भांग के लिए सरकार देती है सरकारी ठेका और गांजा के लिए जेल! इतना भेदभाव क्यों?

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अक्सर देखा गया जो लोग भांग और गांजे का सेवन करते हैं उन्हें समाज के लोग गंजेड़ी, भंगेड़ी और चरसी जैसे नाम से बुलाते हैं. गांजे और भांग का अधिक सेवन करने से नशा होता है जो स्वास्थय के लिए हानिकारक है, शोधकर्ताओं की माने तो उनका यह मानना है इससे कई तरह की दवाईयां बनायी जाती है. दावा यह भी किया जाता है कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों को कंट्रोल करने की दवा बनायी जाती है. दावा सही है तो फिर इसे भारत में इसकी खेती करने, खरीदने–बेचने पर पाबंदी क्यों है? भारत में बैन है पर बाकी देशों में बैन क्यों नहीं है? वहीं अगर बात करें अमेरिका कि तो अमेरिका के कुछ राज्यों में मरिजुआना यानी की गांजे के उपयोग की छूट दे दी गयी है और अब ब्रिटेन में भी गांजे का मेडिकल उपचार में इस्तेमाल करने पर विचार किया जा रहा है.

तो आइये,  समझते हैं भांग और गांजा में क्या अंतर है,  इसके क्या फायदे और नुकसान है,  इसे भारत में कब और क्यों बैन किया गया साथ ही दूसरे देशों में बैन क्यों नहीं है.

भांग और गांजे का भारत में क्या इतिहास रहा और यह हिंदू धर्म से कैसे जुड़ा है

भांग और गांजे के इतिहास के बारे में बात करें तो प्राचीन काल में मिस्र की महिलाओं द्वारा गांजा अर्थात् मरिजुआना को शहद में मिलाकर सेवन करने के उदाहरण पाये जाते हैं. वहीं 1985 तक भारत में भी भांग से काफी असरदार दवाएं बनाई जाती थीं. उन दिनों भारत में राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे. 1985 तक गांजा और भांग को नशा के श्रेणी में नहीं रखा गया था. बात करें पौराणिक धार्मिक ग्रंथों की तो उनमें भी भांग को सर्वोत्तम औषधीय पौधा बताया गया है. बता दें,  वेदों के चौथे ग्रंथ अथर्ववेद के अनुसार- गांजा उन जड़ी-बूटियों में से है, जिसमें चिंता को कम करने वाला औषधीय गुण होता है.

अब इतिहास के उन पन्नों पर आते हैं जहां से भांग के साथ कानून को जोड़ा गया. सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र ने सन् 1961 में भांग को सिंथेटिक दवाओं की श्रेणी में शामिल किया और भारत को इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव डाला गया पर भारत ने तब संयुक्त राष्ट्र की एक नहीं सुनी. बात सिर्फ दवा बनाने का ही नहीं था बल्कि हिंदू धर्म का भी था. उन दिनों हिंदू धर्म के लोग गांजे से काफी जुड़े थे और गांजे को धार्मिक भावनाओं से जोड़ दिया था. 1985 में, संयुक्त राष्ट्र ने और जोर दिया, अंततः न चाहते हुए भी गांजे और भांग सिंथेटिक दवा की श्रेणी में डाला गया और उस पर प्रतिबंध लगा दिया. जिसके बाद बाजार में गांजे-भांग की बिक्री अवैध हो गई.

गांजे और भांग में क्या अंतर है.

गांजा और भांग, यह दोनों ही नशीली पदार्थ के श्रेणी में आते हैं. जानकारी के लिए बता दें,  भांग और गांजा दोनों एक ही प्रजाति के पौधे से तैयार किए जाते हैं. भांग को कैनाबीस के नाम से जाना जाता है तो वहीं गांजे को मरिजुआना के नाम से जाना जाता है. हालांकि, आपमे से कई लोगों को लगता होगा कि भांग और गांजे में बहुत अंतर होता होगा,  जबकि ऐसा नहीं है. दरअसल, भांग और गांजा दोनों एक ही प्रजाति के पौधे होते हैं. बस इसको नर और मादा के श्रेणी में बांटा गया है. इसमें जो नर प्रजाति के पौधे होते हैं उससे भांग बनता है और मादा प्रजाति के पौधे से गांजा बनता है. वहीं ये दोनों जिस पौधे से बनते हैं उसे कैनाबिस यानी की भांग का पौधा कहते हैं. भले ही दोनों एक पौधे से बनते हों लेकिन इनसे नशा करने का तरीका बिल्कुल अलग है. नर-कैनाबिस के पत्ते और उसके बीज को एक साथ पीसकर गोला बनाया जाता है या फिर लिक्विड फॉर्म में पी कर नशा करते हैं. वहीं मादा-कैनाबिस में मंजर होता है, मंजर को सुखा कर तंबाकू की तरह रगड़कर सिगरेट या किसी पेपर में फोल्ड करके सुलगा कर पीते है जिसके बाद नशा होता है.

सरकार भांग की दुकान के लिए ठेका देती है, वहीं गांजे को खुलेआम बेचने पर 20 साल तक की जेल, ऐसा क्यों

भारत सरकार आबकारी विभाग के द्वारा लॉटरी जारी करती है. जिसका नाम उस लॉटरी में आता है उसे भांग की दुकान का ठेका या फिर ये कह ले लाइसेंस दिया जाता है. जानकारी के लिए बता दें,  आबकारी विभाग राज्य सरकार का कर राजस्व अर्जन विभाग है. यह शराब, , नशीली दवाओं, मादक द्रव्यों के सेवन और इन स्रोतों में से प्रत्येक से राजस्व एकत्र करने के निर्माण, कब्जे, बिक्री, आयात, निर्यात और परिवहन से संबंधित कानूनों और नियमों से संबंधित होता है.

ठेका खोलने से पहले और खोलने के बाद कुछ नियम-कानून बनाए गये थे, जिसमें पहला नियम यह था कि शहर में एक दुकान खोली जाएगी बाद में ब्लॉक स्तर पर दुकान खोलने की बात की गई थी. दरअसल, डेढ़ दशक के बाद राज्य सरकार ने फिर से भांग बेचने की अनुमति दी है साथ ही कुछ नई शर्तों को भी लागू किया जो इस प्रकार है.

-भांग की सप्लाई सरकारी डिपो से होगी

-ठेके के बाद भांग से बनी मिठाई, ठंडाई, लस्सी के लिए आबकारी विभाग से अनुमति लेना जरूरी है

-एक व्यक्ति एक बार में पांच किलो तक भांग खरीद सकता है

-ठेके पर पत्ती और चुरन के रूप में बेचने के साथ-साथ इसके 200-300 ग्राम के गोली की शक्ल में बचने की अनुमति है.

बात करे गांजे कि तो भारत में गांजे को खुलेआम नहीं बेच सकते हैं. पकड़े जाने पर 10 से 20 साल तक की जेल हो सकती है. जेल कितने दिनों का होगा यह पकड़े गए गांजे की मात्रा को देखकर लागू होगा. अधिक है तो 20 साल तक की जेल हो सकती है और कम है तो 10 साल तक का जेल होने का प्रावधान है.

दरअसल, भांग के मुकाबले गांजा ज्यादा नशीला पदार्थ है, साथ ही इसे सुलगा कर फूंकने से फेफड़े का कैंसर, अस्थमा जैसी कई बीमारियां हो सकती है, शराब के मुकाबले गांजा सस्ता मिलने से युवा पीढ़ी इसके लती होते जा रहे थे. मीडिया रिपोर्ट दावा करती है कि गांजा एक सस्ता नशा है, गांव और शहरों में बढ़ रही क्राइम में सस्ता नशा का बहुत बड़ा योगदान रहा है. वहीं कई लोगों का मानना है कि गांजे की खरीदारी ज्यादा होने से शाराब की बिक्री पर असर दिखने लगा था इसलिए सरकार ने रोक लगा दी. पहले गांजे का इस्तेमाल भी खुले तौर पर किया जाता था जिसके बाद साल 1985 में संसद से एक कानून पारित किया गया उस समय राजीव गांधी की सरकार थी. पारित किए गये बिल में लिखा था कि “किसी व्यक्ति को मादक दवाओं के निर्माण, उत्पादन, खेती, स्वामित्व, खरीद, भण्डारण, परिवहन, उपभोग करने या रखने के लिए प्रतिबंधित करता है” इस कानून को दुबारा 17 मार्च, 1986 को NDPSएक्ट के सेक्शन 20 के तहत दोबारा लागू किया जिसमें साफ लिखा गया “कैनेबिस यानी की भांग के पौधे के और कैनेबिस के संबंध में उल्लंघन के लिए दंड है”.

भांग और गांजे के लिए NDPS ACT-20 (नारकोटिक्स और साइकोट्रॉपिक सब्सटैंस एक्ट) में क्या प्रावधान है ?

NDPS (नारकोटिक्स और साइकोट्रॉपिक सब्सटैंस एक्ट) ACT 20 के अंतर्गत प्रावधान कुछ इस प्रकार हैं –

-इसके खरीद-बिक्री, उत्पादन, परिवहन, आयात-निर्यात, इस पौधे के उत्पाद गांजे को रखना भी दंडनीय अपराध  माना जाएगा.

-इसके लिए कठोर कैद की सज़ा का प्रावधान है, जो मात्रा के हिसाब से तय हो सकती है. यदि मात्रा कम हो तो छह महीने या एक साल तक  जेल के साथ ही 10 हज़ार रुपये तक जुर्माना हो सकता है या फिर दोनों.

ज़्यादा मात्रा होने पर कम से कम एक लाख रुपये तक जुर्माने के साथ ही 20 साल तक की जेल की सजा हो सकती है.

-भांग के पौधे को उगाने को प्रतिबंधित करता है.

-किसी भी नियम के उल्लंघन पर सजा दी जाएगी.

क्या भांग एक सिंथेटिक दवा है ?

शोधकर्ताओं का मानना है कि भांग एक सिंथेटिक दवा है. बता दें, किसी रासायनिक तत्वों से मिलकर या मानव के द्वारा बना कर तैयार की गई वस्तु ‘सिंथेटिक’ कहलाती है. जबकि भांग तो प्राकृतिक रूप से मिलता है. इसे बनाया नहीं जाता है और न किसी रसायनिक तत्वों (केमिकल) की जरूरत पड़ती है फिर इसे ‘सेसिंथेटिक’ की श्रेणी में क्यों रखा गया. यह किसी रहस्य से कम नहीं है. खैर, इसका मेडिसिन के तौर पर इस्तेमाल कैसे करना है और किन समस्याओं में करना है इसे राज रखा गया है. हालांकि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि भांग एक आयुर्वेद मेडिसिन की श्रेणी के अलावा यह नशे की श्रेणी में भी आता है. आज के दौड़ में इससे बनने वाली जो भी दवा है और इसका इस्तेमाल किस रोग के लिए किया जाता है इसकी पुष्टि अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है.

 

भांग और गांजे के फायदे – नुकसान

आमतौर पर भांग और गांजे का सेवन लोग नशे के लिए करते हैं, बात करें इसके फायदे की तो प्राचीन समय में लोग आयुर्वेद इलाज पर ज्यादा भरोसा करते थे, उस समय गांजे और भांग को जड़ी-बुटी की श्रेणी में रखा गया था. इसका प्रयोग आयुर्वेद इलाजों में औषधि के रूप में किया जाता था. वेदों में लिखा है इससे बनने वाली औषधि जो पुराने दर्द,

यौन उत्तेजना को बढ़ाने, अवसाद, चिंता, भूख न लगना, शरीर में दर्द, हड्डियों के जोड़ों के दर्द, गठिया जैसी कई बिमारियों के इलाज के लिए होता था. हालांकि अब लोग इसका इस्तेमाल केवल नशे और यौन उत्तेजना को बढ़ाने के लिए करते हैं.

भांग और गांजे के फायदे कितने है यह तो समझ गए होगें अब बात करते है इसके क्या-क्या नुकसान हैं

भांग और गांजे के इन तमाम फायदे के बाद भी इसका मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता हैं

-गांजे के ज्यादा सेवन से मानसिक बीमारियों का खतरा बढ़ रहा हैं

-गांजे के नियमित सेवन से आप प्रेरणाविहीन ( Demotivated ) महसूस कर सकते हैं

-यदि आप नियमित गांजे का सेवन करते हैं तो आपकी मानसिक स्थिति पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता हैं

-अत्यधिक यौन उत्तेजना होने से शुक्र ग्रंथि का कैंसर (Testicular cancer) हो सकता हैं

-सांस से जुड़ी बीमारियों का कारण बन सकता है

अमेरिका ने भी किया भांग और गांजे पर शोध

भारत में प्राचीन काल से ही भांग और गांजे से दवा बनाने का इतिहास रहा है जिसके बाद कई अलग-अलग देशों में अब इसपर शोध किए जा रहे हैं. ‘जर्नल ऑफ साइकोएक्टिव ड्रग्स’ के मुताबिक इस शोध को अमेरिकी राज्य में 1000 लोगों पर किया गया था और शोध के बाद जो सामने आया वह कुछ इस प्रकार है-

-शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग दर्द की दवा की जगह भांग लेते है उनमें 80 प्रतिशत लोगों को आराम मिलता है.

-जो लोग Opioid दर्द निवारक ले रहे थे उनमें भी 88 प्रतिशत लोगों को इसकी जरूरत नहीं पड़ रही थी.

-शोध में यह भी दावा किया गया है कि भांग Opioid दवा का उपयोग को कम करने में सहायक हो सकता है. आपको बता दे, Opioid एक दर्द निवारक दवाओं का ग्रुप है जो बहुत ज्यादा दर्द होने पर उपयोग किया जाता हैं. इन दवाओं का साइड इफेक्ट भी बहुत ज्यादा होता है.

-इस बारे में एक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि दर्द दूर करने वाली दवाओं का ब्लड सर्कुलेशन और किडनी पर बुरा असर पड़ता है.

अमेरिका में भी है भांग और गांजे पर बैन

बीते साल मीडिया रिपोर्ट में छपी एक खबर के मुताबिक अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के कैंपेन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ‘बाइडेन’ ने कहा था कि “मारिजुआना (गांजा) रखने और उपभोग करने के आरोप में अमेरिकी जेलों में बंद लोगों को रिहा किया जाना चाहिए. क्योंकि धूम्रपान और गांजा रखना अपराध नहीं है और इस कानून ने लाखों लोगों की जिंदगी बर्बाद कर दी है”. साथ ही उन्होंने कहा “सिर्फ गांजा पीने या रखने के आरोप में किसी को जेल में बंद करना सही नहीं है”. गांजा रखने पर लोगों को जेल में डालने से कई जिंदगियां तबाह हुई हैं. गांजा रखने पर लगाए गए क्रिमिनल आरोपों के कारण लोगों को पढ़ाई-लिखाई के मौके, घर और रोजगार नहीं मिल पाते हैं”