संपादकीय : न्यायपालिका की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और निष्पक्षता पर उठते सवाल

Editorial

Eksandeshlive Desk

रांची : ”मैं तुम्हें अदालत में देखूंगा…” यह वाक्य हमें आमतौर पर सुनने को मिलता है, जो न्यायिक व्यवस्था पर भारत की जनता के भरोसे का प्रतीक है। कहीं भी जब दो लोगों के बीच कोई विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है तो वे न्याय के लिए न्यायालयों का रुख करते हैं, परंतु वह स्थिति कैसी होगी जब न्यायपालिका स्वयं कटघरे में खड़ी हो। वर्तमान में कुछ ऐसी ही परिस्थितियां देश के सामने खड़ी हो गई हैं। दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कथित रूप से भारी मात्रा में मिली नकदी के मामले ने एक बार फिर भारतीय न्यायपालिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इस घटना को लेकर कानून के विशेषज्ञों से लेकर राजनीतिक दलों की तरफ से न केवल तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, बल्कि न्यायिक नियुक्ति की प्रणाली में व्यापक सुधार की मांग भी की जा रही है। हैरानी की बात है कि इस घटना के उजागर होने के बाद जस्टिस वर्मा पर कार्रवाई कर जनता को संदेश देने के बजाय उनका इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया!

उल्लेखनीय है कि 14 मार्च को दिल्ली उच्च न्यायालय के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के नई दिल्ली स्थित आधिकारिक निवास के एक स्टोर रूम में आग लगी थी, जहां कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी मिली थी। इस मामले में 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक रिपोर्ट को सार्वजनिक की है, जिसमें दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई कुछ तस्वीरें और वीडियो भी शामिल हैं। इसमें जले हुए नोट नजर आ रहे हैं। बता दें कि इस प्रकरण को लेकर देश भर में हंगामा मचने के बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय को प्रारंभिक पूछताछ करने को कहा था। डीके उपाध्याय ने अपनी चिट्ठी में संजीव खन्ना को कहा है कि 15 मार्च को उन्हें दिल्ली पुलिस के कमिश्नर का फोन आया, जिसमें जस्टिस वर्मा के घर में लगी आग के बारे में बताया गया। कमिश्नर ने उन्हें क्या बताया यह रिपोर्ट में छिपा दिया गया है। डीके उपाध्याय ने इस मामले में एक ”गहरी जांच” की जरूरत बताई है। वहीं जस्टिस वर्मा ने अपने ऊपर लगे आरोप को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने या उनके परिवार वालों ने आजतक उस स्टोर रूम में नकदी नहीं रखी और जिस नकदी का जिक्र किया जा रहा है वह उनकी नहीं है। इस बीच, इलाहाबाद हाई कोर्ट बार अध्यक्ष ने आंतरिक जांच पर असंतोष जताते हुए इस पूरे प्रकरण की ईडी और सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि सोमवार को जनरल हाउस में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग के लिए राजनीतिक दलों और सांसदों से सिफारिश का प्रस्ताव परित किया जाएगा।

यह प्रकरण निश्चित रूप से न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाला है। समाज में न्यायपालिका को एक उच्चतम स्थान माना जाता है। ऐसे में उस पर आक्षेप लगते हैं तो यह जनता की आस्था को प्रभावित करता है और अंतत: लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाता है। मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों ने इस मामले को संसद में भी उठाया और उच्चतम न्यायालय को न्यायपालिका में लोगों का भरोसा कायम रखने के लिए सख्त कदम उठाने की मांग की। हालांकि यह सही है दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आवास से नकदी मिलने की कथित घटना ने गंभीर चिंता पैदा कर दी है और कानूनी बिरादरी सहित पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है, लेकिन इसकी आड़ में कार्यपालिका को न्यायिक नियुक्तियों को नियंत्रित करने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। ऐसी परिस्थिति में आवश्यकता है एक सटीक और अधिक पारदर्शी प्रणाली की, जो न केवल ऐसी घटनाओं को रोकने में सक्षम हो, बल्कि न्यायपालिका के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित कर सके। समय की मांग है कि उच्चतम न्यायालय ठोस कदम उठाए ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और निष्पक्षता साबित हो।