रांची: आगामी 14 सितंबर 2024 को झारखंड के प्रसिद्ध करम पूजा होने वाली है। इसको लेकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के कुड़मालि विभाग ने ‘जाउआ उठा’ नेग आज 8 सितंबर 2024 को किया। इसे 7 दिन का ‘जाउआ उठा’ कहा जाता है।बताते चलें कि कुड़मि समाज एवं कुड़मालि संस्कृति में करम पूजा भादर महीने के एकादशी (11 वीं) के दिन करम डाली की पूजा की जाती है। इसके पूर्व 9, 7 अथवा 5 दिन पूर्व ही जाउआ को लड़कियों द्वारा उठाया जाता है। इससे उठाने पूर्व के दिन के अनुसार उतने भिन्न प्रकार के बीजों को बालु में अंकुरित करने के लिए दिया जाता है। विभाग में 7 दिन का जाउआ उठाया गया। अतः इसमें 7 भिन्न तरह के बीज (कुरथि, जनहाइर, बिरहि, मुंग, जअ, मटर, बुट) को पारंपरिक विधि-विधान के अनुसार सर्वप्रथम सरसों तेल एवं हल्दी से मिलाया गया। फिर जाउआ डालि में इसे तीन परत में बुना गया। पहले परत में बालि दिया गया फिर इन बीजों को बुना गया फिर बालि से ढका गया। जिस डालि में जाउआ उठाया गया उससे लड़कियों द्वारा सिंदुर एवं काजल का टीका दिया गया और इसको प्रणाम कर उठाया गया। इसके पश्चात कुड़मालि भाशा में जाउआ उठा पुरखा नृत्य-गीत किया गया। जाउआ उठाने का कार्य सुबह से बिना खाये – पीये लड़कियों द्वारा किया जाता है। जो लड़कियां जाउआ उठाती है, उसे ‘जाउआ माइ’ कहा जाता है और जिस डालि में इसे उठाया जाता है, उसे ‘जाउआ डालि’ कहा जाता है। बताते चलें कि कुड़मि समाज एवं कुड़मालि संस्कृति में जाउआ पर्व का सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इसको शादी के पूर्व किया जाता है। इसमें कुंवारी लड़की को बच्चा होने के पूर्व मातृत्व का ऐहसास होता है। वह एक बच्चा का लालन-पालन जिस तरीके से करती है, उसी तरीके से इस जाउआ को भी करती है। इसलिए करम डालि के पूजा के पूर्व तक कई परहेज में जाउआ माइ सब रहती है। जिसमें गुड़, खट्टा, तीता, दूध, दही, भोजन में उपर से नमक लेकर खाने को मनाही रहता है।इस अवसर में कुड़मालि विभाग में अध्ययनरत यूजी-पीजी एवं पूर्ववर्ती छात्र-छात्राओं के साथ विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. निताई चंद्र महतो उपस्थित थे।
