छत्तीसगढ़ में नक्सली सोनू उर्फ भूपति ने जारी किया पर्चा, कहा-‘हथियार उठाना भूल थी’

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सरकार की नीतियों पर भी उठाए सवाल, कहा-नकली आत्मसमर्पण दिखाकर जनता को गुमराह किया जा रहा

जगदलपुर : छत्तीसगढ़ और देश के अन्य राज्यों में नक्सली संगठन के बड़े कैडरों के मारे जाने और आत्मसमर्पण के बाद से नक्सलियों में भय और सुरक्षा बलों का खौफ बढ़ गया है। नक्सल संगठन के पदाधिकारियों के नाम से जारी हो रहे इन पर्चों से तो कम से कम यही संकेत मिल रहा है। इन पर्चों में दावा किया जा रहा है कि नक्सलियों में सुरक्षा बलों की जहां दहशत है वहीं वे अपने संगठन की खामियों और गलतियों को भी खुले मन से स्वीकार कर रहे हैं। इस बाबत बस्तर संभाग के आईजी ने कहा कि पुलिस प्रशासन जारी हुए पर्चाें की जांच कर रहा है। दो दिन पहले केंद्रीय प्रवक्ता अभय के नाम पर पर्चा जारी होने का दावा हुआ था। इसमें हथियार छोड़कर शांति वार्ता की पेशकश की थी। अब सोनू के नाम पर एक और पर्चा सामने आया है, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया गया है कि आंदोलन ने कई गंभीर गलतियां कीं। हथियार उठाना हमारी सबसे बड़ी भूल थी, इसलिए हम जनता से खुले तौर पर माफी मांगते है। दोनों पर्चे एक ही व्यक्ति मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ अभय उर्फ भूपति उर्फ सोनू ने लिखे हैं। एक पर्चा संगठन के आधिकारिक लेटरहेड पर जारी किया गया है जबकि दूसरा पर्चा व्यक्तिगत रूप से सोनू के नाम पर जारी किया है। नक्सली संगठन के शीर्ष नक्सली कैडराें के द्वारा लगातार एक के बाद एक पत्र जारी करना नक्सली संगठन में व्याप्त दहशत काे उजागर करता है। इसके साथ ही नक्सली संगठन की कमान काैन संभाल रहा है, यह अब तक स्पष्ट नही हाेने से पूरा नक्सली संगठन का ताना-बाना ध्वस्त लग रहा है।

हमने बंदूक का रास्ता अपनाया, जिससे न्याय मिलने के बजाय निर्दोषों पर और अत्याचार हुए : वर्ष 2011 में मारे गए शीर्ष नक्सली कैडर किशनजी के भाई अभय उर्फ सोनू ने पत्र में लिखा है कि जनता के असली मुद्दे जमीन, जंगल और सम्मान थे, लेकिन हमने बंदूक का रास्ता अपनाया, जिससे न्याय मिलने के बजाय निर्दोषों पर और अत्याचार हुए। हमें स्वीकार करना होगा कि हथियारबंद संघर्ष ने आंदोलन को कमजोर किया और लोगों को पीड़ा दी। यद्यपि इन पत्रों के जारी होने के बीच बस्तर के बीजापुर और दंतेवाड़ा में दो निर्दोष ग्रामीणों की हत्या नक्सली कर चुके हैं। इस पत्र में स्पष्ट किया गया है कि नक्सली आंदोलन अब हथियार की राह नहीं बल्कि सामाजिक-संगठनात्मक आधार पर आगे बढ़ेगा । गांव–गांव के छोटे संघर्ष और महिलाओं की भागीदारी ही असली ताकत है। अगर जनता एकजुट रहेगी तो बिना बंदूक भी अपने अधिकारों की लड़ाई जीती जा सकती है। सोनू ने समर्पण और पुनर्वास नीतियों पर सरकार को घेरते हुए कहा कि नकली आत्मसमर्पण दिखाकर सरकार जनता को गुमराह कर रही है। साथ ही यह भी माना कि संगठन ने अंधाधुंध हिंसा और बाहरी विचारधारा की कठोर नकल करके अपनी जड़ों से दूरी बना ली। यही कारण रहा कि कई इलाकों में आंदोलन कमजोर पड़ गया। पत्र के अंत में सोनू ने स्पष्ट संकेत दिया कि पार्टी आत्ममंथन की प्रक्रिया में है और अब नई रणनीति जनता की आकांक्षाओं पर आधारित होगी। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे सरकारी लालच में नही फंसकर अपने पारंपरिक अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित, शांतिपूर्ण संघर्ष का रास्ता अपनाएं।

कौन है अभय उर्फ सोनू : तेलंगाना के करीम नगर जिले के पेद्दापल्ली निवासी 69 वर्षीय मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ अभय उर्फ भूपति उर्फ सोनू ने बीकाम की पढ़ाई की है। उनके दादा और पिता, मल्लोजुला वेंकटैया दोनों भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वेणुगोपाल 30 से अधिक वर्षों से घर से दूर है। वेणुगोपाल की पत्नी तारक्का ने पिछले वर्ष महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में आत्मसमर्पण कर दिया था। वह अभी पुलिस पुर्नवास कैंप में रह रही है। सबसे पहले उसी ने सरकार से युद्धविराम की अपील भी की थी। अब वह आत्मसमर्पण करना चाहता है, ताकि अपनी पत्नी से जुड़ सकें। किशनजी के छोटे भाई वेणुगोपाल उर्फ भूपति भी एक प्रमुख नक्सली है। उसका भाई किशनजी वर्ष 2011 में कोलकाता मुठभेड़ में मारा गया था। इस संबंध में बस्तर संभाग के आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि नक्सल संगठन के नाम से जो पर्चे जारी हुए हैं, पुलिस प्रशासन फिलहाल उनकी जांच की जा रहा है। इसके बाद भी उनके बारे में कोई प्रतिक्रिया दी जाएगी।

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