अशोक वर्मा
मोतिहारी: आज मुंशी सिंह महाविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के तत्वावधान में प्रेमचंद जयंती समारोह का भव्य आयोजन संपन्न हुआ जिसका केंद्रीय विषय था,”वर्तमान संदर्भ और प्रेमचंद”। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सह उद्घाटनकर्ता बी.आर. ए.बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के पूर्व कुलपति प्रो.(डॉ.)रवींद्र कुमार वर्मा रवि थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि सहित प्राचार्य प्रो.(डॉ.) अरुण कुमार,हिंदी विभागाध्यक्ष, प्रो .(डॉ.)एम.एन. हक़, प्रो.(डॉ.) मृगेंद्र कुमार और उपस्थित अतिथियों ने विधिवत दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। अपने उद्घाटन व्याख्यान में मुख्य अतिथि ने रूस के प्रसिध्द कथाकार मैक्सिम गोर्की और चीन के कथाकार लु शुन से प्रेमचंद की तुलना करते हुए कहा कि तीनों साहित्यकारों की संवेदना एक जैसी है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद हिन्दुस्तानी भाषा के हिमायती थे इसीलिए हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं के साझा साहित्यकार थे। उन्होंने सर्वहारा वर्ग को अपने कथा साहित्य में विशेष स्थान प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि तुलसी, कबीर और प्रेमचंद हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य शिखर हैं। हमें प्रेमचंद के साहित्य से सीखना चाहिए। इस अवसर पर स्वागत करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.मृगेंद्र कुमार ने कहा कि समग्र प्रेमचंद साहित्य मानवता की संवेदना का साहित्य है। प्रेमचंद का उपन्यास गोदान कृषक जीवन की महागाथा है जिसमें समस्त ग्रामीण संस्कृति अपने चटख रंगों के साथ दिखलाई देती है।इस अवसर पर डॉ.श्रीकृष्ण सिंह महिला महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.रौशनी विश्वकर्मा और लक्ष्मीनारायण दूबे महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.संतोष विश्नोई ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। एल.एन. डी.कॉलेज के हिंदी विभाग के डॉ.रविरंजन कुमार सिंह, श्रीकृष्ण सिंह महिला महाविद्यालय की डॉ.रंजना कुमारी, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो.एकबाल हुसैन, जनसंस्कृतिक मंच के अशोक कुमार वर्मा, जलेस के ध्रुव त्रिवेदी, हिंदी विभाग के डॉ. मनोहर कुमार श्रीवास्तव, क्षितिज संस्था के डॉ.विनय कुमार, पत्रकार संजय कुमार पांडेय आदि ने भी विचार सत्र में अपनी बातों को रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.(डॉ.) अरुण कुमार ने कहा कि प्रेमचंद आज के संदर्भों में भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना अपने ज़माने में थे। हिंदी में वे सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लेखक हैं। उनकी रचना प्रक्रिया पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि प्रेमचंद सिनॉप्सिस अंग्रेजी में बनाते थे, मूल लेखन उर्दू में करते थे और उसका अनुवाद हिंदी में करते थे इसीलिए उनकी भाषा इतनी लोकप्रिय हुई। इस अवसर पर एक कवि सम्मेलन सह मुशायरे का भी आयोजन हुआ। इसमें प्रसिध्द शायर गुलरेज शहज़ाद, डॉ.सबा अख्तर शोख, डॉ.मधुबाला सिन्हा, बिन्टी शर्मा, संजय कुमार पांडेय, गौरव भारती, मनोहर कुमार श्रीवास्तव ने अपनी अपनी कविताओं और ग़ज़लों के द्वारा श्रोताओं की काव्य संवेदना को झकझोर कर रख दिया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रो. मृगेंद्र कुमार ने किया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के डॉ.गौरव भारती ने किया।