Eksandeshlive Desk
खूंटी : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष की यात्रा जब शुरू हुई तब मैं लगभग नौ वर्ष का बालक था। आज मैं 91 वर्ष के पड़ाव पर हूं। जब मैं नौ वर्ष का रहा हूंगा, तब संघ की स्थापना हो रही होगी। जनसंघ के साथ जुड़ाव, युवावस्था मे इमरजेंसी के दौरान जेल गया। जेल में मेरी प्रार्थना भी प्रारम्भ हुई। आज जो परिणाम है, वह संकल्प से सिद्धि का है। यह अपना संघ केवल एक संस्था नहीं, यह एक विचारधारा, एक चेतना और राष्ट्र के प्रति संपूर्ण समर्पण का जीवंत उदाहरण है। यह उस साधना की गाथा है, जहां व्यक्ति अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्र को ही अपना परिवार मान लेता है। यह उस भावना का नाम है, जो एक स्वयंसेवक के भीतर राष्ट्र प्रथम की लौ जलाये रखती है, चाहे परिस्थिति कितनी भी विकट क्यों न हो?
राष्ट्र के लिए जीता है संघ : यह बातें पूर्व लोकसभा के उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा ने शनिवार को संघ के 100 वर्ष की यात्रा पूरे होने पर संघ से जुड़ी अपनी यात्रा को साझा करते हुए कही। उन्होंने कहा कि संघ का कार्यकर्ता जहां भी होता है, वह केवल अपना जीवन नहीं जीता, वह राष्ट्र के लिए जीता है। वह अपने परिवार की चिंता तो करता है, परंतु उतनी ही चिंता उसे समाज की भी होती है। वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है, लेकिन साथ ही हर उस व्यक्ति के लिए कुछ करने का भाव रखता है, जिसे समाज और राष्ट्र की आवश्यकता हो। यह यात्रा आसान नहीं थी। उन्होंने कहा कि संघ पर प्रतिबंध लगे, आरोप लगे, षड्यंत्र रचे गए, लेकिन संघ रुका नहीं। यह उस साधक की तरह बढ़ता गया, जिसे अपने लक्ष्य पर पूर्ण विश्वास था। स्वयंसेवकों के त्याग, बलिदान और निष्ठा ने इस राष्ट्रभक्ति की धारा को कभी सूखने नहीं दिया। उन्होंने कहा कि संघ ने केवल स्वयंसेवकों को राष्ट्रभक्ति नहीं सिखाई, बल्कि उनके माध्यम से समाज को एक नई दिशा दी। सेवा, संगठन और संस्कार, इन्हीं तीन स्तंभों पर संघ ने राष्ट्र के उत्थान का संकल्प लिया। कहीं बाढ़ आई, कहीं भूकंप आया, कहीं सामाजिक असमानता ने समाज को तोड़ने का प्रयास किया। हर बार संघ का स्वयंसेवक सबसे पहले वहां खड़ा दिखाई दिया। न प्रचार, न प्रशंसा की चाहत, बस एक ही उद्देश्यरू राष्ट्र की सेवा। आज भी, जब संघ के किसी विचारक को सुनने का सौभाग्य प्राप्त होता है, तो अपने स्वयंसेवक होने का गर्व और उन विचारों की गहराई का प्रभाव हृदय को आंदोलित कर देता है।
राष्ट्र पुनरुत्थान की अमरगाथा : माध्यम चाहे कोई भी हो, सीधा संवाद, कोई व्याख्यान, या किसी मंच से संघ के विचारकों का उद्बोधन, लेकिन जब देशप्रेम उमड़ता है, तो आंखों से आंसू बनकर बहता है। ये वे आंसू होते हैं, जिनमें राष्ट्र के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण छलकता है। संघ का यह 100 वर्षों का सफर केवल समय का माप नहीं, यह राष्ट्र पुनरुत्थान की अमरगाथा है। यह उन अनगिनत कार्यकर्ताओं की कहानी है, जिन्होंने अपने जीवन को एक बड़े उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया। यह उस दीपशिखा का प्रकाश है, जो सिर्फ स्वयंसेवकों को ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज को दिशा देता है। संघ केवल संगठन नहीं, यह जीवन का एक आदर्श है। यह वह परंपरा है, जहां व्यक्ति नहीं, विचार जीवित रहते हैं जहां स्वार्थ नहीं, समर्पण सर्वाेपरि होता है।