संजीव ठाकुर
रांची: स्वतंत्रता के बाद से ही चीन और पाकिस्तान भारत के लिए स्थाई सिरदर्द बने हुए हैंl पिछले दो दशक से अब कनाडा भी भारत के लिए परेशानी का सबक बन गया है। कनाडा शुरू से खालिस्तानी आतंकवादियों का केंद्र रहा है भारत में खालिस्तानी आतंकवाद को जन्म देने के लिए और भारत को अशांत करने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई,एस,आई उसे हर तरह की मदद ट्रेनिंग और आर्थिक मदद देता आ रहा है। खालिस्तान के आतंकवादियों को कनाडा के वीजा से पाकिस्तान गए पनाह देकर आतंकवादी गतिविधियों की ट्रेनिंग देता आया है इसके अलावा वह उन्हें फंडिंग भी करता है, कनाडा अपने राजनीतिक हित में आतंकवादियों और पाकिस्तान का अपने देश खुलकर साथ दे रहा है। यह तो कर विदित है कि चीन पाकिस्तान का भी वित्तपोषक है, और चीन से प्राप्त अरबों डॉलर की मदद का बड़ा हिस्सा अपनी सेना के बजट में शामिल करता है और पाकिस्तान आर्मी अपनी खुफिया एजेंसी की मदद से भारत में अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ खालिस्तान आतंकवादियों को भी उकसाकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता है। भारत लगातार कनाडा तथा खालिस्तानी आतंकवादियों की गतिविधियों को उजागर कर संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में अपनी आवाज उठाता रहा है पर कनाडा पाकिस्तान और चीन के कान में जून तक नहीं रेंगती है। ड्रैगन एशिया की शांति के साथ वैश्विक शांति के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है फिर चाहे दोस्ती का मामला हो या दुश्मनी का,चीन भारत का परंपरागत दुश्मन है ही और गाहे-बगाहे वह भारत की सीमा पर अतिक्रमण करता रहता है।इसी तरह ड्रैगन अपने छोटे-छोटे मित्र राष्ट्रों को जिनकी वह मदद करता है उनके कई क्षेत्रों में कब्जा जमा चुका है, इसका सबसे बड़ा एवं ताजा उदाहरण श्रीलंका है। श्रीलंका चीन के कारण कंगाली के कगार पर पहुंच चुका था, अब पाकिस्तान की बारी है वह अब बाल्टीस्तान को पाकिस्तान से कई वर्षों के लिए अपनी दी गई उधारी के बदले लीज पर लेने वाला है वह भी पूरी तरह से कंगाल हो चुका है। पाकिस्तान की हैसियत अब चीन से लिए गए कर्जे को वापस करने की रह नहीं गई है कि इन परिस्थितियों में पाकिस्तानी सरकार ने चीन के सामने घुटने टेक दिए हैं, अब पाकिस्तान चीन की हर शर्त मानने को तैयार है। नेपाल तथा बांग्लादेश भी चीन की दादागिरी से त्रस्त हैंl चीन के लिए लद्दाख तथा हिमाचल प्रदेश में घुसपैठ का अनुकूल समय आने वाला है, वर्षा ऋतु तथा ठंड उसके लिए घुसपैठ का अनुकूल समय होता है ।भारत को सीमा पर चीन तथा पाकिस्तान से उसे सावधानी रखनी होगी तब जाकर देश की रक्षा हो सकेगीl
अब ड्रैगन का एक ही सिद्धांत है विस्तार वाद और वह भी किसी भी कीमत पर,अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक डिक्टेटर की तरह चीन के प्रशासन को हंटर से चला रहे है और विदेश नीति में वह अत्यंत लालची, विस्तार वादी हो गया है। चीन पिछले कई दशक से अपनी आर्थिक तथा सामरिक शक्ति को बढ़ाने में लगा हुआ है। और इसी आर्थिक तथा युद्ध कला की शक्ति पर वह कई देशों को अपने कुत्सित इरादों के चलते खुलेआम धमकी भी देने लगा है। इजराइल फिलिस्तीन युद्ध के समय उसने फिलिस्तीन का साथ देते हुए इजरायल तथा अमेरिका को स्पष्ट तौर पर धमकाया था, कि युद्ध यदि आगे बढ़ा और अमेरिका ने इस युद्ध में दखल दिया तो अमेरिका बुरी तरह हार का मुंह देखेगा। चीन के प्रवक्ता ने यह भी कहा था कि इस युद्ध में अमेरिका की मुस्लिम देशों के प्रति उदारवादी मानव अधिकार की नीति कहां अचानक गायब हो गई,ऐसे में इसराइल तथा अमेरिका की चीन खुलेआम खिलाफत करता रहा है। चीन ने मूल रूप से चीन सागर तथा अरब सागर में अपने आप सामरिक बेड़े तथा समुद्री जहाजों को भेजकर वैश्विक स्तर पर अमेरिका फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जापान, मलेशिया, भारत,तथा अन्य पड़ोसी देशों में अशांति तथा भय का वातावरण बना दिया था ।चीन के समुद्री सीमा पर कई देशों की सीमाओं के अतिक्रमण के फल स्वरुप अमेरिका, फ्रांस, जापान तथा भारत इन 4 देशों में चीन के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण क्वाड सम्मेलन पिछले कुछ माह पहले आयोजित किया था। जिसमें इन 4 देशों ने आपसी सहयोग कर अरब चीन तथा प्रशांत महासागर में चीन की दादागिरी तथा विस्तार वादी नीति को नियंत्रण में रखने के लिए अनेक समझौते किए, और इसके पश्चात नौसैनिक संयुक्त अभ्यास भी किए थे, इस नौसैनिक अभ्यास तथा संयुक्त समझौते ने चीन को चौकन्ना कर दिया था। एवं भारत की रूस से पुरानी दोस्ती में खलल डालने का भी प्रयास चीन सरकार द्वारा किया गया,चीन नहीं चाहता है कि रूस अपना वरदहस्त भारत पर रखें। और इसी के चलते उसने लद्दाख की भूमि पर अतिक्रमण करने की कोशिश की थी,पर भारत की सामरिक शक्ति ने उसके इस बाहुबली प्रयास को नेस्तनाबूद कर दिया था। चीन अपनी आर्थिक तथा सामरिक ताकत के बल पर अमेरिका को सीधी टक्कर देने की स्थिति में आ गया है। और वह बाकी देशों को अपने बताए गए निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य करना चाहता है। इस स्थिति में 4 देशों का क्वाड सम्मेलन चीन की सामरिक ताकत के खिलाफ एक सशक्त मुहिम मानी गई है, विगत दिनों चीन ने बांग्लादेश को स्पष्ट धमका कर कह दिया है कि यदि बांग्लादेश क्वाड सम्मेलन के किसी भी देश अथवा समुद्री सीमा पर उनकी मदद करेगा, तो चीन से बुरा कोई नहीं होगा। चीन में भूटान, नेपाल,बांग्लादेश तथा पाकिस्तान की सीमा पर भूमि को आधिपत्य में लेकर अपने कई सामरिक गांव बना लिए हैं,और चीन सागर पर वह अपनी सामरिक गतिविधि तेज कर चुका है। मलेशिया तथा इंडोनेशिया के समुद्री क्षेत्र में वह अतिक्रमण कर चुका है। चीन अपने कुल मिलाकर 18 पड़ोसी देशों की समुद्री सीमा तथा भूमि पर कब्जा जमाने के जुगत में कई जगह अतिक्रमण कर चुका है। वह अपनी विस्तार वादी नीति को आर्थिक समृद्धि एवं सामरिक शक्ति के दम पर पूरे विश्व में अपनी ताकत तथा शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता है, बड़े देशों में अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड चीन के सीधे निशाने पर है। वहीं अमेरिका चीन के साथ कई हुए समझौतों को विगत दिनों वर्तमान राष्ट्रपति जो वार्डन के नेतृत्व में बर्खास्त कर चुका है। इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि अमेरिकी नवीन प्रशासन चीन की विस्तार वादी नीतियों को भापकर उसका खुला विरोध कर रहा है। और इस विरोध की आग में घी का काम इजराइल फिलिस्तीन युद्ध में अमेरिका द्वारा इजराइल को समर्थन देकर कर दियाl
पिछले कई वर्षों से चीन भारत की सैन्य शक्ति को सदैव कम करने तथा उसकी घेराबंदी का प्रयास करता रहा हैl और इसी कोशिश के अंतर्गत वह पाकिस्तान जैसे भारत के दुश्मन देश को परमाणु अस्त्र मिसाइल, आधुनिक तकनीक तथा युद्ध की सामग्री मुहैया कराता रहा है,और ऐसे देश जो भारत का थोड़ा बहुत भी विरोध करते हैं उन्हें वह राजनीतिक आर्थिक तथा सैन्य सहायता प्रदान करने से नहीं चूकताl और यह प्रयास पड़ोसी देशों में भारत के प्रभाव तथा संप्रभुता को कम करने के प्रयास के अंतर्गत होता है। और इस बात के कई सबूत तथा प्रमाण हैं, कि भारत के विरोध में चीन पाकिस्तान की मदद से श्रीलंका, नेपाल तथा बांग्लादेश में भारत विरोधी तत्वों का साथ देता आया है। चीन नई वैश्विक व्यवस्था मैं अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया जापान, रूस से ऊपर सिरमौर बनना चाहता है ।उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्वाड समूह को अत्यंत संकीर्ण उद्देश्य वाला ग्रुप करार कर दिया है। चीन के कारण वियतनाम तथा फिलिपिंस की समुद्री इलाके में चीनी नौसेना की घुसपैठ से हमेशा तनाव बना रहता है, और समुद्री सीमा पर उल्लंघन के मामलों का अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का सदैव चीन उल्लंघन कर फैसले की धज्जियां उड़ाई गई हैं। क्वाड देश अभी तक अपना उद्देश्य एक दूसरे से सैन्य सहयोग पर केंद्रित रखे हुए हैं। और चीन की 18 देशों में घुसपैठ तथा चीन की वैश्विक नई व्यवस्था के विस्तार वादी मंसूबों के कारण अब इन चार देशों को अन्य एशियाई देशों में भी विस्तारित करना होगा, वरना चीन अपनी विस्तार वादी तथा दादागिरी को अपना हक समझकर अशांति फैलाने का काम करता रहेगा। जो वैश्विक का अशांति का मूल कारण बन सकता है।