Alok ranjan jha dinkar
रांची : देश में लगातार बढ़ता सांप्रदायिक तनाव निस्संदेह चिंताजनक है। कानून और व्यवस्था को कुछ अति उत्साही संगठनों और नागरिकों द्वारा दंड से मुक्त होकर अनदेखा किया जाना गंभीर सवाल खड़ा करता है। हालांकि भारतीय समाज में सांप्रदायिक कलह सदियों से होती रही है, लेकिन हाल के वर्षों में यह बहुत ज्यादा बढ़ गयी है। सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म (सीएसएसएस) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बीते साल सांप्रदायिक दंगों में 84 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई। 2024 में सांप्रदायिक दंगों के 59 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2023 में 32 दंगों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है। रिपोर्ट के अनुसार, सांप्रदायिक दंगों के 59 मामलों में से 49 ऐसे राज्यों में हुए जहां भाजपा या तो अपने दम पर या अन्य दलों के साथ गठबंधन में शासन कर रही है, सात घटनाएं कांग्रेस शासित राज्यों में और तीन घटनाएं तृणमल कांग्रेस शासित पश्चिम बंगाल में हुईं। वहीं इस साल भी कई मामले सामने आ चुके हैं। सवाल उठता है कि क्या सांप्रदायिक संघर्ष से भरा ऐसा समाज विकसित भारत के हमारे सपने को साकार कर सकता है ? अगर नहीं तो यह समय है कि देश हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक तनाव के विनाशकारी परिणाम से सचेत हो जाए और शांतिपूर्ण और समावेशी समाज को बढ़ावा देने पर ध्यान दे।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र के नागपुर में सोमवार को मुगल शासक औरंगजेब की कब्र के विरोध में एक संगठन के प्रदर्शन के बाद दो गुटों के बीच टकराव हो गया। दोनों ओर से पथराव हुआ और वाहनों में आग लगा दी गई। इससे पहले झारखंड के गिरिडीह जिले में होली जुलूस के दिन दो समुदायों के बीच झड़प हो गई। इस दौरान उपद्रवियों ने पथराव और आगजनी की, जिसमें कई लोग घायल हो गए। यह मामला मंगलवार को झारखंड विधानसभा में भी उठा और विपक्ष ने विधि व्यवस्था के सवाल पर बहस की मांग की। नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने पुलिस प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाया। वहीं मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के महू में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी की जीत का जश्न अचानक हिंसा में बदल गया। विजय जुलूस के दौरान एक मस्जिद के पास दो पक्षों के बीच झड़प हो गई। इसके बाद पत्थरबाजी और आगजनी की गई। गनीमत रही कि इनमें से किसी घटना में जान हानि नहीं हुई, लेकिन उपद्रवियों ने संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया। यह चिंता की बात है कि शासन और प्रशासन के स्तर पर सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने वाले तत्वों के खिलाफ शून्य सहिष्णुता की नीति नहीं अपनाई जा रही है। इसके परिणामस्वरूप विभाजनकारी संगठन और नागरिक कानून और व्यवस्था को खुलेआम चुनौती देने का दुस्साहस कर रहे हैं।
यह अच्छी बात है कि हमने आत्मनिर्भर और विकसित भारत का संकल्प लिया है, लेकिन यह सामाजिक शांति के बिना पूरा नहीं हो सकता है। अगर हम वाकई में ‘विश्व गुरु’ बनना चाहते हैं, तो हमें शांतिपूर्ण और समावेशी समाज के लिए काम करना होगा। सभी के लिए न्याय तक पहुंच प्रदान करने के साथ ही संस्थाओं को सभी स्तरों पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी बनाने की दिशा में कदम उठाने होंगे। एक लोकतांत्रिक और विकसित समाज के लिए आवश्यक है कि उसमें करुणा और एक मजबूत नैतिक दिशा-निर्देश हो। ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि बड़े पैमाने पर चल रहे उत्पीड़न, अन्याय और दुव्र्यवहार बंद हों ताकि सभ्यता के ताने-बाने नष्ट होने से बच सके। इसके साथ ही देश के कोने-कोने में शांति की स्थापना के लिए प्रतिबद्धता दिखानी होगी। हालांकि वर्तमान हालात में यह आसान नहीं है, लेकिन शिक्षा रूपी हथियार समाज में बढ़ते तनाव और अशांति को कम या समाप्त कर सकता है। मजबूत इच्छाशक्ति से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।