SUNIL VERMA
रांची: झारखंड में बिजली और गर्जन के प्रति संवेदनशीलता, जोखिम न्यूनीकरण और सुरक्षा उपायों पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू) रांची के रिमोट सेंसिंग एवं जीआईएस विभाग तथा प्राणीशास्त्र विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। कार्यशाला का उद्देश्य झारखंड में बिजली से जुड़ी घटनाओं के बढ़ते संकट पर ध्यान केंद्रित करना था, जिसमें जोखिम को कम करने की रणनीतियाँ और स्थानीय जनता के बीच सुरक्षा जागरूकता को बढ़ावा देना शामिल था।
कार्यशाला में विभिन्न विश्वविद्यालयों के 20 से अधिक प्राध्यापकगण तथा लगभग 250 छात्र एवं शोधार्थियों सहित 300 से अधिक प्रतिभागियों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ. अभय कृष्ण सिंह के स्वागत भाषण से हुआ, जिन्होंने इस विषय की महत्ता और झारखंड की इस संबंध में संवेदनशीलता पर प्रकाश डाला। कार्यशाला में मुख्य वक्ताओं में फ़कीर मोहन विश्वविद्यालय, बालासोर, ओडिशा के भूगोल विभाग के डॉ. मनोरंजन मिश्रा; बीआईटी मेसरा के जियोमैटिक्स विभाग की डॉ. मिली; तथा रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय के आपदा प्रबंधन विभाग की डॉ. प्रिया नम्रता टोपनो शामिल थे। इन सभी विद्वानों ने बिजली और गर्जन के कारणों पर चर्चा करने के साथ-साथ झारखंड की इस विषय में संवेदनशीलता पर भी विस्तृत रूप से प्रकाश डाला।
डॉ. मनोरंजन मिश्रा ने मानसून के दौरान बिजली की गड़गड़ाहट के समय क्या करें और क्या न करें, इस पर प्रकाश डाला। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे मानवीय जीवन की हानि को रोका जा सके। डॉ. मिली और डॉ. प्रिया नम्रता टोपनो ने भी व्याख्यानों द्वारा जोखिम न्यूनीकरण की रणनीतियों और बिजली के प्रभावों को कम करने में भूगणित एवं आपदा प्रबंधन की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने सुरक्षा प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और स्थानीय समुदायों की सहभागिता की आवश्यकता पर बल दिया। समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. नमिता सिंह उपस्थित थीं, जिन्होंने आयोजनकर्ताओं के प्रयासों और प्रतिभागियों की सक्रिय सहभागिता की सराहना की। कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन से हुआ, जिसे गणेश चंद्र बास्के ने प्रस्तुत किया।