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मेसरा/रांची: रोजा भूख,प्यास व इंसानी ख्वाहिशों पर सब्र रखने का पैगाम है। रमजान के बरकत वाले इस महीने में खुदा रोजेदारों पर अपनी रहमतों की बारिश करता है। यह महीना भाईचारे और इंसानियत का पैगाम भी देता है। रोजा सिर्फ दिनभर भूखा रहने का नाम नहीं,बल्कि रोजा इंसान को इंसान से प्यार करना सिखाता है। रोजा गरीब भाइयों से मोहब्बत करने का जज्बा पैदा करता है। भूखे प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस माह-ए-रमजान के बारे में मीडिया बंधुओ से बातचीत करते हुए रॉयल डीएवी स्कूल इरबा रांची के चेयरमेन सह झामुमो युवा मोर्चा के ओरमांझी प्रखंड अध्यक्ष मोहम्मद शाकिर अंसारी ने बताया कि रोजा अच्छी जिंदगी जीने का तरीका है। इसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का जमीर रोजेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिए,जरूरी हर बात की तरबीयत देता है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया की कहानी भूख-प्यास और इंसानी ख्वाहिशों के ईद-गिर्द घूमती है। रोजा इन तीनों चीजों पर सब्र रखने का पैगाम है। रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख दर्द और भूख प्यास को समझने का महीना है। ताकि रोजेदारों में भले बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो। रमजान में कुरान की तिलावत,नमाज की अदायगी, एतिकाफ,फितरा देना,इफ्तार और सेहरी की तैयारियां आम होती है,इसमें जरूरतमंदों की मदद करना इस्लाम मजहब का खास संदेश देता है।