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Ranchi : विश्वविद्यालय के संयोजक एवं अबुआ अधिकार मंच के सक्रिय कार्यकर्ता अभिषेक शुक्ला ने आज पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा की जयंती के अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डॉ. मुंडा न केवल एक महान शिक्षाविद्, साहित्यकार और समाज चिंतक थे, बल्कि झारखंडी अस्मिता, संस्कृति और पहचान के सशक्त शिल्पी एवं वाहक भी थे। अभिषेक शुक्ला ने अपने वक्तव्य में कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा का जीवन एवं कार्य झारखंड की सांस्कृतिक चेतना, भाषाई गौरव और राजनीतिक जागरूकता के लिए मील का पत्थर है। उन्होंने आदिवासी भाषाओं, लोककला, लोकसंगीत और पारंपरिक ज्ञान को न केवल संरक्षित किया, बल्कि उन्हें वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई। उनका योगदान यह साबित करता है कि स्थानीयता और वैश्विकता का अद्भुत संगम संभव है, बशर्ते हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें। रांची विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में डॉ. मुंडा ने शिक्षा को स्थानीय संस्कृति और लोकज्ञान से जोड़ने का ऐतिहासिक प्रयास किया। उनके नेतृत्व में विश्वविद्यालय सिर्फ एक शैक्षणिक संस्था नहीं रहा, बल्कि वह सांस्कृतिक पुनर्जागरण का केंद्र बन गया। उनके कार्यकाल में आदिवासी और झारखंडी संस्कृति को शैक्षणिक विमर्श में सम्मानजनक स्थान मिला।अभिषेक शुक्ला ने कहा कि झारखंड आंदोलन के दौरान डॉ. मुंडा का योगदान राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों मोर्चों पर प्रेरणादायी रहा। उन्होंने आंदोलन को सांस्कृतिक दृष्टिकोण दिया, जिससे झारखंड केवल एक भूगोल नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पहचान के रूप में स्थापित हुआ। उनकी सोच ने राज्य के राजनीतिक विमर्श को नई दिशा दी और आदिवासी समाज में आत्मविश्वास जगाया।
उन्होंने कहा,
ह्लडॉ. रामदयाल मुंडा का जीवन हमें यह संदेश देता है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी हम विश्व पटल पर अपनी पहचान बना सकते हैं। उन्होंने दिखाया कि शिक्षा और संस्कृति, दोनों मिलकर समाज को सशक्त बना सकते हैं। उनकी शिक्षाएं और विचार आज भी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत हैं।ह्व