Eksandeshlive Desk
रांची : संस्कृत विभाग, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची, संस्कृत विभाग, रांची विश्वविद्यालय रांची एवं संस्कृत भारती के संयुक्त तत्त्वावधान में संस्कृत सप्ताह के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में संस्कृत सप्ताह के पंचवे दिन विभिन्न सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन दिन मंगलवार को विभिन्न सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। इसमें एकल गीत, सामूहिक गीत तथा एकल नृत्य जैसी प्रतियोगिताएं सम्मिलित थीं। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा का उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए संस्कृत भाषा के महत्व और इसकी समृद्ध धरोहर को उजागर किया। प्रतियोगिताओं ने वातावरण को संस्कृतमय बना दिया।
एकल गीत प्रतियोगिता में विद्यार्थियों ने विविध विषयों पर आधारित गीतों का प्रस्तुतीकरण किया। प्रतियोगिता के अंतर्गत “रत्नगर्भा धरा” गीत ने धरती की महिमा का गुणगान किया, वहीं “मृदपि च चन्दनम्” गीत ने संस्कृत भाषा की मधुरता को स्वर दिया। “नय तव बालमिमं यशोदे” गीत के माध्यम से यशोदा और कृष्ण के वात्सल्यपूर्ण पावन संबंधों की अभिव्यक्ति की गई। “जननी जन्मभूमि” गीत ने मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और प्रेम को अभिव्यक्त किया। “श्रीवल्ली” तथा “जीवने तु भवतु संस्कृतम्” जैसे गीतों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। “यदि त्वं मिलसि माम्” और “निनादय नवीनामये वाणिवीणां” गीतों ने संगीत की नवीन धारा को प्रवाहित किया, जबकि “शक्ति सम्भृतम्” ने शक्ति और साहस की भावना को अभिव्यक्त किया।
समूह गीत प्रतियोगिता ने विद्यार्थियों की सामूहिकता और तालमेल को प्रकट किया। “सुरस सुबोधा” गीत ने संस्कृत भाषा की सरलता और सरसता का परिचय दिया। “मनसा सततम् स्मरणीयम्” ने हमें सतत स्मरण करने योग्य महान विचारों की ओर प्रेरित किया। “देववाणीं वेदवाणीं” गीत ने संस्कृत को देववाणी के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए इसके आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व को रेखांकित किया। सामूहिक गीतों के माध्यम से विद्यार्थियों ने संस्कृत की महिमा को नए कलेवर में प्रस्तुत किया जिसने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
एकल नृत्य प्रतियोगिता में विद्यार्थियों ने अपने नृत्य कौशल का प्रदर्शन किया। “चन्द्रचूड शंकर” नृत्य ने भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया, जिसमें उनकी चंद्रमा और त्रिशूलधारी स्वरूप की सुंदर प्रस्तुति की गई। “अधरं मधुरम्…” नृत्य ने भगवान कृष्ण के शारीरिक अंगों की मधुरता को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया। “हरिस्तोत्रम्” नृत्य ने भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए उनकी महिमा का गान किया। “सरलभाषा संस्कृतम्” नृत्य ने संस्कृत भाषा की सरलता और इसके व्यावहारिक पक्ष को स्पष्टता प्रदान की।
संस्कृत सप्ताह के चौथे दिन की आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं विद्यार्थियों को एक मंच प्रदान किया जिसमें उन्होंने अपने कौशल का प्रदर्शन किया। कार्यक्रमों ने उन्हें संस्कृत भाषा और संस्कृति के प्रति जागरूक और संवेदनशील भी बनाया। इस अवसर पर उपस्थित दर्शकों ने विद्यार्थियों के प्रदर्शन की भूरि-भूरि प्रशंसा की और संस्कृत के प्रति अपनी आस्था और प्रेम को प्रकट किया।
