यह शरीर पञ्च तत्वों से बना है और पांच उनके रंग हैं : महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

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Eksandeshlive Desk

रांची : संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने कहा है कि कबीर साहब ने कहा है, “धन यौवन का गर्व न कीजै, झूठा पञ्च रंग चोल रे।” यह शरीर पञ्च तत्वों से बना है और पांच उनके रंग हैं। ध्यानी ध्यान में उन पांच रंगों को देखता है। करो क्या? तो कहा, “शून्य महल में दियना बारि ले, आशा से मत डोल रे।” यह है ध्यान। इसी में “ध्यानं शून्यगतं मन:” और “ध्यानं निर्विषयं मन:” होता है। मन को विषयहीन कर लो। पञ्च विषयों से जिसका मन आगे बढ़ता है, वह निर्विषय में जाता है। सूक्ष्म में रहने से भी विषय है। शून्य महल में जाने का जो तरीका जानता है, उसमें प्रवेश करता है तो उसको अपने अंदर में चिराग मालूम होता है। यह कहने की बात नहीं है, करने की है।

इस ध्यान में अभ्यासी का ज्ञान बढ़ता है और आगे बढ़ते-बढ़ते वह समता प्राप्त करता है। मान-अपमान, हानि-लाभ, सुख-दु:ख सबमें वह समान रहता है। उसको एकात्म भाव हो जाता है और वह सब शरीरों में भिन्न-भिन्न नहीं, एक-ही-एक आत्मा को देखता है। वह देखता है कि सब शरीर मेरा और सब शरीरों में मैं। लेकिन इस भाव को पाना बहुत दूर की बात है। इसमें संसार बहुत दबाता है; कुछ आगे बढ़ने पर संसार और भी दबाता है। लेकिन जो समझता है कि यह काम करना ज़रूरी है, वह संसार के दबावों को सहता हुआ अपने कामों को करता जाता है और होते-होते एक दिन पूर्ण भी हो जाता है। वह पूर्णरूपेण तृष्णाहीन हो जाता है, पूर्ण शांति पाता है और परमात्मा को भी पाता है।

शरीर रूप परदा जीवात्मा पर है। स्थूल, सूक्ष्म, कारण तथा महाकारण चारों जड़ शरीरों को पार कर अपने स्वरुप में रहे, तब ईश्वर को पाता है। यह योग की सरल युक्ति है, प्राणायाम इसमें नहीं है। चाहिए ईश्वर मिलन का प्रेम। जो ईश्वर से मिलन का यत्न जानता है, कोशिश करता है, अपने परिवार में रहता है और भजन करता है तो वह होते-होते पूर्ण होता है।