नेपाल : माथिल्लो तामाकोशी हाइड्रोपावर परियोजना में 6 अरब रुपये के घोटाले का पर्दाफाश

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Ashutosh Jha

काठमांडू : नेपाल के सबसे बड़े जलविद्युत परियोजनाओं में से एक, माथिल्लो तामाकोशी हाइड्रोपावर परियोजना में 6 अरब रुपये के संदिग्ध भुगतान का पर्दाफाश हुआ है। चीनी ठेकेदार सिनो हाइड्रो कॉरपोरेशन को संचालक समिति की स्वीकृति के बिना यह भारी रकम जारी की गई, और इस घोटाले का रहस्योद्घाटन 6 साल बाद हुआ है। नियमों के अनुसार, 15 प्रतिशत से अधिक भुगतान करने के लिए संचालक समिति की स्वीकृति अनिवार्य होती है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। 2016 में भुगतान कर दिया गया, लेकिन संचालक समिति से इसे वैध ठहराने का प्रयास 2022 में किया गया। जब यह मुद्दा उठाया गया, तो बोर्ड बैठक में भारी विवाद हुआ और प्रस्ताव पास ही नहीं हो सका।

परियोजना के तत्कालीन सीईओ मोहन प्रसाद गौतम ने भुगतान का कोई रिकॉर्ड दिए बिना ही सीधे 6 अरब रुपये जारी कर दिए। नेपाल विद्युत प्राधिकरण के कार्यकारी निदेशक कुलमान घिसिंग, जो इस कंपनी के अध्यक्ष भी हैं, उन्होंने और सीईओ गौतम ने संबंधित दस्तावेज संचालक समिति के समक्ष पेश ही नहीं किए। अब जब यह मामला उजागर हुआ है, तो स्वतंत्र ऑडिट की मांग उठ रही है। सवाल यह है कि बिना किसी वैध स्वीकृति के इतनी बड़ी रकम कैसे जारी की गई? माथिल्लो तामाकोशी परियोजना में जनता और राज्य दोनों का निवेश 21.18 अरब रुपये है। यह कंपनी 456 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना के रूप में 2006 में स्थापित की गई थी, और इसके मुख्य निर्माण कार्य 2010/11 में शुरू हुआ थे। लेकिन इसके लागत में बेतहाशा वृद्धि हुई, और प्रारंभ में 35 अरब रुपये का अनुमानित बजट अब 80 अरब रुपये तक पहुँच चुका है।

कंपनी की ऋण देनदारी 73.78 अरब रुपये तक पहुंच गई है, लेकिन परियोजना अभी भी पूर्ण रूप से संचालन में नहीं आ सकी है। कंपनी ने अपनी परिधि से बाहर जाकर अन्य परियोजनाओं में अरबों रुपये खर्च किए, जिसमें न्यू खिम्ती सब-स्टेशन के लिए 4 अरब रुपये अवैध रूप से भेजे गए। यह सब तब हो रहा है जब खुद माथिल्लो तामाकोशी अपने ऋण और ब्याज चुकाने में असमर्थ है। इतना ही नहीं, 22 मेगावाट की रोल्वालिंग जलविद्युत परियोजना भी अत्यधिक महंगे बजट में बनाई जा रही है। जहाँ निजी क्षेत्र प्रति मेगावाट 16 करोड़ रुपये में बिजली उत्पादन कर सकता है, वहीं इस परियोजना में प्रति मेगावाट 36 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, जो सरासर भ्रष्टाचार और धन की लूट का स्पष्ट प्रमाण है।

परियोजना की संचालक समिति, नेपाल विद्युत प्राधिकरण, और सरकारी निकायों की भूमिका संदिग्ध बनी हुई है। जनता के करोड़ों रुपये बेवजह खर्च किए जा रहे हैं, और लगभग 6 अरब रुपये के इस घोटाले पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। आखिर किसके इशारे पर यह खेल खेला जा रहा है? क्या सरकार इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों को कटघरे में खड़ा करेगी? यह सवाल अब हर निवेशक और आम नागरिक के मन में उठ रहा है।