जब देश का मुखिया देश के सबसे बड़े चौपाल में पहुंचने से पहले दंडवत प्रणाम करते हों तो इसके मायने हर हलको में यही होता है कि मुखिया ने सत्ता प्राप्ति के दौरान हुई यज्ञोपवित संस्कार का मान रख लिया. उस क्षण की अनुभूति जितनी व्यापक है उतनी ही संभावना है उस क्षण की इतिहास में संल्गन होने की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 से अब तक कितने बार दंडवत प्रणाम किया है, कब और कहां?
पहला :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में आपार बहुमत से सत्ता में आए. सत्ता में उनके आते ही मानों बीजेपी को एक संजीवनी मिल गई हो. मोदी ने जब से देश की सत्ता की कमान संभाली है, तब से अब तक उनके द्वारा किए जाने वाले हर छोटे बड़े काम को लोगों ने एक सिंबल यानी प्रतीक के रुप में देखना शुरू कर दिया है. या यह भी कह सकते है कि इन्हें खास बनाकर जनता के सामने दिखाया जाता रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 से अबतक 3 बार साष्टांग दंडवत प्रणाम किया है. 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार संसद की पहली सीढी पर पैर रखा तो उन्होंने वहां दंडवत होकर प्रणाम किया था. प्रणाम का अर्थ उनके पार्टी के द्वारा बताया गया कि संसद भवन लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर है और इसलिए प्रधानमंत्री मोदी जब इसमें दाखिल हो रहे थे तो उन्होंने अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए दंडवत प्रणाम किया था.
दुसरा :
दुसरी बार प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में 5 अगस्त 2020 को राम जन्मभूमि का पूजन के दौरान भगवान राम लला को दंडवत होकर प्रणाम किया था. इस प्रणाम का अर्थ पूरे देश में सीधे तौर पर गया था कि प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी दोनों राम मंदिर और रामलला के लिए गंभीर हैं.
तीसरा :
तीसरा मौका बीते कल यानी 28 मई (नए संसद भवन) के दिन का है, जब प्रधानमंत्री मोदी ने नए संसद भवन के उद्घाटन के समय सेंगोल के सामने किया था. इस बार भी प्रधानमंत्री मोदी का दंडवत प्रणाम के कई मायने निकलते है.
दंडवत प्रणाम के क्या हैं मायने?
भारतीय संस्कृति में प्रणाम करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. मान्यता है कि प्रणाम करने से ना सिर्फ आशीर्वाद मिलता है, बल्कि ये इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति अपने अभिमान को छोड़ चुका है. शास्त्रों में कहा गया है कि दंडवत प्रणाम करने से एक यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है. शास्त्रों में दंडवत यानी कि साष्टांग प्रणाम को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है.