देश में आए दिन किसी जाति के लोग एसटी में शामिल होने की मांग करते रहते हैं. इस मांग को लेकर देश में दंगे तक भड़क उठते हैं.पिछले कुछ समय से मणिपुर में भी मैतई जाति के लोग एसटी में शामिल होने की मांग कर रहे हैं. इसी तरह एसटी में शामिल होने की मांग झारखंड,बंगाल, उड़ीसा के कुड़मी जाति के लोग भी कर रहे हैं. मणिपुर में इस मांग को लेकर दंगा भड़क उठी तो वहीं झारखंड, बंगाल में कुड़मी समुदाय के लोगों ने चक्का जाम कर दिया,जिससे लगभग 500 ट्रेनें रद्द की गई और रेलवे को करोड़ो का नुकसान हुआ.
जो लोग पहले से एसटी हैं वो अब किसी जाति को एसटी में शामिल होने देना नहीं चाहते हैं. एसटी समुदाय का कहना है कि किसी भी जाति को एसटी में शामिल कर देने से उनके अधिकारों का हनन होगा.
लेकिन कोई भी जाति एसटी में शामिल होना क्यों चाहती है.
भारत के संविधान में एसटी समुदाय को विशेष दर्जा दिया गया है, जिसके चलते इन्हें कुछ खास अधिकार भी हासिल हैं. जिनमें आरक्षण सबसे मुख्य अधिकार है जिसके कारण देश में कई जातियां खुद को एसटी समुदाय में शामिल होने का अपना दावा और मांग रखती रही हैं.
अब जानते हैं एसटी में शामिल होने की कानूनी प्रकिया क्या है.
-सबसे पहले इस मामले पर राज्य सरकार निर्णय लेती है. राज्य सरकार अपने राज्य के किसी भी जाति को एसटी का दर्जा दिलाने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव पास करती है.
-इस प्रस्ताव को वह भारत सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्रालय को भेजती है.
-मंत्रालय इस प्रस्ताव पर सबसे पहले रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया यानी आरजीआई से विचार-विमर्श कर सलाह लेता है .
-आरजीआई अपने पास मौजूद डाटा के आधार पर देश की जनजातियों के बारे में राय देता है.आरजीआई देखता है कि जिस जाति का प्रस्ताव आया है वह जनजातियों के लिए तय किए गए मानकों को पूरा करता है या नहीं.
-इसके बाद मंत्रालय एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से भी इस बारे में सलाह लेता है.एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया प्रस्तावित जाति का सामाजिक पृष्ठभूमि देखता है.
-अब इस प्रस्ताव पर आरजीआई और एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया दोनों अपनी राय मंत्रालय को भेज देते हैं..दोनों संस्थाओं से राय आने के बाद मंत्रालय आगे की कार्रवाई के लिए यह प्रस्ताव एसटी मामलों से जुड़े राष्ट्रीय आयोग को भेजती है.
-अब आयोग इस प्रस्ताव का गहराई से अध्ययन कर अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार के पास भेजता है.अगर आयोग को लगता है कि प्रस्ताव में बदलाव करने की जरुरत है तो वह कर सकता है.
-अब आयोग की सिफारिशों के आधार पर मंत्रालय जाति विशेष के दर्जे को लेकर संसद में संविधान संशोधन बिल पेश करता है.
-संसद से बिल पास होने के बाद बिल को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है.
-बता दें इस मामले में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के पास होता है.भारतीय संविधान की धारा 342 के अनुसार- राष्ट्रपति किसी भी राज्य की सलाह और प्रस्ताव पर उस राज्य की किसी जाति को उस समुदाय में शामिल करने का विचार कर सकते हैं.
-अब राष्ट्रपति की मोहर लगने के बाद कानूनी रूप से किसी जाति विशेष को एसटी का दर्जा मिलने का रास्ता साफ हो जाता है.