Eksandeshlive Desk
रांची : सरला बिरला विश्वविद्यालय के महानिदेशक प्रो. (डा.) गोपाल पाठक ने शुक्रवार को कहा कि वर्तमान समय में प्रौद्योगिकी के रहस्यों को समझने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक संस्कृत साहित्य में अन्तर्निहित ज्ञान के तत्त्वों का आश्रय ले रहे हैं।
डा. पाठक ने संस्कृत सप्ताह-सम्पूर्त्ति-समारोह के अवसर पर विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि संस्कृत में वैज्ञानिक तथ्यों का समावेश है। वर्तमान समय में वैज्ञानिक संस्कृत ग्रंथों का उपयोग कर रहे हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में भी संस्कृत के अध्ययन को प्रोत्साहित किया जा रहा है और संस्कृत सम्भाषण शिविरों का संचालन किया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका के विश्वविद्यालयों में भी संस्कृत के अध्यापन का कार्य चल रहा है। उन्होंने कहा कि इन विश्वविद्यालयों में संस्कृत के भाषावैज्ञानिक पक्ष पर अनुसन्धान कार्य चल रहा है। प्रो. पाठक ने कहा संस्कृत भाषा प्राचीन समय व वर्तमान समय को जोड़ते हुए भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। संस्कृत भारत की आत्मा है।
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, राँची के कुलपति प्रो. (डा.) तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि संस्कृत भाषा मात्र एक भाषा नहीं है; यह हमारी संस्कृति, परंपरा, और जीवन दृष्टिकोण का आधार है। यह भाषा उस महान ज्ञान के भंडार को समेटे हुए है जिसे हमारे ऋषियों, मुनियों और दार्शनिकों ने युगों-युगों से सहेजा है। उन्होंने आगे कहा कि संस्कृत भाषा के महत्व को समझने के लिए हमें उसकी सर्वव्यापकता और सार्वकालिकता पर ध्यान देना होगा। संस्कृत में न केवल धार्मिक ग्रंथ रचे गए हैं, बल्कि इसमें विज्ञान, गणित, चिकित्सा, खगोलशास्त्र, व्याकरण, और काव्य के ग्रन्थों की भी रचना की गई है। आयुर्वेद के ग्रंथों से लेकर योगसूत्र तक, अष्टाध्यायी से लेकर नाट्यशास्त्र तक, संस्कृत ने हर क्षेत्र में मानवता को अपनी दिशा दिखाई है।
प्रो. शांडिल्य ने आगे कहा कि आज के इस युग में, जब विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हमारी दुनिया को परिवर्तित कर दिया है, संस्कृत की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। संस्कृत के अध्ययन से न केवल हमारी बौद्धिक क्षमताएँ विकसित होती हैं, बल्कि हमें यह भी सिखाया जाता है कि कैसे एक संतुलित और सुसंस्कृत जीवन जिया जाए।
उन्होंने आगे कहा कि संस्कृतभाषा हमारी संस्कृति की ध्वजवाहक है और इसे जीवित रखना हमारा कर्तव्य है।
इस अवसर पर कार्यक्रम की सारस्वत अतिथि सरला बिरला विश्वविद्यालय, राँची की मानविकी संकायाध्यक्षा प्रो. (डा.) नीलिमा पाठक ने कहा संस्कृत भाषा मात्र एक प्राचीन भाषा नहीं है; यह मानव सभ्यता की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषाओं में से एक है। यह भाषा न केवल साहित्यिक और दार्शनिक चिंतन का अद्वितीय माध्यम रही है, बल्कि इसके व्याकरण, शब्द रचना, और संरचना में भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। संस्कृत का व्याकरण, जिसे पाणिनि ने अष्टाध्यायी में प्रतिपादित किया, भाषाविज्ञान का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। पाणिनि ने संस्कृत के शब्दों और वाक्यों की संरचना को इस प्रकार व्यवस्थित किया कि यह भाषा विश्व की किसी भी अन्य भाषा की तुलना में अधिक वैज्ञानिक और संरचित हो गई। संस्कृत की वैज्ञानिकता को समझने के लिए हमें उसके व्याकरण, धातु प्रणाली, और शब्द निर्माण प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए। पाणिनि द्वारा प्रतिपादित धातु प्रणाली से हमें यह ज्ञात होता है कि कैसे प्रत्येक क्रिया की एक मूल धातु होती है, और उसी धातु से अन्य शब्दों का निर्माण होता है। इस प्रणाली के माध्यम से संस्कृत भाषा में निहित लचीलेपन और शुद्धता को हम समझ सकते हैं। यह धातु प्रणाली इस बात का प्रमाण है कि संस्कृत भाषा कितनी सटीक और वैज्ञानिक रूप से व्यवस्थित है।
विषय प्रवेश कराते हुए डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, राँची के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डा. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने कहा कि भारतीय संस्कृति को बिना संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किए समझना लगभग असंभव है, क्योंकि वेद, उपनिषद, पुराण और समस्त शास्त्र संस्कृत भाषा में ही रचित हैं। भारतवर्ष की प्राचीन ज्ञान परंपरा का सम्पूर्ण साहित्य संस्कृत भाषा पर आधारित है। उन्होंने आगे कहा कि विविध वैज्ञानिक विद्याओं में हमारे महर्षियों का चिंतन सर्वथा उपादेय है। गणित शास्त्र में भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, श्रीधराचार्य आदि के सिद्धांत आज भी गणितज्ञों द्वारा चिंतन किए जाते हैं। जो सिद्धांत पाइथागोरस के नाम से प्रसिद्ध है, उसका प्रतिपादन महर्षि बोधायन द्वारा पूर्व में किया जा चुका था। उन्होंने आगे कहा कि विश्वशान्ति की स्थापना में संस्कृत का योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
संस्कृत भारती के महानगर अध्यक्ष डा. श्रीप्रकाश सिंह ने संस्कृत सप्ताह के अवसर पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर संस्कृत सप्ताह के अवसर पर आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।
कार्यक्रम का प्रारम्भ वैदिक मंगलाचरण से हुआ। स्वागत भाषण विभागीय शिक्षिका डा. श्रीमित्रा ने किया। स्वागत गीत मनीषा बोदरा ने प्रस्तुत किया। एकल गीत सर्वोत्तमा कुमारी एवं तनु कुमारी ने प्रस्तुत किया। सामूहिक नृत्य सर्जना राठौर और समूह के द्वारा किया गया। मंच का संचालन डा. शैलेश कुमार मिश्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डा. जगदम्बा प्रसाद ने दिया।