीन आदिवासी जीवन शैली के अभिन्न अंग हैं और इन्हीं तीनों के इर्द-गिर्द उनकी दिनचर्या घूमती है। विश्वविद्यालय के छात्राओं ने उरांव, संभलपुरी, हो तथा नागपुरी जनजातीय नृत्य एवं गायन का कार्यक्रम प्रस्तुत किया।