Ranchi : सांसद, पूर्व जैक उपाध्यक्ष और झारखण्ड मजदूर मोर्चा के अध्यक्ष डॉ. सूरज मंडल ने कहा है कि झारखण्ड ने पिछले 24 साल के दौरान 19 वर्ष तक जनजातीय समाज के नेतृत्व को देखा है जबकि 5 वर्षों तक बाहरी प्रदेश के व्यक्ति का शासन रहा. डॉ. मंडल ने कहा कि आज के समय की मांग है कि यहाँ के सामाजिक परिवेश, परिस्थितियों और जमीनी वस्तुस्थिति को देखते हुए कोई मूलवासी ही झारखण्ड की सरकार का नेतृत्व करे. आज राजधानी के रांची प्रेस क्लब में संवाददाताओं से बात करते हुए डॉ. मंडल ने कहा कि झारखण्ड की वर्तमान सरकार और इसका नेतृत्व कर रहे हेमंत सोरेन आंदोलनकारी नहीं हैं और न ही झारखण्ड अलग प्रदेश बनने के वास्तविक कारणों से ही वे अवगत हैं जिसके कारण सरकार के पास दूरदर्शिता का अभाव है और इसी के कारण पूरे झारखण्ड में अनियोजित विकास हो रहा है. उन्होंने कहा कि पूरे देश के अनेक प्रदेशों की तरह झारखण्ड में भी एक विशेष राजनीतिक दल में उसी परिवारिक राजनीतिक उत्तराधिकारी का प्रचलन है जो देश में अनेक प्रदेशों का नुकसान पहुँचा रही है. इसी के कारण झारखण्ड की जमीनी स्थिति के प्रतिकूल इस प्रदेश के अहित में अनेक वैसे निर्णय लिये जाने का बहुत अधिक नुकसान न केवल झारखण्ड बल्कि यहाँ के आदिवासियों एवं मूलवासियों को हो रहा है. डॉ. मंडल ने कहा कि झारखण्ड में कोयला, बालू, खनिज, पत्थर और जमीन माफिया तत्वों ने आतंक मचा रखा है और हाल-फिलहाल में आये अनेक वैसे समाचारों के साथ ही प्रवर्तन निदेशालय और अन्य केन्द्रीय एजेंसियों के द्वारा भी जैसे तथ्य सामने आये हैं उससे यह स्पष्ट है कि सरकार की मिलीभगत से झारखण्ड और यहाँ के लोगों को हर तरीके से नुकसान पहुँचाया जा रहा है. झारखण्ड के खनिज संसाधनों के साथ ही पत्थर, जमीन, जंगल, बालू अर्थात हर एक क्षेत्र में लूट मची है और सरकार को राजस्व का भी बहुत अधिक नुकसान हो रहा है.डॉ. मंडल ने कहा कि 15 नवम्बर 2000 को समन्वित एवं संतुलित विकास के लिये ही अलग झारखण्ड का गठन किया गया था लेकिन खनिज एवं मानव संपदा के साथ ही अन्य संसाधनों से भरपूर होने के बाद भी झारखण्ड की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है और अब आर्थिक-सामाजिक दृष्टिकोण से यह भारत के वैसे पिछड़े प्रदेशों में ही माना जाता है जहाँ बहुत अधिक निराशाजनक स्थिति कायम है क्योंकि इन वर्षों के दौरान झारखण्ड का अपेक्षित आर्थिक, औद्योगिक, वाणिज्यिक और संतुलित विकास नहीं हुआ वहीं प्रदेश के लोगों की अपेक्षित सामाजिक-आर्थिक विकास के प्रतिकूल अनेक वैसे कदम उठाये गये जो आत्मघाती साबित हुए.
डॉ. मंडल ने कहा कि पिछले 24 साल में झारखण्ड के मूलवासियों एवं विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की भावनाओं, जरूरतों एवं अपेक्षाओं को दरकिनार किया गया जिसका खामियाजा आज न केवल उन्हें बल्कि पूरे झारखण्ड को भुगतना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनसंख्या संरचना को यदि देखा जाये तो मूलवासी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आते हैं लेकिन अफसोस की बात है कि पिछले 24 साल में उन्हें नेतृत्व करने का अवसर ही नहीं मिला और राज्य की बहुसंख्यक आबादी की यहाँ की सामाजिक संरचना के अनुरूप अपेक्षित उन्नति नहीं हुई. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि मूलवासियों के हाथों में महत्वपूर्ण उत्तरदयित्व सौंपा जाये. डॉ. मंडल ने कहा कि जब झारखण्ड का गठन किया गया था तब यहाँ की सामाजिक संरचना के तहत अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के लिये 27 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित था जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिये यह आरक्षण 14 प्रतिशत निर्धारित था. लेकिन राज्य गठन के तत्काल बाद यहाँ अनुसूचित जनजाति की आरक्षण सीमा को 14 से बढ़ाकर 27 कर दिया गया और ओबीसी का आरक्षण 27 से घटाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया. डॉ. मंडल ने कहा कि आरक्षण के कारण ही बांग्लादेश की सत्ता से सरकार को बेदखल होना पड़ा और प्रधानमंत्री को देश छोड़ना पड़ा. उन्होंने कहा कि पिछले 24 साल में ओबीसी के हाथों से साढ़े पाँच लाख नौकरी लूटी गयी और जिम्मेदार लोगों को यह बताना पड़ेगा कि इसका जिम्मेदार कौन है. डॉ. मंडल ने कहा कि जिस प्रकार से हेमंत सोरेन सरकार ने झारखण्ड के हितों की अनदेखी की है और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के साथ ही कांग्रेस के द्वारा भी लूट खसोट मची है उसे देखते हुए सरकार को एक मिनट भी सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है.