सतही जल रहेगा तब हमारा कल रहेगा: प्राचार्य डॉ.बी.पी.वर्मा

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Eksandeshlive Desk

राँची: सूरज सिंह मेमोरियल महाविद्यालय राँची में वैज्ञानिक डॉ.सुधांशु शेखर के द्वारा सतही जल एक अदृश्य स्रोत विषय के संबंध में एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें महाविधालय के विधार्थियों को सतही जल के संबंध में बहुत विस्तृत जानकारी दी गयी जिसमें सतही जल कितने प्रकार के होते हैं,इसके संबंध में विस्तृत जानकारी दी साथ ही साथ सतही जल से संबंधित विभिन्न जानकारी भी बताई गयी जिसमें कैसे प्राकृतिक प्रदत्त पानी का संरक्षण हो, पानी का श्रोत कहाँ कहाँ है वर्तमान में पानी से संबंधित क्या-क्या समस्यायें हैं भविष्य में क्या समस्या हो सकता है । इसका समाधान क्या हो सकता है आदि उनके द्वारा जानकारी देने के क्रम में बताया गया गया की कृषि के लिए एकीकृत सतही जल का प्रयोग सबसे ज्यादा होता है ।
सतही जल भूमि के ऊपर स्थित जल है, सतही जल का अधिकांश भाग वर्षा जल से ही बनता है, साथ ही पानी जमीन में चला जाता है जो भू-जल बन जाता है। पीने के पानी के लिए उपयोग किए जाने के साथ-साथ, सतही जल का उपयोग सिंचाई, अपशिष्ट जल उपचार, पशुधन, औद्योगिक उपयोग, जल विद्युत और वर्तमान में मनोरंजन के लिए भी वाटर पार्क के रूप में किया जाता है। जल-उपयोग रिपोर्ट के लिए, सतही जल को तब मीठा पानी माना जाता है जब इसमें 1,000 मिलीग्राम प्रति लीटर (मिलीग्राम/एल) से कम घुलित ठोस पदार्थ होते हैं। जलवायु परिवर्तन पानी की गुणवत्ता में हमारे सामने आने वाली मौजूदा चुनौतियों को भी बढ़ाता है। सतही जल की गुणवत्ता आसपास के तत्वों जैसे हवा और आस-पास के परिदृश्य से रासायनिक इनपुट पर आधारित होती है। जब ये तत्व मानवीय गतिविधियों के कारण प्रदूषित होते हैं, तो यह पानी के रसायन को बदल देता है। देश में नलकूपों से भूजल का दोहन बहुत अधिक है और इसका 80% हिस्सा सिंचाई और पीने के पानी के लिए है। आज के एक दिवसीय सेमिनार में प्राचार्य डॉ. बी.पी.वर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि “जब तक सतही जल रहेगा तब तक हमारा कल रहेगा“ और इस सेमिनार में डॉ.समर सिंह,प्रो. राजेकुजुर, प्रो.एन.के. पांडेय, डॉ संजय कुमार सारंगी, प्रो.मुकेश ऊरांव, डॉ.लक्ष्मी कुमारी, डॉ सिन्कु, डॉ गायत्री सिन्हा, डॉ सुबास साहु, डॉ अभिषेक गुप्ता, डॉ संगीता कुमारी, डॉ उषा कीड़ो, डॉ राजश्री इंदवार डॉ सिबली उपस्थित रहे।