Eksandeshlive Desk
नई दिल्ली : रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि रेलवे ने किसी भी ट्रेन की खानपान सेवा में ‘केवल हलाल’ प्रमाणन वाले खाद्य पदार्थ परोसे जाने को लेकर कोई भी निर्देश नहीं दिया है और गाड़ियों में ऐसे उत्पाद कैसे आये हैं, इसकी जांच के आदेश दे दिये गये हैं। वैष्णव ने यहां रेल भवन में एक कार्यक्रम के इतर संवाददाताओं द्वारा ट्रेनों में हलाल प्रमाणित भोजन परोसे जाने को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के रेलवे बोर्ड को भेजे गये नोटिस के बारे में पूछे जाने पर कहा कि रेलवे में परोसे जाने वाले भोजन के हलाल प्रमाणन को लेकर कभी कोई निर्देश नहीं दिया गया है। उनसे पूछा गया कि एनएचआरसी ने रेलवे बोर्ड को नोटिस किया है जिसमें रेलवे द्वारा हलाल प्रमाणित भाेजन परोसे जाने का आरोप एक युवक ने लगाया था। क्या वह जवाब देंगे, रेल मंत्री ने कहा, “यह बहुत स्पष्ट है। रेलवे के किसी भी नियम में हलाल प्रमाणन की कोई जरूरत या बाध्यता नहीं है। रेलवे कभी भी किसी हलाल प्रमाणन की मांग नहीं करती है। यह एकदम स्पष्ट है। मैं आपको एकदम स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूं। कोई हलाल प्रमाणन की जरूरत नहीं है जो पूरा विवाद हुआ है, वोे किसी एक पुराने वीडियो के आधार पर हुआ है। कोई चाय का पैकेट उस वीडियो में बताया गया है जो शुद्ध रूप से शाकाहारी है और किस कारण से उसके ऊपर लिखा हुआ हलाल प्रमाणन, उसकी भी जांच करेंगे।”
रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि रेलवे और भारतीय रेल खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) अपने खाद्य पदार्थों के लिए भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के ही दिशानिर्देशों का अनुसरण करते हैं। भारतीय रेलवे में हलाल प्रमाणित भोजन परोसने का कोई आधिकारिक प्रावधान नहीं है। इससे पहले दिन में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने रेलवे में कथित रूप से केवल हलाल नीति लागू करने पर गहरी आपत्ति जाहिर की थी। विहिप का कहना है कि एक धर्म की आहार-परंपरा को प्राथमिकता देना संविधान की पंथनिरपेक्ष भावना के विपरीत है और भोजन-विकल्प की स्वतंत्रता भी सीमित करती है। इसके अलावा इससे परंपरागत रूप से मांस व्यापार से जुड़े गैर-मुस्लिम समुदायों की आजीविका प्रभावित होती है। विहिप प्रवक्ता विनोद बंसल ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि कुछ संस्थानों, सरकारी–अर्धसरकारी इकाइयों, पीएसयू और निजी प्रतिष्ठानों में ‘हलाल केवल’ नीति लागू होने पर यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या इससे परंपरागत रूप से मांस व्यापार से जुड़े गैर-मुस्लिम समुदायों की आजीविका प्रभावित नहीं होती है। उन्होंने कहा कि हलाल प्रमाणन की कुछ धार्मिक शर्तें हैं– जैसे हलाल करने वाले का मुस्लिम होना, जानवर का मुख मक्का की दिशा में होना और विशेष धार्मिक वाक्य बोलना, सार्वजनिक संस्थानों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकतीं। ऐसे में भारतीय रेल में भी केवल हलाल-प्रक्रियायुक्त मांस उपलब्ध होना भी उचित नहीं है। उल्लेखनीय है कि कल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इसी नीति के खिलाफ मिली शिकायतों के आधार पर रेलवे को नोटिस जारी किया था।