इस अवसर पर राँची विश्वविद्यालय की मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) अर्चना दुबे ने संस्कृत सप्ताह के अवसर पर विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि नृत्य, गीत और अन्य कला रूपों के माध्यम से संस्कृत भाषा को जीवंत बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि इन कलाओं के द्वारा हम संस्कृत के गहन विचारों और भावनाओं को सरल और सजीव रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा कि वे इन विधाओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करें और संस्कृत को समृद्ध बनाने में योगदान दें।
डॉ. मधुलिका वर्मा ने नृत्य प्रदर्शन के दौरान सावधानी पर जोर देते हुए कहा कि नृत्य केवल एक कला नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने विद्यार्थियों को सलाह दी कि वे नृत्य करते समय शारीरिक संतुलन और मुद्राओं की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें। साथ ही, संस्कृत गीतों और भजनों के अर्थ को समझते हुए उसे नृत्य में व्यक्त करें, ताकि दर्शकों तक इसकी गहनता और भावनाएं सही रूप में पहुंच सकें।
डॉ. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने अपने सन्देश में प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि प्रतियोगिताओं में भाग लेना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल प्रतिभा को मंच प्रदान करता है, बल्कि उसमें निखार भी लाता है। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा के माध्यम से प्रतिभागी अपने कौशल और ज्ञान को परख सकते हैं और नए अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है और प्रतिभागी अपने लक्ष्यों की ओर अधिक दृढ़ता से अग्रसर हो सकते हैं।
डॉ. श्रीप्रकाश सिंह ने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा और कला की सेवा करना हमारे लिए गौरव का विषय है। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे अपनी प्रतिभा का उपयोग कर संस्कृत के ज्ञान और संस्कृति को आगे बढ़ाएं और इसके संरक्षण और संवर्धन में अपना योगदान दें।
डॉ. चन्द्रमाधव सिंह ने संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संदेश देते हुए कहा कि संस्कृत भाषा हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और ज्ञान की आधारशिला है। उन्होंने विद्यार्थियों को संस्कृत के अध्ययन और संरक्षण के प्रति समर्पित रहने का आग्रह किया, जिससे यह अमूल्य धरोहर आगामी पीढ़ियों तक सुरक्षित और प्रासंगिक बनी रहे।
डॉ. भारती द्विवेदी ने गीत प्रस्तुति की विशेषताओं पर जोर देते हुए कहा कि गीत गाते समय उच्चारण की स्पष्टता और भावनाओं की अभिव्यक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया कि वे गीत के अर्थ को समझकर अपनी प्रस्तुति में भावपूर्ण संप्रेषण करें, जिससे श्रोताओं के हृदय में गीत की गहराई पहुँचे।
प्रतियोगिता के निर्णयक थे-डॉ. मधुलिका वर्मा, डॉ. भारती द्विवेदी एवं डॉ. चन्द्रमाधव सिंह। प्रतियोगिताओं का संयोजन डॉ.जगदम्बा प्रसाद ने किया।
एकल गीत प्रतियोगिता के विजयी प्रतिभागी- प्रथम-सर्वोत्तमा कुमारी, द्वितीय-तनु सिंह, तृतीय-अनामिका भारती, सान्त्वना-कृति कुमारी, चन्दन कुमार, गरिमा कुमारी
समूहगीत प्रतियोगिता-प्रथम- बाणभट्ट समूह (आयुष एवं शुभम) द्वितीय- दण्डी समूह (गरिमा, मोनिका, रिया), तृतीय- पाणिनि समूह (पल्लवी, काजल, होलिका, तनु, प्रेरणा), सान्त्वना- भास समूह (सुप्रिया, रीता रीना), श्रीहर्ष समूह (वर्षा, विमला, कृति, सर्वोत्तमा)
एकल नृत्य प्रतियोगिता- प्रथम-उदय कर्मकार, द्वितीय- अनामिका भारती, तृतीय-सर्जना राठौर, सान्त्वना-मेनका कुमारी एवं निकिता कुमारी
कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. श्रीमित्रा, डॉ. राहुल कुमार, शुभम केसरी, आशीष कुमार, माधुरी सिंह, शिवम नारायण, प्रतिमा चाहौन, अमित मोहन, पंकज कुमार आदि की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।