Eksandeshlive Desk
रांची : लोकसभा के गलियारे उस दिन राजनीति के इतिहास का एक बड़ा अध्याय देख रहे थे जब केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री तथा भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने चुनाव सुधारों पर चल रही बहस को एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचा दिया। यह कोई साधारण चर्चा नहीं रही – बल्कि देश के लोकतंत्र, विपक्ष की राजनीति, और चुनाव प्रक्रिया की प्रामाणिकता पर एक नैरेटिव शिफ्ट था, जिसमें विपक्ष के दावों को न सिर्फ परखा गया, बल्कि उन्हें तार-तार कर दिया गया।
सदन की हवा उस क्षण बदल गई जब तथ्य, इतिहास और कटाक्ष – तीनों एक साथ विपक्ष की वर्षों पुरानी कथाओं को ढहा रहे थे। विपक्ष पिछले चार महीनों से SIR पर झूठ फैलाकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन रणनीति और अध्ययन में अद्वितीय शाह जब सदन में उतरे तो पूरा विपक्ष सहम कर रह गया। भारत की राजनीति को एक नई पहचान दिलाने वाले शाह ने अपने धारदार अंदाज में तथ्यों के साथ विपक्ष के हर आरोप का जवाब दिया। जिस समय विपक्ष EVM और मतदाता सूची को दोषी बताता रहा, उसी समय शाह के भाषणों से सदन के भीतर यह साबित हो गया कि 2004 में जब पहली बार EVM से लोकसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस जीती, तब किसी को मशीन में खोट क्यों नहीं दिखा? 2009 में जीत मिली तब भी EVM ‘पवित्र’ रही, मगर 2014 से जब हारने लगे तो हर चुनाव हार के साथ EVM ‘दोषी’ हो गई। शाह के सारे तर्क एक ही दिशा में इशारा कर रहे थे – कांग्रेस की हार का कारण न मशीन है, न मतदाता सूची, कारण है उसका नेतृत्व। आज देश जानता है कि मोदी सरकार का काम – सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, अनुच्छेद 370 हटाना, CAA लाना, राम मंदिर निर्माण, तीन तलाक हटाना और घुसपैठियों को रोकना – इन्हीं निर्णयों ने विपक्ष की राजनीति की जमीन कमजोर कर दी है।
