नेपाल में आयोजित 35वें अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद् अधिवेशन का समापन

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Eksandeshlive Desk

सिरहा (नेपाल) : 35वें अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद् अधिवेशन ‘सिरहा’ मधेश प्रदेश (मिथिला) नेपाल में शुक्रवार से सोमवार की अवधि में हुआ। इस अधिवेशन में विभिन्न विषयों पर परिचर्चा, वाद-विवाद (बहस) इत्यादि के साथ ही भारत एवं नेपाल के मिथिला व मैथिली के प्रबुद्धजनों द्वारा मधेश प्रदेश में मैथिली भाषा को प्रथम राजभाषा प्रकरण के रूप में सम्मान सहित कोशी प्रांत में मैथिली को राज्य की दूसरी भाषा के रूप में मान्यता मिल सके, जैसे अति महत्त्वपूर्ण विषय पर भी विचार-गोष्ठी हुई।

इस अधिवेशन में उपस्थित बुद्धिजीवियों ने हजारों दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि नेपाल के सिरहा जिले को राजा सलहेस सर्किट के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए, जिससे कि इस क्षेत्र में प्रदेश पर्यटन की सम्भावना बन सके। सबसे बड़ी बात यह है कि इसे ‘मधेश प्रदेश’ नहीं बल्कि ‘मिथिला प्रदेश’ के नामकरण से अलंकृत किया जाना चाहिए क्योंकि मधेश प्रदेश में मैथिली भाषा बोलने वालों की संख्या 46% से भी अधिक है।

समारोह में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबु राम भट्टराई, अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद् के संस्थापक डॉ. धनाकर ठाकुर, अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक कुमार अविचल, महासचिव नारायण प्रसाद यादव, मिथिला प्रांत अध्यक्ष डॉ. श्याम नारायण कुंवर, मधेश प्रदेश अध्यक्ष सह अधिवेशन-संयोजक रामरीझन यादव, उमेश नारायण कर्ण ‘कल्पकवि’, जयानंद प्रसाद झा, अनूप कुमार झा, विजय कुमार मिश्रा समस्तीपुर एवं इसके पदाधिकारीगणों समेत ‘आदर्श मिथिला पार्टी’ के प्रदेश अध्यक्ष उमेश चन्द्र भारती, संयोजक रत्नेश्वर झा, सैकड़ों पदाधिकरण व कार्यकर्त्ताओं सहित मिथिला के विद्वानों की उपस्थिति ने ही इस अधिवेशन को सफल बनाया।

ज्ञातव्य है कि इस अधिवेशन के समापन के उपरान्त खासकर इसके संचालकों सहित बुद्धिजीवियों व उपस्थित प्रबुद्धजनों को तत्काल धन्यवाद् ज्ञापन हेतु शैलेन्द्र झा, मुम्बई के सभापतित्व में एक गूगल मीटिंग भी की गई जिसके माध्यम से अधिवेशन-संयोजक रामरीझन यादव के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया गया। इस गूगल बैठक में नवीन चौधरी मुम्बई, पूनम झा आसनसोल, प्रमोद कुमार झा मधुबनी, विधुकांत झा प्रयागराज आदि ने भी भाग लिया। विदित हो कि नवीन चौधरी मुम्बई के नेतृत्व में तीन महीने का ‘मिथिला व मैथिली विकास का संवाद-प्रेषण’ के संचालन-अध्याय का समापन भी अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद् के अधिवेशन की अवधि में ही सम्पन्न हुआ।