गुजरात का कच्छ बनेगा चीतों के लिए नई पहचान, अफ्रीका से अगले महीने आएंगे 10 चीते

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Eksandeshlive Desk

गांधीनगर : गुजरात के कच्छ को आमतौर पर पिछड़ा, सूखा और आपदाग्रस्त इलाका माना जाता है, लेकिन अब इसकी पहचान बदल रही है। यह कच्छ का इलाका राज्य का ‘चेरापूंजी’ तो बन ही गया है। अब यह औद्योगीकरण का ग्रोथ इंजन भी बन चुका है और यह बन्नी की भैंसों के साथ-साथ “बन्नी के चीतों” की पहचान से भी जुड़ने जा रहा है। अगले महीने यहां अफ्रीका से 10 नर-मादा चीते लाए जाएंगे। वन मंत्री मुलुभाई बेरा के बयान के अनुसार बन्नी के घास के मैदान में चीतों के लिए 600 हेक्टेयर का आवास क्षेत्र तैयार किया जा रहा है, जिसका 85 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। चीता ब्रीडिंग सेंटर में 10 किलोमीटर के खुले क्षेत्र में इसका कार्य किया जा रहा है। प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों ने यहां अगले महीने 10 नर-मादा चीते लाए जाने की पुष्टि की है।

78 साल बाद फिर लौटेगा चीता : मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क की तर्ज पर कच्छ में भी अफ्रीका से चीते लाए जाएंगे। 78 साल बाद गुजरात की धरती पर चीते के पांव पड़ेंगे। केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की टीम और वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स ने गहन अध्ययन के बाद बन्नी क्षेत्र का चयन किया है। बन्नी का चयन होते ही स्थानीय लोगों की कहावत है कि “बिगड़ी तो भी बन्नी” याद आएगी। इस प्रोजेक्ट के लिए 2024 के अप्रैल महीने से बन्नी के घास के मैदान में काम चल रहा है। पिछले कुछ समय से अच्छे मानसून के चलते बन्नी ब्रांड की घास फिर से उगने लगी है, जिसमें जिंझवो, ध्रबल आदि शामिल हैं। ये घास स्थानीय पशुपालन के लिए उपयोगी है। चीतों के रहवास और भ्रमण क्षेत्र का अब तक 80 फीसद काम पूरा हो चुका है। प्रोजेक्ट का कार्य देख रहे वरिष्ठ वन अधिकारी डॉ. संदीप कुमार ने मीडिया को बताया कि गुजरात सरकार के साथ-साथ भारत सरकार ने भी इस प्रोजेक्ट में आर्थिक और संसाधनों में मदद दी है। केंद्र सरकार ने चीता ब्रीडिंग सेंटर के लिए अब तक 14.70 करोड़ रुपये की ग्रांट मंजूर की है। उन्होंने बताया कि इस फंड से हैबिटैट सुधार, क्वारंटीन बोमा, ऑफिस और मॉनिटरिंग रूम, वेटरनरी हॉस्पिटल, स्टाफ रूम, शेड, एंट्री गेट, पानी की पाइपलाइन, तृणाहारी (घास खाने वाले) ब्रीडिंग सेंटर और ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम जैसी सुविधाएं तैयार की गई हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत हैबिटैट सुधार, क्वारंटीन सेंटर, बोमा, सॉफ्ट रिलीज बोमा, चालन विकास, पानी की व्यवस्था और हॉस्पिटल जैसी लगभग 80 प्रतिशत काम पू किया जा चुका है। पिछले छह महीनों से “प्री-बेस” पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं।