इस्लाम के महत्वपूर्ण रातों में एक है शब-ए-बारात

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Ranchi : शब-ए-बरात के मौके पर इबादत करती नन्ही बच्चीयां मायरा और आमीरा कहती है कि शब-ए-बारात शाबान के 14वीं और 15वीं दरमियानी रात को मनाई जाती है ¯ इसमें मुसलमान रातभर जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं, अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और कुरान पढ़ते हैं. साथ ही अपने परिवार, रिश्तेदार, मुल्क और दुनिया की सलामती की दुआ भी करते हैं.शब-ए-बारात में पूरी रात दुआओं का दौर चलता है. इसलिए इसे इबादत, फजीलत, रहमत और मगफिरत की रात कहा जाती है. इस्लामिक धार्मिक मान्यता के अनुसार शब-ए-बारात की रात की गई हरेक जायज दुआओं को अल्लाह कबूल करते हैं और अपने बंदों के गुनाहों को माफ करते हैं. शब-ए-बारात इस्लाम के महत्वपूर्ण रातों में एक है, जब लोग रातभर जागकर न सिर्फ इबादत करते हैं बल्कि गुनाहों से तौबा भी करते हैं. इस रात मुसलमान अपने पूर्वजों यानि जिनका इंतकाल हो चुका है उनकी मगफिरत की भी दुआ करते हैं. लोग शब-ए-बारात पर कब्रिस्तान भी जाते हैं और फातिहा पढ़ते हैं.

इस्लाम के महत्वपूर्ण रातों में एक है शब-ए-बारात

इस्लाम में पांच रातों को अहम माना जाता है. ये वो रातें होती हैं, जब अल्लाह अपने बंदों के जायज दुआओं का कबूल करते हैं. ये पांच राते हैं शब-ए-बारात की रात, ईद की रात, बकरीद की रात, मेअराज की रात और रमजान में शब-ए-कद्र की रात. ऐसी मान्यता है कि इन रातों में अल्लाह की रमहत लोगों पर बरसती है.

रोजा रखने की भी है परंपरा

शब-ए-बारात पर दो दिनों का रोजा रखने का भी महत्व है. पहला रोजा शब-ए-बारात के दिन और दूसरा रोजा अलगे दिन रखा जाता है. हालांकि यह माह-ए-रमजान की तरह फर्ज रोजा ना होकर नफिल रोजा होता है. यानि लोग अपनी श्रद्धा अनुसार रोजा रखते हैं। शब-ए-बारात पर रोजा रखने से पिछले शब-ए-बारात तक के जाने-अनजाने में किए सभी गुनाहों को अल्लाह माफ कर देते हैं.