जेनेसिस फाउंडेशन और अमृता इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के डॉक्टर्स ने दी बच्चे को नई जिंदगी

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Sunil Verma

रांची : अपने नन्हे से जान की टूटती सांसों की डोर को समेटने के लिए गरीब मां-बाप को जब एक आशा की किरण दिखी तो उन्होंने ऑक्सीजन सपोर्ट के सहारे ही झारखंड से कोच्चि (केरल) तक 45 घंटे का ट्रेन से सफर तय कर लिया। हालांकि, बच्चे की सांस उखड़ने से पहले ही मां-बाप के लिए आशा की किरण बने जेनेसिस फाउंडेशन के सहयोग से कोच्चि रेलवे स्टेशन पर ही अमृता इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की लाइव सपोर्ट एंबुलेंस पहुंच गई और अस्पताल में बच्चे का सफल ऑपरेशन कर उसे नई जिंदगी दी गई। झारखंड के आकांक्षी जिला गोड्डा के गरीब परिवार में एक बच्चे ने दिल की गंभीर बीमारी टेट्रालॉजी ऑफ फैलोट और वेंट्रिक्युलर सेप्टल डिफेक्ट के साथ जन्म लिया। छह महीने की उम्र में उसे परेशानी शुरू हो गई। उसे दूध पीने में समस्या होने के साथ बार-बार फेफड़े का संक्रमण होने लगा। उसके खून में ऑक्सीजन की कमी होने के साथ त्वचा नीली पड़ने लगी। एकाएक उसका वजन गिरने लगा। डॉक्टरों ने इकोकार्डियोग्राम के जरिये पाया कि उसके दिल में खराबी है। इसका पता चलते ही मां-बाप ने बच्चे के सफल इलाज के लिए काफी मशक्कत की लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। इस बीच जरूरतमंदों बच्चों की दिल की जन्मजात बीमारियों के इलाज में सहयोग करने वाले जेनेसिस फाउंडेशन को इसकी जानकारी हुई। फाउंडेशन के लोगों ने बच्चे के मां-बाप से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि उनके बच्चे का इलाज कोच्चि की अमृता इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में सफलतापूर्वक हो सकता है। ऐसे में मां बाप ऑक्सीजन सपोर्ट के सहारे अपने तीन वर्षीय मासूम बेटे को लेकर झारखंड से कोच्चि के सफर पर निकल पड़े। मां-बाप के कोच्चि रेलवे स्टेशन पहुंचने पर अमृता इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के डॉक्टर एंबुलेंस से उसे अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां आनन-फानन में उसका ऑपरेशन किया गया। तीन घंटे तक चला ऑपरेशन आखिरकार सफल रहा और अब बच्चे की हालत स्थिर है। कुछ साल बाद उसकी एक और सर्जरी होगी ताकि अन्य दिक्कतों को पूरी तरह से ठीक किया जा सके। डॉक्टर के अनुसार टेट्रालॉजी ऑफ फैलोट के इलाज में आमतौर पर एक और सर्जरी की जरूरत पड़ती है। अपने बच्चे के चेहरे पर दोबारा मुस्कान देखकर मां-बाप ने इंस्टिट्यूट के डॉक्टर और जेनेसिस फाउंडेशन की सराहना करते हुए उन्हें भगवान का दूत बताया। बच्चे का इलाज करने वाले मेडिकल साइंसेज के क्लिनिकल प्रोफेसर और पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. आर कृषन कुमार ने बताया कि बच्चे के पल्मोनरी वॉल्व के नीचे की जगह काफी सिकुड़ी हुई थी, जिसके बीच में एक बड़ा छेद था। उसके दिल में दो वेंट्रिकल्स (पम्पिंग चैम्बर्स) भी थे। उसके फेफड़ों में बहुत कम खून जा रहा था। इस कारण उसके रेस्टिंग ऑक्सीजन लेवल्स बेहद कम थे और जब उसे अस्पताल लाया गया उस वक्त ऑक्सीजन लेवल रिकॉर्ड भी नहीं हो पा रहा था। प्रोसीजर के दौरान एक मेटलिक स्टेंट का इस्तेमाल कर उस जगह को स्टेंटेड किया गया। प्रोसीजर के बाद ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल 90 हो गया। बच्चे को अगले दिन फिर से गहन चिकित्सा चाहिये थी, जिसके बाद वह तेजी से ठीक होने लगा। अब वह ठीक है लेकिन एक और सर्जरी करनी होगी। इसमें उसके दिल का छेद बंद किया जाएगा और फेफड़ों तक का रास्ता खोला जाएगा।