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रांची: झारखंड की उच्च शिक्षा प्रणाली इस समय एक गंभीर मोड़ पर खड़ी है, जहाँ कुछ शिक्षकों द्वारा अनेक प्रशासनिक पदों पर एकाधिकार स्थापित किया जा रहा है। यह प्रवृत्ति न केवल संस्थानों में प्रशासनिक असंतुलन को जन्म दे रही है, बल्कि शिक्षण, शोध एवं नवाचार जैसे शैक्षणिक मूल्यों को भी प्रभावित कर रही है।अबुआ अधिकार मंच के प्रतिनिधि और छात्र नेता अभिषेक झा ने स्पष्ट रूप से मांग की है कि: राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में ह्यएक व्यक्ति झ्र एक पदह्ण की नीति को अविलंब और प्रभावी रूप से लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि यह कोई व्यक्ति विरोधी मांग नहीं है, बल्कि यह व्यवस्था को सुचारु, पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की दिशा में एक आवश्यक कदम है। जब किसी एक शिक्षक के पास अनेक प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ होती हैं, तो इसका सीधा प्रभाव संस्थागत कार्य-प्रणाली, निर्णय क्षमता और शैक्षणिक गुणवत्ता पर पड़ता है, जिससे अंतत: छात्र सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। अभिषेक झा ने कहा कि जब एक व्यक्ति स्वयं या व्यवस्था द्वारा अनेक पदों पर बना रहता है, तो यह न केवल प्रतिभाशाली शिक्षकों के लिए अवसरों को सीमित करता है, बल्कि विश्वविद्यालय की गति और साख को भी नुकसान पहुँचाता है। छात्रों के हित में यह आवश्यक है कि जिम्मेदारियों का समुचित और न्यायपूर्ण वितरण हो। झारखंड के कई विश्वविद्यालयों में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहाँ एक ही व्यक्ति कई वर्षों से अनेक प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ निभा रहा है, जिससे योग्य और कर्मठ शिक्षकों को आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल रहा। अबुआ अधिकार मंच मांग करती है कि झारखंड के सभी विश्वविद्यालयों में ह्यएक व्यक्ति झ्र एक पदह्ण की नीति को बिना किसी देरी के प्रभावी रूप से लागू किया जाए, ताकि वर्तमान में जिन शिक्षकों के पास एक से अधिक प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ हैं, उन्हें केवल एक पद तक सीमित किया जा सके और भविष्य में भी प्रशासनिक नियुक्तियाँ इसी नीति के अनुरूप सुनिश्चित की जाएँ। यह सुधार न केवल शिक्षकों को उनके अकादमिक कर्तव्यों के प्रति समर्पित करेगा, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और संतुलित भी बनाएगा।
