राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता 24 मार्च को रद्द कर दी गई. सूरत की एक कोर्ट से दो साल की सजा मिलने के बाद, लोकसभा सचिवालय की ओर से अधिसूचना जारी कर उनकी सदस्यता रद्द कर दी. नोटिफिकेशन में बताया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 102(1)(e) और जनप्रतिनिधि कानून के तहत सदस्यता रद्द की गई है. बता दें कि कोर्ट ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को IPC की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराया.
हालांकि, कोर्ट से सजा मिलते ही उन्हें बेल मिल गई. लेकिन आपको ये जानना बेहद जरूरी है कि संविधान के किस कानून तहत उनकी सदस्यता गई.
क्या था मामला?
राहुल गांधी 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. उस दौरान उन्होंने कहा था
“नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी का सरनेम कॉमन क्यों है? सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?”
राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद सारी विपक्षी पार्टियों ने राहुल गांधी का समर्थन किया. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकाअर्जुन सरगे ने कहा कि
“ राहुल गांधी को केवल सच बोलने की सजा मिली है. लेकिन फिर भी हम सदन के बाहर और अंदर सच बोलेंगे. कांग्रेसी जेल जाने को भी तैयार है.”
इस कानून के तहत गई सदस्यता?
वायनाड सांसद राहुल गांधी की सदस्यता, 1951 में आई जनप्रतिनिधि कानून (Representative Law) के तहत गई है. इस कानून की धारा 8 में लिखा है कि अगर कोई जनप्रतिनिधि (सांसद, विधायक) को किसी आपराधिक मामले में दोषी पाया जाता है, तो जिस दिन उसे दोषी ठहराया जाएगा, तब से लेकर अगले 6 साल तक वो चुनाव नहीं लड़ सक सकता है.
वहीं, इसी कानून की धारा 8(3) में लिखा हुआ है कि कोई भी जनप्रतिनिधि को कम से कम दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो तत्काल उसकी सदस्यता चली जाती है.
कैसे बच सकती है राहुल की सदस्यता?
बता दें कि, कोई भी सांसद या विधायक की सदस्यता तब बच सकती है जब सजा निचली अदालत से सुनाई गई हो. ऐसे में सांसद या विधायक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं. अगर निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट बदलती है तब उनकी सदस्यता नहीं जाएगी. राहुल के साथ भी बिल्कुल वैसा ही हुआ है. राहुल को सूरत की निचली अदालत से सजा मिली है. ऐसे में वो कोर्ट के आदेश को आगे चुनौती दे सकते हैं.