वेद, उपनिषद, गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथ भारतीय संस्कृति की आधारशिला हैं: स्वामी दिव्यदेव

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Eksandeshlive Desk

रांची: विश्व संस्कृत दिवस के अवसर पर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय राँची के संस्कृत विभाग, संस्कृत भारती और संस्कृत सेवा संघ के संयुक्त तत्त्वावधान में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह के मुख्य अतिथि, आचार्यकुलम् के निदेशक स्वामी दिव्यदेव, संस्कृत भाषा को ‘देववाणी’ के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए इसके आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व पर विशेष बल दिया। स्वामी दिव्यदेव ने अपने संबोधन में कहा कि संस्कृत भाषा में रचित वेद, उपनिषद, गीता, और अन्य धार्मिक ग्रंथ भारतीय संस्कृति की आधारशिला हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत का अध्ययन केवल भाषायी ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है। स्वामी दिव्यदेव ने संस्कृत को धर्म, योग, और ध्यान के क्षेत्र में अनिवार्य बताया और इसे एक आध्यात्मिक यात्रा के रूप में प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि राँची विश्वविद्यालय की मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. अर्चना कुमारी दुबे ने कहा कि झारखंड एक बहुभाषी राज्य है, जहाँ विभिन्न भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषाओं पर संस्कृत का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रभाव महत्वपूर्ण है। कहा कि संस्कृत से दूर होना अपनी संस्कृति से दूर होना है।
झारखंड संस्कृत अकादमी के अध्यक्ष डॉ. शैलेश कुमार मिश्र ने कहा कि संस्कृत में धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों के अलावा विज्ञान, चिकित्सा, और गणित जैसे विषयों पर भी अत्यंत महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध है। डॉ. मिश्र ने पाणिनि की ‘अष्टाध्यायी’, चरक संहिता, और आर्यभट्ट के योगदानों का उल्लेख करते हुए संस्कृत के बहुमुखी योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा का अध्ययन न केवल हमारे अतीत को समझने में सहायक है, बल्कि यह हमें एक समृद्ध और संतुलित भविष्य की ओर भी मार्गदर्शन करता है। इस अवसर पर, संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. धनञ्जय वासुदेव द्विवेदी ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में संस्कृत भाषा के आधुनिक संदर्भ में उपयोगिता पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल अतीत की धरोहर नहीं है, बल्कि यह आज के युग में भी उतनी ही प्रासंगिक है। संस्कृत के माध्यम से हम न केवल अपने सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित कर सकते हैं, बल्कि इसे आधुनिक विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों में भी लागू कर सकते हैं। द्विवेदी ने कहा कि संस्कृत का अध्ययन भारतीय युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण धरोहर है, जिसे उन्हें गर्व से अपनाना चाहिए।
संस्कृत के उत्थान के लिए, डॉ. द्विवेदी ने इसे विद्यालय और महाविद्यालय स्तर पर अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि प्रारंभिक स्तर पर संस्कृत के सरल व्याकरण, श्लोक, और साहित्य का अध्ययन छात्रों में इस भाषा के प्रति रुचि उत्पन्न कर सकता है। संस्कृत साहित्य और ग्रंथों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करके आम जनता तक पहुंचाया जाना चाहिए, जिससे लोग संस्कृत की महत्ता को समझ सकें और इसका अध्ययन करने के लिए प्रेरित हो सकें। उन्होंने संस्कृत को डिजिटल मंचों पर उपलब्ध कराने के उपायों पर भी जोर दिया। संस्कृत भारती के प्रान्त शिक्षण प्रमुख चन्द्रमाधव सिंह ने संस्कृत भाषा की प्राचीनता और उसकी वैज्ञानिकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता की आत्मा है। संस्कृत भाषा में निहित ज्ञान ने विश्व को अनेक महत्वपूर्ण विचारधाराएं दी हैं। मारवाड़ी महाविद्यालय के हिन्दी विभाग की प्राध्यापिका डा. सीमा चौधरी ने संस्कृत भाषा के महत्त्व पर प्रकाश डाला। राँची विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डा. जंगबहादुर पाण्डेय ने संस्कृत भाषा की व्यापकता के विषय में बताया। कार्यक्रम का शुभारम्भ दीपप्रज्वलन और वैदिक मंगलाचरण से हुआ। मंच संचालन डॉ. जगदम्बा प्रसाद ने किया और धन्यवाद ज्ञापन श्रीमित्रा ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में अमिताभ कुमार, गोपाल कृष्ण दूबे, आशीष कुमार, आयुष कुमार, सुरेन्द्र कुमार, शुभम पाण्डेय, तनु सिंह, श्वेता अग्रवाल, पल्लवी, अनिशा आदि की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।