भारत को पुनः “जगद्गुरु” के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए संस्कृत विद्या का पुनरुत्थान अनिवार्य : प्रोफेसर (डॉ.) रामाशीष पाण्डेय

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रांची : संस्कृत सेवा संघ के महासचिव एवं मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) रामाशीष पाण्डेय ने शुक्रवार को कहा कि यदि भारत को पुनः “जगद्गुरु” के रूप में प्रतिष्ठित करना है, तो इसके लिए संस्कृत विद्या का पुनरुत्थान अनिवार्य है। वे संस्कृत भारती उत्तर-पूर्व क्षेत्र द्वारा आयोजित क्षेत्रीय प्रशिक्षण वर्ग के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे और प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रशिक्षण वर्गों के माध्यम से संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार, जनसामान्य तक पहुंचने में अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकता है। यह कार्य भारत की सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

इस क्षेत्रीय प्रशिक्षण वर्ग का शुभारंभ डीएवी स्वर्णरेखा पब्लिक स्कूल, विद्यानगर, रांची में हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. ताराकान्त शुक्ल ने कहा कि “विद्या अभ्यास से ही प्राप्त होती है।” उनका मत था कि यदि व्यक्ति प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा पढ़े तो थोड़े ही समय में उसका पूर्ण रूप से विकास हो सकता है। संस्कृत भारती भी इसी सिद्धांत को अपनाकर संस्कृत सम्भाषण की शिक्षा देती है। संस्कृत भाषा को व्यवहार में लाकर, संस्कृत भारती इसे जन-जन की भाषा बनाने का अनवरत प्रयास कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत में निहित ज्ञान न केवल धार्मिक या आध्यात्मिक है, बल्कि उसमें वैज्ञानिकता भी समाहित है, जिसे सामान्य व्यक्ति भी सहजता से समझ सकता है। यदि संस्कृत का व्यवहारिक प्रयोग बढ़ेगा, तो जनमानस संस्कृत भाषा को न केवल अपनाएगा, बल्कि गर्व से इसका प्रचार भी करेगा।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि डॉ. शैलेश मिश्रा ने कहा कि भारतीय संस्कृति को सही रूप से समझने का एकमात्र माध्यम संस्कृत है। उन्होंने कहा कि संस्कृत भारती द्वारा इस प्रकार के प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन न केवल प्रशंसनीय है, बल्कि यह राष्ट्र की आत्मा को जाग्रत करने का कार्य भी है। संस्कृत के माध्यम से भारतीय चिंतन, दर्शन, साहित्य, धर्म और संस्कृति का समग्र रूप में अध्ययन संभव है। संस्कृत भारती रांची महानगर के अध्यक्ष डॉ. श्रीप्रकाश सिंह ने कहा कि यह संस्था संस्कृत को सामान्य जन तक पहुंचाने का कार्य कर रही है, और यह एक दैवीय कार्य है। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक संस्कृत जीवन में पुनः स्थान प्राप्त नहीं करती, तब तक भारत का सांस्कृतिक पुनरुत्थान संभव नहीं है। संस्कृत न केवल भाषा है, अपितु एक जीवनदर्शन है, जो भारतीयता की आत्मा को सजीव करता है।

इस प्रशिक्षण वर्ग के विशिष्ट अतिथि वेद प्रकाश बागला ने अपने उद्बोधन में कहा कि सनातन धर्म की जड़ों को मजबूत करने के लिए संस्कृत का प्रशिक्षण आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह वर्ग भविष्य में एक मील का पत्थर साबित होगा। संस्कृत का यह पुनरुत्थान समाज को उसकी मूल जड़ों से जोड़ने का कार्य करेगा। यह न केवल धर्म और संस्कृति का संरक्षण करेगा, बल्कि नई पीढ़ी को भी अपने गौरवपूर्ण अतीत से परिचित कराएगा। कार्यक्रम का संचालन श्री राम अचल यादव (देवघर विभाग संयोजक) ने किया। संस्कृत भारती झारखंड के प्रांत मंत्री श्री पृथ्वीराज सिंह ने प्रशिक्षण वर्ग का वृत्त प्रस्तुत किया।

प्रांत उपाध्यक्ष डॉ. दीपचन्दराम कश्यप ने सभी उपस्थित अतिथियों, सहयोगियों एवं कार्यकर्ताओं का आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों से संस्कृत भाषा का प्रचार व्यापक स्तर पर हो रहा है और इसका लाभ समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंच रहा है। प्रशिक्षण वर्ग के मुख्य प्रशिक्षक श्री सर्वेश कुमार मिश्र हैं। इस वर्ग की सबसे विशेष बात यह है कि यहां उपस्थित शिक्षक आगामी दस दिनों तक विद्यानगर क्षेत्र में घर-घर जाकर मोहल्लों में निःशुल्क संस्कृत सम्भाषण की शिक्षा देंगे। यह पहल निश्चित रूप से जनमानस में संस्कृत के प्रति जागरूकता और सम्मान की भावना को जाग्रत करेगी।

इस अवसर पर अन्य गणमान्य अतिथियों में डॉ. धनंजय वासुदेव द्विवेदी, डॉ. चन्द्रमाधव सिंह, सत्येन्द्र गुप्त, ओम प्रकाश गुप्त, डॉ. जगदम्बा प्रसाद, डॉ. राहुल कुमार, आशीष कुमार आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का आरम्भ माँ सरस्वती की वन्दना से हुई। इसके उपरांत शिक्षार्थी तनु सिंह ने अत्यंत मधुर स्वर में “शूराः वयम्” नामक गीत प्रस्तुत किया। अनामिका द्वारा प्रस्तुत भावपूर्ण संस्कृत नृत्य ने सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।