DEEPAK YADAV
रांची: शुक्रवार को डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान रांची, झारखंड में जनजातीय भाषा एवं अनुवाद प्रणाली विषय में एक दिवसीय सेमीनार रुम्बुल एवं टीआरआई के संयुक्त तत्वाधान में हुआ। मुख्य वक्ता डॉ निशांत चोकसी, सहायक प्राध्यापक, आईआईटी, गांधीनगर, गुजरात ने बताया कि शिकागो विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही जनजातीय भाषा के बारे जानकारी मिली। इसमें जनजातीय भाषा मुंडारी, संताली आदि भाषा के वारीकी को जानना है तो उनके संस्कृति को जानना अति आवश्यक है। जनजातीय भाषाओं से संबंधित कार्य अन्य देशों में भी बहुत हो रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि आज बहुत सारे शब्द विलुप्त हो रहे हैं, उसे बचाए रखना एक चुनौति है। जब भाव को प्रकट करने संबंधित वाक्य का अनुवाद करना हो तो उतना असान नहीं होगा। मुंडारी शब्द आटा- माटा, जलाड- कलाड, अलाए- बलाए, गुड़ु- गुड़ु, गुले- गुल, सदोर- बदोर आदि शब्दों का अनुवाद सावधानी पूर्वक करना होगा। अनुवाद में शब्द भंडार के व्याकरण का सही जानकारी अर्थपूर्ण अनुवाद हो। इस कार्यक्रम में गुंजल इकिर मुंडा ने बताया कि इन साइक्लोपिडिया मुंडारिका में बहुत ऐसे शब्द हैं, जो वर्तमान में कम प्रयोग होते हैं। इस पुस्तक में मुंडाओं के जीवन-दर्शन समाहित हैं। इसका अनुवाद होने से मुंडा समाज के लिए लाभदायक है। मौके पर मधु पूर्ति ने भी अपना विचार रखे। सेमीनार में मुख्य रूप से डॉ जुरन सिंह मानकी, प्रो विसेश्वर मुंडा, डॉ अजीत मुंडा, प्रो करम सिंह मुंडा, प्रो महावीर मुंडा, अभीजित टुटी, रवि मुंडू, दीप लक्ष्मी मुंडा, मृनालिनी टुटी इसके साथ शोधार्थी एवं पढ़ने वाले छात्र- छात्राएं उपस्थित थे।