क्यों लोक संस्कृति में राम घरवइया हैं और कृष्ण छलिया?

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लोक परंपरा से जुड़े रहिए. गांव जाइए तो पुराने और पारंपरिक लोकगीत सुनिए. गांव जाइए तो पता कीजिए कि ग्रामदेवता के स्थान की क्या स्थिति है? डिहवार स्थान की क्या स्थिति है? खेती के देवता खेतपाल बाबा की पूजा अब होती है या नहीं? गोवर्धन पूजा के दिन मवेशियों को नहा-धोकर तैयार किया जाता है या नहीं? उस रोज मवेशियों के सामने गायदाढ़ गीत गाया जाता है या नहीं? उन गीतों का मर्म समझने की कोशिश कीजिए.

लोक परंपरा से जुड़े रहेंगे, तो फैशनिया और रोमांटिक तौर पर देवता और देवत्व विरोधी नहीं बनेंगे और ना ही धर्म के प्रति बहुत आक्रामक या अंधविश्वासी होंगे. बहुत कुछ समझ में आएगा. यह समझ में आएगा कि लोक अपनी शर्तों पर, अपनी कसौटियों पर कसकर किसी देवता को देव रूप में लोक परंपरा में अपनाता है, मानता है, मानस में स्थापित करता है. विष्णु के दस अवतार लेकिन लोक ने अपने अनुसार दो को अपना लिया. गांव, गांव में, घर-घर में, राम और कृष्ण को. शास्त्रों में नवदुर्गा की पूजा होती है, लोक परंपरा में सात बहनों के पूजा की परंपरा है. नवदुर्गा की पूजा शास्त्र के मंत्रों से, सात बहनों की पूजा गंवई गीतों से. लोक को समझ लेंगे तो आप चमत्कार के चक्कर में नहीं पड़ेंगे.

लोक गीतों के देवी, देवता चमत्कारी कभी नहीं होते. बेवजह ताकतवर भी नहीं. लोक के देवता चमत्कार करने या किसी शत्रु को पराजित करने या मारने की वजह से देवता नहीं कहलाते. सरोकार की वजह से किसी नायक को मनुष्यत्व की परिधि से निकाल देवत्व की परिधि में स्थापित करता है लोक. लोकगीतों में देवी देवता हमारे,आपके परिवार के सदस्य जैसे होते हैं. घरइया रिश्ता होता है. लोकगीतों में राम पहुना और बेटा की तरह हैं. बेटा बनाकर सोहर सुनाइए. पहुना बनाकर गाली तक सुना दीजिए.

कृष्ण अपने घर के सदस्य और संगी साथी की तरह. छलिया कह दीजिए, चोर कह दीजिए. शिव तो इतनी छू​ट देते हैं कि बउराहा कह दीजिए अधिकार से. देवी, घर के सदस्य की तरह. झूला झूलती है. प्यास लगने पर मालिन के यहां जाती है. मालिन घबराती नहीं देवी को देखकर. देवी एक बूंद पानी मांगती है कि प्यास लगी है. मालिन कहती है कि देती हूं. देवी पानी पीती है. आशीष देती हैं. हालचाल होता है. लोक परंपरा से, लोक संस्कृति से जुड़े रहिएगा तो बेवजह के अनेक झोल से बचिएगा. पर, ऐसे लोकगीतों को आपको तसल्ली से सुनना पड़ता है. उसका मरम समझना पड़ता है. जब मरम समझ जाएंगे, रागात्मक संबंध जोड़ लेंगे तो जीवन में सामूहिकता और सरोकार का भाव बना रहेगा.

(नोट : वरिष्ठ पत्रकार निराला बिदेसिया के फेसबुक वॉल से साभार.)