Eksandeshlive Desk
राँची: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय राँची एवं संस्कृत भारती राँची के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित संस्कृत सप्ताह के अन्तर्गत मंगलवार को काव्य-पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें विद्यार्थियों ने श्रीमद्भगवतगीता रघुवंशम् तथा किरातार्जुनीयम् के श्लोकों का पाठ किया। गीता पाठ-प्रतियोगिता में सर्वोत्तमा कुमारी ने प्रथम, अनामिका कुमारी ने द्वितीय, प्रतिमा चौहान ने तृतीय, गरिमा कुमारी ने चतुर्थ और रिया कुमारी ने पंचम स्थान प्राप्त। किरातार्जुनीयम् श्लोक-पाठक के अन्तर्गत भोला मिश्रा ने प्रथम, प्रज्ञा पाठक ने द्वितीय, पूनम पण्डेय ने तृतीय, गुलाची कुमारी ने चतुर्थ तथा सुरभि सिंह ने पंचम स्थान प्राप्त किया। रघुवंश श्लोक-पाठ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान गुलाची कुमारी ने, द्वितीय स्थान भोला मिश्र ने, तृतीय स्थान सुहानी कुमारी ने तथा चतुर्थ स्थान राखी सिंह ने प्राप्त किया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलसचिव तथा संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने कहा कि संस्कृत भाषा अपनी शुद्धता, लयात्मकता और सटीकता के लिए विश्वभर में जानी जाती है। आधुनिक वैज्ञानिक मानते हैं कि संस्कृत कंप्यूटर प्रोग्रामिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए सबसे उपयुक्त भाषाओं में से एक है, क्योंकि इसमें त्रुटि की संभावना न्यूनतम होती है। हमारी परम्पराएँ, लोकाचार और नैतिक मूल्य संस्कृत वाङ्मय में ही सुरक्षित हैं।
संस्कृत भारती झारखण्ड प्रान्त के उपाध्यक्ष डॉ. दीप चन्द राम कश्यप ने कहा कि संस्कृत भाषा हमें केवल शब्द नहीं देती, बल्कि विचारों की गहराई और जीवन जीने की दिशा भी प्रदान करती है। संस्कृत को अपनाना केवल अतीत से जुड़ना नहीं है, अपितु भविष्य को भी आलोकित करना है। मारवाड़ी महाविद्यालय, राँची के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. राहुल कुमार ने कहा कि विद्यालयों और महाविद्यालयों में संस्कृत की शिक्षा विद्यार्थियों के बौद्धिक और नैतिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संस्कृत का अध्ययन स्मरण शक्ति, उच्चारण की स्पष्टता, और विचारों की अनुशासनबद्धता को विकसित करता है। यह विद्यार्थियों में संस्कृति और सभ्यता के प्रति गर्व की भावना का विकास करता है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की शिक्षिका श्रीमित्रा ने कहा कि संस्कृत को घर-घर तक पहुँचाने के लिए केवल विद्यालय की दीवारें पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए हमें समाज के प्रत्येक वर्ग तक इसकी सुगंध पहुँचानी होगी। संस्कृत के सरल वाक्य और श्लोकों को दैनिक जीवन में प्रयोग करना चाहिए। जब यह भाषा हमारे व्यवहार का हिस्सा बन जाएगी, तब इसका पुनर्जागरण स्वतः होगा। सम्पूर्ण कार्यक्रम का संयोजन डॉ. जगदम्बा प्रसाद ने तथा मञ्च का संचालन चन्दन कुमार शर्मा ने किया। इस अवसर पर महिला महाविद्यालय, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय तथा मारवाड़ी महाविद्यालय राँची की छात्र-छात्राएँ उपस्थित थीं।