झामुमो का झूठ और छल-कपट अब पूरी तरीके से ध्वस्त : सूरज मंडल

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by sunil
रांची : पूर्व सांसद, झारखण्ड स्वशासी परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष एवं झारखण्ड मजदूर मोर्चा के अध्यक्ष डॉ. सूरज मंडल ने कहा है कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का झूठ और छल-कपट अब पूरी तरह से बेनकाब हो गया। डॉ. मंडल ने कहा कि न केवल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा बल्कि कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल भी राजनीतिक दल के नाम पर केवल और केवल झारखण्ड की पहचान, इसकी अस्मिता और विकास के साथ खिलवाड़ करते हुए भ्रष्टाचार में समाहित हो चुके हैं जिसे प्रदेश के सवा तीन करोड़ लोग खुली आँखों से देख रहे हैं। डॉ. मंडल ने कहा कि विशेष रूप से पिछले 8-10 साल में झूठ बोलने और भ्रष्टाचार में लिप्त होकर झारखण्ड के लोगों के खिलाफ काम करने का हेमंत सोरेन, झामुमो और कांग्रेस का अपना कीर्तिमान रहा है। विशेष रूप से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हमेशा लोगों को धोखा दिया है और यह धोखा अब झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्वभाव में समाहित हो चुका है क्योंकि वह अदालत में एक भाषा, अपने भाषणों में दूसरी भाषा, अपने विधायकों एवं गठबंधन में तीसरी भाषा तथा जिन दलाल प्रवृति के लोगों से सरकार घिरी है उनके बीच चौथी भाषा में बात करती है। कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी यात्रा के दौरान विधायक कल्पना सोरेन ने फिर से झूठ और छलावा का एक तीर छोड़ा है जिसमें उन्होंने कहा है कि झारखण्ड गठन के तत्काल बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने जिस अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण की सीमा को 27 प्रतिशत से घटाकर 14 प्रतिशत कर दिया था उसे झारखण्ड मुक्ति मोर्चा सत्ता में लौटते ही पुन: 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर देगी। पूर्व सांसद ने कहा कि झारखण्ड की आम जनता अब झामुमो और और हेमंत सोरेन या कल्पना सोरेन के झांसे में आनेवाली नहीं है और न ही कांग्रेस पार्टी पर ही आम लोगों का भरोसा ह। उन्होंने कहा कि यदि कल्पना सोरेन, ओबीसी आरक्षण के प्रति इतनी ही अधिक संवेदनशील और गंभीर हैं तो आगामी चुनाव में जीत के बाद ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बजाय वह अभी ही क्यों नहीं बढ़ाती और इस मामले पर झामुमो का कोई जिम्मेदार नेता क्यों नहीं कुछ कहता क्योंकि अभी तो सरकार उन्हीं के हाथों में है और अभी आचारसंहिता भी लागू नहीं हुई है।उन्होंने कहा कि विशेष रूप से हेमंत सोरेन या कल्पना सोरेन को यह समझना चाहिये कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ाई जा सकती है। डॉ. मंडल ने कहा कि झारखण्ड गठन में अन्य पिछड़ा वर्ग का योगदान बहुत अधिक महत्वपूर्ण रहा है और यदि ओबीसी समुदाय से आने वाले आंदोलनकारी झारखण्ड अलग राज्य के आंदोलन में शामिल नहीं होते तो झारखण्ड अलग प्रदेश का गठन कभी भी संभव नहीं था। लेकिन झारखण्ड बनते के साथ सबसे पहले ओबीसी के हितों को दरकिनार करते हुए उनके आरक्षण की सीमा को घटाया गया। उन्होंने कहा कि यदि आज उनके आरक्षण की सीमा बढ़ भी जाती है तो सभी जिम्मेदार लोगों को इस बात का यह जवाब देना चाहिए कि पिछले 24 साल में आरक्षण की सीमा घटाने से ओबीसी समुदाय को जिस अपेक्षा और पिछड़ेपन का दंश झेलना पड़ा है उसकी भरपाई कौन करेगा।