शिबू सोरेन की अंतिम यात्रा : अपने चहेते नेता की अंतिम झलक पाने के लिए 45 किमी सड़काें पर खड़े रहे लाेग

Politics

Eksandeshlive Desk

रामगढ़ : रामगढ़ जिले में दिशोम गुरु शिबू सोरेन की शव यात्रा में मंगलवार काे काफी भीड़ देखने काे मिली। लाेग अपने चहेते नेता की अंतिम झलक पाने के लिए 45 किलाेमीटर तक सड़काें पर घंटाें खड़े रहे। जिस रास्ते से भी शिबू सोरेन का शव वाहन गुजरा वहां लोग हाथ जोड़कर खड़े नजर आए। जैसे ही रामगढ़ जिले में शव वाहन प्रवेश किया, लोग उनके दर्शन के लिए पीछे-पीछे भागने लगे। मुख्यमंत्री का भावुक चेहरा देख हर किसी का कलेजा फट गया। जिस पिता के साए में हेमंत सोरेन ने ना सिर्फ राजनीती सीखी, बल्कि झारखंड को एक अलग पायदान पर लेकर गए। आज हेमंत सोरेन के सर से पिता का साया उठा, तो जिलावासी भी खुद को भावुक हाेने से राेक नहीं पाये। पिछले छह दशकों से शिबू सोरेन का अलग-अलग रूप रामगढ़ जिला के वासियों ने देखा है। सबसे बड़ी बात सुदूरवर्ती गांव नेमरा से निकलकर झारखंड की राजनीति को अलग पहचान दिलाने वाले शिबू सोरेन सबके दिलों में बहुत जल्दी ही जगह बना चुके थे। गांव में रहने वाले आदिवासियों के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया। सबसे पहले तो उन्होंने महाजनी व्यवस्था का पुरजोर विरोध किया था। जिसका फायदा सीधे-सीधे मासूम ग्रामीणाें को हुआ। इसके बाद उन्होंने झारखंड के लोगों की दिशा और दशा बदलने के लिए राज्य से लेकर केंद्र तक की व्यवस्था काे सुदृढ़ किया।शिबू सोरेन के अंतिम संस्कार में पहुंचे नेताओं ने कहा कि झारखंड की फिज़ा में शिबू सोरेन हमेशा सूरज की तरह चमकते रहेंगे। अथक संघर्ष और तप से उन्होंने अपनी यह जगह बनाई थी।

रास्ते पर नहीं थी जगह, पगडंडियों से श्‍मशान घाट पहुंचे गुरुजी के समर्थक : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार मंगलवार को संपूर्ण विध-विधान के साथ कर दिया गया। रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड अंतर्गत उनके पैतृक गांव नेमरा में उनका अंतिम संस्कार हुआ। इस दौरान इनके चाहने वालों का वहा हुजूम उमड़ा। गुरुजी के नाम से प्रसिद्ध शिबू सोरेन के अंतिम संस्कार की खबर जब लोगों को मिली, तो वे मंगलवार की सुबह से ही नेमरा पहुंचने लगे थे। गांव से लगभग सात किलोमीटर पहले लुकैयाटांड़ में ही जिला प्रशासन की ओर से बैरीकेडिंग कर दी गयी थी। वीआईपी लोगों के लिए हेलीपैड और गाड़ियों की व्यवस्था की गई थी। सात किलोमीटर तक का रास्ता वीआईपी जिला प्रशासन की ओर से बनाए गए रूट के हिसाब से ही तय कर पा रहे थे, लेकिन झारखंड मुक्ति सोर्चा (झामुमाे) और शिबू सोरेन के समर्थकों ने सात किलोमीटर की लंबी दूरी को पैदल ही पार करना स्वीकार किया। आम लोग लुकैयाटांड़ से पैदल चलकर नेमरा पहुंचे। वहां भी रास्ते पर चलने की जगह नहीं थी। जिला प्रशासन की ओर से जिस रास्ते की मरम्मत श्मशान घाट तक जाने के लिए की गई थी, वह भी कीचड़ से भरा था। धान के खेत और कीचड़ में पटरी रखकर शव को ले जाने की व्यवस्था हुई थी। आम लोगों को जब वहां रास्ता नहीं मिला, तो वे खेतों की पगडंडियों पर उतर आए। श्मशान घाट के चारों तरफ अलग-अलग पगडंडियों से होकर शिबू सोरेन के समर्थक वहां पहुंचे। सबसे बड़ी बात यह थी कि जब वहां बारिश शुरू हुई, तो कुछ लोग वहां बने टेंट में छुपने लगे। लेकिन शिबू सोरेन के समर्थकों ने इस परिस्थिति में भी खुद को टिकाए रखा। लगभग आधे घंटे तक होने वाली बारिश में वे खड़े रहे और अंततः अपने नेता को श्रद्धांजलि अर्पित कर ही वापस लौटे।