राज्यसभा में उठी न्यायिक सुधारों की मांग, जजों के लिए हो दो साल का ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’

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Eksandeshlive Desk

नई दिल्ली : राज्यसभा में मंगलवार को न्यायिक सुधारों का मुद्दा उठाया गया। आम आदमी पार्टी के सदस्य राघव चड्ढा ने शून्यकाल के दौरान कहा कि हाल ही में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जिससे देशवासी चिंतित हैं। अब वक्त आ गया है, जब न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार को खत्म किये जाने की जरूरत है। राघव चड्ढा ने कहा कि अदालत को हम न्याय का मंदिर कहते हैं। आम आदमी जब न्याय की इस चौखट पर जाता है तो उसे यह विश्वास होता है कि न्याय जरूर मिलेगा। जैसे ऊपर वाले के दरबार में देर है लेकिन अंधेर नहीं है, ऐसे ही माना जाता है कि अदालत की चौखट पर भी देर भले लग जाए लेकिन अन्याय नहीं होगा। समय-समय पर न्यायपालिका ने अपने इस भरोसे को मजबूत भी किया है, लेकिन हाल में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसके चलते देश चिंतित है। देश में जैसे शिक्षा, पुलिस, स्वास्थ्य और चुनाव सुधार हुए, उसी तरह से न्यायिक सुधार की जरूरत महसूस हो रही है। ये सुधार ऐसे होने चाहिए जो न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार को खत्म करें।

चड्ढा ने कहा कि जजों की नियुक्ति से लेकर उनके रिटायरमेंट तक में सुधार की जरूरत है। जजों की नियुक्तियों में समय-समय पर कॉलेजियम प्रणाली की खामियां, लॉ कमीशन की रिपोर्ट सामने आईं और एनजेएसी जैसे कानून को लाना पड़ा। अब समय आ गया है, जब कॉलेजियम स्वयं ही सुधार करे और नए तरीके खोजे, ताकि पारदर्शिता की कमी और सार्वजनिक जांच की कमी, जिन दो विषयों पर कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना होती है, उसे दूर किया जाए और एक स्वंतत्र पारदर्शी व्यवस्था बने। आज एडवोकेट को सीनियर एडवोकेट बनाने के लिए प्वाइंट बेस्ड पूरी पारदर्शी व्यवस्था है। इसी प्रकार से जजों की नियुक्ति के लिए भी पारदर्शी कॉलेजियम सिस्टम लाया जाया तो देश की जनता में विश्वास बढ़ेगा।

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया और न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद की भूमिकाओं की पेशकश में सुधार किए जाने की जरूरत है। यह न्यायिक स्वतंत्रता और व्यवस्था में जनता के विश्वास को बढ़ाने की आवश्यकता पर आधारित होना चाहिए। देश में अनुच्छेद 148 के अनुसार जैसे नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सरकारी पद पर कोई सरकार नियुक्त नहीं कर सकती है। उसी तर्ज पर न्यायाधीशों के लिए भी रिटायरमेंट के बाद कम से कम दो साल का “कूलिंग ऑफ मेंडिटरी पीरियड” होना चाहिए। इस दौरान सेवानिवृत्त जजों को न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार किसी पद पर नियुक्त करे। यदि ऐसा होगा तो देश की न्यायिक व्यवस्था में जनता का विश्वास और बढ़ेगा।