डीएसपीएमयू आखड़ा में सरहुल महोसव
Eksandeshlive Desk
रांची: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में सरहुल महोत्सव का आयोजन मंगलवार को किया गया। आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में स्थित आखड़ा में किया गया। आदिवासी समुदाय की प्रसिद्ध प्राकृतिक पर्व सरहुल के अवसर पर अध्यक्षीय भाषण विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) तपन कुमार शांडिल्य ने प्रकृति, पर्यावरण, मानव सभ्यता एवं संस्कृति को जोड़ने का कार्य यही सरहुल पर्व करता है। आज जहां किस तरह पूरे विश्व पर्यावरण संरक्षण के लिए केवल बड़ी – बड़ी बातें करते हैं, वहीं झारखंडी संस्कृति में सदियों से सरहुल जैसे प्रकृति आधारित पर्व के माध्यम से पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाते आये हैं। इस तरह की संस्कृति से पूरी दूनिया के देशोें को सीख लेनी की बात कही। पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) सत्यनारायण मुंडा ने सरहुल के पुजारी का परिचय देते हुए कहा कि पाहान गांव के सभी लोगों के अगुवाई में सरहुल डाली को आखड़ा में स्थापित करते हैं। इस सामुहिक परंपरा को बनाये रखने की जिम्मेबारी नई पिढ़ी को आवश्यक है। तभी आदिवासी परंपरा बची रहेगी।
सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) यू. सी. मेहता ने सरहुल हमें प्रकृति एवं पर्यावरण के साथ संबंध स्थापित करने की बात कही। पदमश्री मुकुंद नायक ने अपने कलाकार अंदाज में झारखंडी कला का केंद्र अखड़ा के प्रति हम सभी को जागृत रहने की बात कही। पदमश्री मधु मंसुरी ने अपने पुराने अंदाज में अपने सुरों से समारोह में उपस्थित सबों को मनमोहित किया। कार्यक्रम की शुरूआत पाहान प्रो. महेश पाहन एवं डॉ. जुरन सिंह मानकी के नेतृत्व में पारंपारिक विधि-विधान एवं स्वागत नृत्य के साथ घड़ा में पानी लाकर उसको आखड़ा में स्थित पूजा स्थल में स्थापित करके किया। इसमें पाहान एवं आखड़ा में उपस्थित सभी सम्मानित अतिथियों एवं विभिन्न विभाग के छात्र-छात्राएं खड़े होकर प्रकृति के संरक्षक आराध्यदेव धर्मेश की आराधना एवं संपूर्ण जीव जगत के कुशल मंगल के लिए प्रार्थना किये। संमानित अतिथियों का परछन हो विभाग के छात्र-छात्राओं के नेतृत्व में सभी सम्मानित अतिथियों का परछन कर मंच में बैठाया गया। इसके पश्चात संमानित अतिथियों का स्वागत खड़िया विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा स्वागत गीत के माध्यम से किया।
अतिथियों का स्वागत नये परंपरा की शुरूआत करते हुए अंगवस्त्र एवं पुष्प का पौधा देकर किया गया। स्वागत भाषण जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के कोर्डिनेटर डॉ. विनोद कुमार ने करते हुए कहा कि सरहुल झारखंडी जनजीवन में सामाजिक, धार्मिक समरसता का प्रतीक बतलाते हुए इन नौ विभाग हो, खड़िया, खोरठा, कुड़मालि, कुड़ुख, नागपुरी, पंचपरगनिया, संताली, पंचपरगनिया में शिक्षकों के कमी को कुलपति के समक्ष अपने भाषण के माध्यम से रखा।
कार्यक्रम में मंच संचालन संताली विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. डुमनी माई मूूर्मू एवं धन्यवाद ज्ञापन नागपुरी विभाग के प्राध्यापक डॉ. मनोज कच्छप ने किया। इस पावन अवसर पर बीच – बीच में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के विभिन्न विभाग – हो, खोरठा, कुड़मालि, कुड़ुख, मुंडारी, पंचपरगनिया, संताली एवं खड़िया विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा अपने समुदाय में प्रचलित परंपरागत पुरखा नृत्य-संगीत की प्रस्तुति से आखड़ा को संगीतमय बनाता रहा। इस अवसर पर रांची विश्वविद्यालय के मारवाड़ी कॉलेज के नागपुरी के विभागाध्यक्ष मेजर डॉ. महेश्वर शाड़ांगी, डोरंडा कॉलेज के नागपुरी के सहायक प्राध्यापक डॉ. यूगेश कुमार महतो, स्नातकोत्तर हो विभाग के सहायक प्राध्यपिका डॉ. सरस्वती गागरई, विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू डॉ. सर्वोत्तम कुमार, पूर्व डीएसडब्ल्यू एवं मानवशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एस. एम. अब्बास, हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ. जिंदर सिंह मुंडा, सुइसा कॉलेज पश्चिम बंगाल के डॉ. पुलकेश्वर महतो, रामगड़ कॉलेज के खोरठा के सहायक प्राध्यापक बीरबल महतो, कुड़मालि के एसिसटेंड प्रोफेसर डॉ. निताई चंद्र महतो, खोरठा के प्राध्यापक सुशिला कुमारी, संताली के संतोष मुर्मू, कुड़ुख़ के डॉ. सीता कुमारी, सुनिता कुमारी, नागपुरी के डॉ. मनोज कच्छप, डॉ. मालति बागिशा लकड़ा, पंचपरगनिया के लक्ष्मीकांत प्रमाणिक, खड़िया शांति केरकेट्टा, मुंडारी विभाग के डॉ. दशमी ओड़िया, डॉ. शांति नाग, विभिन्न विभाग के शोधार्थी अशोक कुमार पुराण, रूपेश कुमार कुशवाहा, सुचित कुमार राय, प्रवीण कुमार, राजेश कुमार महतो, प्रवीण कुमार महतो, संजय साहू, सलमा टुडु, स्टेलिना टोप्पो आदि विभिन्न विभाग के हजारों छात्र-छात्राएं एवं विश्वविद्यालय के कर्मचारीगण उपस्थित थे।