केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम में बर्फबारी और भारी बारिश के बाद रोकी गई यात्रा

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केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम में भारी बारिश और बर्फबारी हो रही है. इसके मद्देनजर यात्रा को श्रीनगर में ही रोक दिया गया है. आपको बता दें कि लगातार हो रही बारिश और बर्फबारी ने यात्रियों के साथ-साथ प्रशासन की भी मुसीबत बढ़ा दी है.

इस मामले पर पौड़ी एसएसपी श्वेता चौबे ने कहा कि भारी बारिश को देखते हुए चार धाम यात्रा रोक दी गई है. मौसम विभाग के अलर्ट के बाद यह फैसला लिया गया. उन्होंने बताया कि यात्रियों को श्रीनगर के गढ़वाल में रोका गया है. वहीं, उनसे मौसम साफ नहीं होने तक वहीं रहने की अपील की गई है.

मौसम विभाग ने जारी किया अलर्ट  

बता दें कि मौसम विभाग की ओर से उत्तराखंड में भारी बर्फबारी और बारिश की बात कही गई थी. विभाग ने राज्य में येलो अलर्ट जारी किया था. विभाग के अनुसार 1 मई से 4 मई तक भारी बर्फबारी के साथ-साथ बारिश होने की  संभावना जताई गई है. ऐसे में बर्फ की वहज से रास्ता बंद ना हो जाए और यात्री फंस ना जाए इसलिए यात्रियों को श्रीनगर में ही रोक दिया गया है.

27 अप्रैल से खुले है बद्रीनाथ के कपाट

प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम के कपाट आज यानी 27 अप्रैल की सुबह 7 बजकर 10  मिनट पर पूरे विधि विधान से भक्तों के लिए खोल दिए गए. बद्रीनाथ धाम को 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया था. बद्रीनाथ धाम के साथ ही धाम में स्थित प्राचीन मंदिरों को भी गेंदा के फूलों से सजाया गया था.

मान्यता है कि बद्रीनाथ के दर्शन कर लेने के बाद लोगों को मोक्ष की प्राप्ति मिल जाती है. बद्रीनारायण मंदिर, भारतीय राज्य उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मन्दिर है. जहां हिंदू धर्म के देवता विष्णु के एक रूप “बद्रीनारायण” की पूजा की जाती है.

25 अप्रैल से खुले हैं केदारनाथ धाम के कपाट

वहीं, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम के दर्शन भक्तगण 25 अप्रैल, 2023 को सुबह 6:20 बजे से दर्शन कर रहे हैं. बता दें कि, केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. जो हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है.

उत्तराखंड में बसा हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से एक माना जाता है. यहां की ठंडी जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर महीने के मध्‍य में दर्शन के लिए खुलता है. पत्‍थरों से बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया