Sunil Verma
रांची : झारखंड में औषधीय एवं सुगंधित पौधों के व्यावसायिक उत्पादन की व्यापक संभावनाएं हैं। समृद्ध जैवविविधता के कारण इस राज्य में हजारों ऐसी उपयोगी पादप प्रजातियां उपलब्ध हैं जिनकी वैज्ञानिक ढंग से व्यावसायिक खेती, प्रसंस्करण और विपणन का कार्य किया जा सकता है। उपरोक्त विचार आईसीएआर के औषधीय एवं सगन्धीय पादप अनुसंधान निदेशालय, आनन्द (गुजरात) के निदेशक एवं परियोजना समन्वयक डॉ मनीष दास ने व्यक्त किये। डॉ दास आईसीएआर के सहयोग से बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में चल रही औषधीय एवं सगन्धीय पौधों संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की प्रगति की मॉनिटरिंग के लिए दो दिवसीय दौरे पर रांची आए थे। उन्होंने कहा कि औषधीय और व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण एलोवेरा, गिलोय, सर्पगंधा, पिपली, अश्वगंधा और शतावरी जैसी 10-12 फसलों पर विश्वविद्यालय को अपना शोध प्रयास केंद्रित करना चाहिए ताकि इन फसलों को व्यवसायिक स्तर पर बढ़ावा देने के योजनाबद्ध प्रयास हो सकें। उन्होंने कहा कि यह परियोजना देश के 26 कृषि विश्वविद्यालय और शोध संस्थानों में चल रही है किंतु बीएयू केंद्र पर हो रहा काम देश के सर्वोत्तम केन्द्रों में से एक है। परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ कौशल कुमार ने औषधीय पौधों के संरक्षण, प्रयोग, प्रोसेसिंग और मार्केट से लिंक करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है इसलिए मॉनिटरिंग टीम यहां के कार्यों से बहुत संतुष्ट है। यहां नव स्थापित गिलोय प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र भविष्य में विश्वविद्यालय की पहचान के रूप में उभर सकता है। मॉनिटरिंग टीम ने औषधीय पौधों की खड़ी फसल, गिलोय के प्रायोगिक प्रक्षेत्र, गिलोय प्रसंस्करण केंद्र तथा एथनोमेडिसिनल प्लांट जर्म प्लाज्म बैंक का भ्रमण किया तथा बेहतरी के लिए आवश्यक सुझाव दिए। इस विषय पर बीएयू के अनुसंधान निदेशक डॉ पीके सिंह से भी चर्चा की । टीम में निदेशालय के प्रधान वैज्ञानिक डॉ पीएल शरण, वैज्ञानिक डॉ अकुला चिनापौलैया रेड्डी, डॉ गणेश एन खड़के तथा मनीष कुमार मित्तल भी शामिल थे।