करवा चौथ अखंड सौभाग्य, नारी शक्ति के त्याग, प्रेम और समर्पण का है प्रतीक: संजय सर्राफ

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करवा चौथ का पावन पर्व 10 अक्टूबर को

Eksandeshlive Desk

रांची: विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग व श्री कृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि करवा चौथ भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण एवं भावनात्मक पर्व है, जो विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु, सुख- समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष करवा चौथ का पावन पर्व 10 अक्टूबर दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।करवा चौथ की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इस पर्व से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से वीरवती की कथा सर्वाधिक प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि वीरवती ने सच्चे मन से करवा चौथ का व्रत किया था और कुछ भ्रम के कारण व्रत अधूरा छोड़ने पर उसके पति की मृत्यु हो गई थी। उसकी श्रद्धा, तपस्या और भक्ति से देवी पार्वती प्रसन्न हुईं और उन्होंने वीरवती को उसका पति पुनः जीवित कर लौटाया। तभी से यह व्रत अखंड सौभाग्य की कामना के लिए विशेष रूप से मनाया जाता है।

करवा चौथ पर सुहागन स्त्रियाँ निर्जला उपवास रखती हैं, यानी वे दिन भर जल भी ग्रहण नहीं करतीं। वे प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व सांझी (सरगी) ग्रहण करती हैं, जो कि सास द्वारा बहू को दिया जाता है। दिन भर व्रत रखने के बाद संध्या समय चंद्रमा के उदय पर, चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर पूजा की जाती है। पूजन में करवा (मिट्टी का घड़ा), दीपक, रोली, चावल, मिठाई आदि का विशेष महत्व होता है। स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार कर पारंपरिक परिधानों में सजती हैं और एकत्र होकर कथा सुनती हैं। चंद्रमा के दर्शन कर छलनी से अपने पति को देखकर व्रत खोला जाता है। पति अपनी पत्नी को जल पिलाकर व्रत संपन्न करवाते हैं। करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि यह नारी शक्ति के त्याग, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह पर्व वैवाहिक जीवन में प्रेम, विश्वास और अटूट बंधन को सुदृढ़ करता है।

इसके माध्यम से भारतीय समाज में स्त्रियों की भूमिका, उनकी आस्था और परिवार के प्रति उनका समर्पण उजागर होता है। आजकल यह पर्व शहरी जीवन में भी पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, जहाँ पति भी पत्नी के साथ व्रत रखकर समानता एवं प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।करवा चौथ एक ऐसा पर्व है जो न केवल वैवाहिक प्रेम और नारी समर्पण का प्रतीक है, बल्कि यह हमारी संस्कृति की गहराई, परंपराओं की गरिमा, और आध्यात्मिक भावनाओं को भी उजागर करता है। आधुनिक समय में भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है, जो हमारी सनातन परंपराओं की अमरता को सिद्ध करती है।

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