डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन

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Eksandeshlive Desk

रांची : संस्कृत सप्ताह के छठे दिन बुधवार को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में एक अत्यंत प्रभावशाली पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। यह आयोजन केवल एक शैक्षिक क्रिया नहीं, बल्कि छात्रों में संस्कृत भाषा और उसकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के प्रति गहन सम्मान उत्पन्न करने के लिए किया गया एक विशेष प्रयास था। इस प्रतियोगिता ने छात्रों की सृजनशीलता को प्रोत्साहित करते हुए संस्कृत साहित्य में निहित शाश्वत ज्ञान के प्रति उनकी अभिरुचि को और भी सुदृढ़ किया।
इस प्रतियोगिता में बड़ी संख्या में छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिनमें शुभम केसरी, प्रेरणा, मेघारानी, डौली कुमारी, आंचल कुमारी, अनामिका भारती, प्रेरणा भारती, गरिमा कुमारी, मीरा कुमारी, रिया कुमारी, उदय कर्मकार, शोभा मुंडा, मोनिका टोप्पो आदि सम्मिलित थे। छात्रों की इस व्यापक सहभागिता ने इस आयोजन की सफलता को प्रमाणित किया, और यह स्पष्ट किया कि संस्कृत संस्कृति के प्रति उनकी उत्सुकता और सम्मान कितना गहन है।
प्रतियोगिता की संरचना अत्यंत चुनौतीपूर्ण एवं प्रेरणादायक थी। छात्रों को पूर्व निर्धारित संस्कृत श्लोकों में से किसी एक का चयन करके, उस पर आधारित एक चित्रात्मक पोस्टर तैयार करना था। इस सृजनात्मक कार्य ने छात्रों को केवल श्लोकों का पाठ करने से कहीं आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिससे वे चित्रों के माध्यम से कथा कहने की कला में निपुण हो सके। यह उनके लिए ‘हजार शब्दों के बराबर एक चित्र’ का सजीव उदाहरण प्रस्तुत करने का एक अद्वितीय अवसर था।
प्रत्येक पोस्टर को चयनित श्लोक का चित्रात्मक प्रतिनिधित्व करना था, जो एक बौद्धिक और कलात्मक रचना थी। छात्रों ने इस चुनौती को अत्यंत उत्साह के साथ स्वीकार किया और ऐसे पोस्टर तैयार किए जो न केवल दृष्टिगत रूप से आकर्षक थे, बल्कि संस्कृत श्लोकों की गहनता और गूढ़ता को भी संजीवित करते थे।
एक छात्र ने ‘यदा यदा हि धर्मस्य…’ श्लोक को चुना और एक मनोहारी पोस्टर तैयार किया, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के अवतारों और उनके धर्म की पुनर्स्थापना के कार्यों को जीवंत रूप में दर्शाया गया। यह पोस्टर नेत्रों के लिए एक आनंद था, जिसने धर्म और अधर्म के बीच शाश्वत संघर्ष और धर्म की विजय में दैवीय हस्तक्षेप को सजीव कर दिया। एक अन्य प्रतिभागी ने ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते…’ श्लोक पर ध्यान केंद्रित किया और उसके माध्यम से कर्म के महत्व और फल की अपेक्षा से मुक्त होने के विचार को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। यह पोस्टर इस शाश्वत सिद्धांत को संप्रेषित करता है कि मनुष्य को अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, न कि उसके फल पर, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना प्राचीन काल में था। इसी क्रम में, एक छात्र ने ‘उत्तिष्ठत जाग्रत…’ पर आधारित पोस्टर प्रस्तुत किया, जो स्वामी विवेकानंद के संदेशों से प्रेरित था। इस पोस्टर में जागरूकता और जीवन में सतर्कता का संदेश गूंजता था, जो विद्यार्थियों को जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति तक जागरूक और सक्रिय रहने के लिए प्रेरित करता था। एक अन्य पोस्टर में ‘तुलसीकाननं चैव गृहे…’ श्लोक को आधार बनाकर तुलसी के पौधे की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता को दर्शाया गया। इस पोस्टर ने तुलसी के पौधे की भारतीय संस्कृति में विशिष्टता और उसके धार्मिक महत्व को रेखांकित किया।एक अन्य छात्र ने आश्रम व्यवस्था पर आधारित पोस्टर के माध्यम से भारतीय समाज में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रमों की भूमिका और उनके महत्व को दर्शाया, जो आत्म-साक्षात्कार और पूर्णता की यात्रा का प्रतीक था।
संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने इस आयोजन की प्रशंसा करते हुए कहा कि संस्कृत श्लोकों को कला के माध्यम से प्रस्तुत करना एक अभिनव और प्रभावशाली तरीका है। यह न केवल श्लोकों की शिक्षा देता है, बल्कि छात्रों को संस्कृत भाषा और संस्कृति के प्रति भी आकर्षित करता है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन छात्रों के लिए केवल एक शैक्षिक और रचनात्मक अनुभव ही नहीं था, बल्कि इसने संस्कृत भाषा और संस्कृति के प्रति उनके मन में गहरी रुचि और सम्मान को भी बढ़ाया।
इस पूरे कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. राहुल कुमार और डॉ. जगदम्बा प्रसाद द्वारा किया गया। पोस्टर प्रतियोगिता के विजेताओं की घोषणा गुरुवार को की जाएगी।